अब हम सब एक हैं, स्वर्ण मंदिर हो, ज्ञानवापी मस्जिद हो, चारमीनार हो, ताजमहल हो ये सब हमारे देश की शान है, धरोहर हैं
कविता नारायण
आजकल अखबार का पन्ना खोलें या टीवी का न्यूज सब जगह मंदिर-मस्जिद, भोले भगवान का अपमान, पैगंबर साहब का अपमान। पता नहीं क्या हो गया है इन्हें। क्या इनके भगवान और इनके पैगंबर ने इन्हें लड़ने झगड़ने और मारने काटने का ही ज्ञान दिया है? ऐसा नहीं हो सकता। ऐसा है तो फिर भगवान और पगंबर कैसे हुए? वे तो प्रेम और शांति के दूत होते हैं। इनके इसलिए कह रही हूं क्योंकि ये हमारे नहीं हैं। एक हिंदू के हैं और एक मुसलमान के। हमारे तो ईश्वर हैं। चाहे अल्ला कहें चाहे गॉड कहें। और भी बहुत सारी भाषाओं में बहुत सारे नाम हैं। वो सबके हैं, सब जगह हैं। जैसे पिताजी, अब्बा, डैडी… लेकिन हैं तो सबके सब पिता ही। भारत में रहने वाले सभी भारतीय, सबके अल्ला या भगवान जो कहें, सब एक ही हैं, जो सबमें हैं, सब जगह हैं। तो फिर यह बवाल क्यों? आज दो शब्द और सुनने को मिला। एक गंगा यमुनी तहजीब और दूसरा लक्ष्मण रेखा। सुनकर एक चोट सी लगी मन को। जाने किधर जा रहे हैं लोग। तहजीब ही भूल गए हैं। तहजीब की तो धज्जी उड़ ही रही है, बात रही लक्ष्मण रेखा की। किसी का कहना था कि अब एक लक्ष्मण रेखा खींचनी चाहिए। मैं पूछती हूं किस सीता को बचाना है? लक्ष्मण जी ने तो सीता के लिए जो रेखा खींची, उन्हें दृढ विश्वास था कि सीमा रेखा तक वन में भी कोई खतरा नहीं है, इसके आगे खतरा है। रेखा खींचने की जहां तक बात है तो रेखा तो हर मनुष्य के चारों ओर खींची है ही, चाहे वह पुरुष हो या नारी, जिसे मर्यादा रेखा कहते हैं। क्या अभी कोई अपने हृदय पर हाथ रखकर कह सकता है कि उसने अपनी मर्यादा रेखा को पार नहीं किया है?
मैंने तो सब कुछ देखा है। अंगरेजी राज भी, अंगरेजी राज की गुलामी से लड़ने की लड़ाई भी। छोटी थी, लेकिन जब पुलिस की गाड़ी आती तो सभी बच्चों के साथ चिल्लाती थी,
‘लाल मुरेठा खोल दो, पुलिस हमारा भाई है।‘लाल मुरेठा यानी अंगरेजों की गुलामी का बोझ सर से हटा दो तो सभी भाई हैं। hj अब तो गुलामी का कोई बोझ सिर पर नहीं है। फिर सब भाई क्यों नहीं हैं? क्यों लड़-झगड़ कर देश का माहौल खराब कर रहे हैं? क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हैं?
जानती हूं कभी हमारे पुरखे बाहर से आए हुए मुगलों से हार गए थे। हम कमजोर थे। फिर कुछ जयचंद भी थे। फिर हारे हुए लोग गुलाम होते हैं और जीतने वाले राजा। राजा का काम होता है राज करना और प्रजा का शोषण करना, चाहे वह किसी धर्म या जाति का हो। सभी राजा विक्रमादित्य और पुरुषोत्तम राम नहीं होते। पर ये तो बीती हुई बातें हो गईं। कोई कहीं से आए हों, बस तो गए यहीं, भारत में ही। फिर तो ये हमारे कुटुंब हो गए क्योंकि भारत तो वसुधैव कुटंबकम वाला देश है, आध्यात्मिक देश है। यहां के हवा, पानी मिट्टी में अध्यात्म भरा है।
अतः इस नजरिए से भी तो देखिए, उनमें क्या सूक्ष्म परिवर्तन हुआ है। बाहर से तो क्रूर रहे, लेकिन अंदर से भोले और मीठे भी। बहुत सारे मंदिर तोड़े तो कुछ अच्छे काम भी किए, कुछ मंदिर भी बनवाए। मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाने में इस भाव को हमारी आंखें क्यों नहीं देख पा रही हैं कि मंदिर तोड़ने के बावजूद उन्हें लगा कि कुछ तो है यहां, कोई तो ऐसी शक्ति है जो मन को शांत और मुग्ध करती है। वहां नमाज अदा करने पर वैसे ही आनंद की अनुभूति होगी।
यह भी देखिए शाहजहां के आने तक कैसा परिवर्तन हुआ। क्या कोई क्रूर व्यक्ति अपनी प्रिया के लिए उसकी समाधि पर ऐसी कलाकृति वाला महल बनवाएगा जिसे देख कर हर कोई भाव विभोर हो जाए। ऐसी कृति बनी कि पुरस्कार में कलाकार के हाथ कटवा लिए गए। कलाकार कहना सही था या गलत यह तो अलग बात है, लेकिन उसमें भी यही भाव था कि मेरी प्रिया की समाधि जैसी और किसी की न बने। बात रही, अंदर में किसी और भगवान की मूर्ति होने की जिसके ऊपर मुमताज की समाधि है। हो सकता है यह बात सही हो, लेकिन इसमें भी तो खुश होने की बात है। अगर हम इस नजरिए से उसके अंदर के छिपे हुए इस भाव को देख पाएं कि उन्हें ऐसा आभास हुआ कि इस जगह की गोद में मेरी मुमताज रहेगी तो उसे जन्नत नसीब होगी। इस नजरिए से देखने के बाद कोई भी किसी मस्जिद या समाधि या किसी भी कलाकृति को तोड़ना चाहेगा? सबकुछ तो अब हमारी धरोहर हैं।
जिन दो समुदायों को लड़ा रहे हैं वे भी तो अंगरेजों के गुलाम बनकर गुलामी की पीड़ा भोग चुके हैं और साथ मिलकर आजादी के लिए लड़े हैं। हां उनमें से कुछ स्वार्थी लोग कुछ लोगों को बहलाकर खुद प्राइम मिनिस्टर बनने के लोभ में देश का टुकड़ा करके पाकिस्तान बनाकर प्राइम मिनिस्टर बने लेकिन बाकी कौम को छोड़ गए। अब सब हमारे हैं और हम सबके, हम सब एक हैं। अभी भी कुछ लोभी नेता कुछ बाहर के आतंकियों के सहारे देश फिर तोड़ना चाहते हैं। इसलिए हमें सावधान रहना है। अब हम सब एक हैं। सब कुछ हम सबका है। चाहे वह स्वर्ण मंदिर हो, ज्ञानवापी मस्जिद हो, चारमीनार हो, ताजमहल हो। ये सब हमारे देश की शान है, धरोहर हैं। जो भी दर्शक या यात्री देखने आएंगे, उन्हें कला के सौंदर्य के साथ ही उस स्थान का सूक्ष्म स्वार्गिक आनंद का भी आभास होगा।