अर्चना अनुप्रिया
प्रेम एक ऐसा विषय है जिसके ऊपर न जाने कितनी रचनाएं गढ़ी गई हैं,कितनी तरह से इसे परिभाषित किया गया है लेकिन आज भी यह एक पहेली सा लगता है।देखा जाए तो प्रेम, प्यार, मुहब्बत,उल्फत-ये सभी शब्द एक ऐसी भावना को परिभाषित करते हैं,जो अंतरतम के अहसास को छूते हैं,अंदर की रूह से जुड़ते हैं और किसी भी जीव के कोमल भाव को तरंगित करते हैं।यह शब्द सुनकर ही कुछ अच्छा सा महसूस होने लगता है,एक सकारात्मक ऊर्जा जन्म लेती है,जो मानसिक और आंतरिक खुशी प्रदान करती है।यह
एक एहसास है, जो दिमाग से नहीं दिल से होता है और इसमें अनेक भावनाओं व अलग अलग विचारो का समावेश होता है। प्रेम स्नेह से लेकर खुशी की ओर धीरे धीरे अग्रसर करता है। यह एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है जो सब भूलकर उसके साथ चलने को प्रेरित करती है।प्रेम की बात हो तो भगवान कृष्ण की मूरत स्वयं ही सामने आ जखड़ी होती है।वह प्रेम का जीता जागता प्रतीक हैं और प्रेम के हर स्वरूप को परिभाषित एवं विकसित करते हैं। कृष्ण और राधा का प्रेम सच्चे प्रेम की एक अनमोल मिसाल बनकर मन-मानस में उभरता है।उन दोनों का प्रेम एक अनोखा उदाहरण है इस बात का कि प्रेम दैहिक नहीं,एक दैवीय अहसास है, जिसमें उम्र,रंग,ओहदे कुछ भी मायने नहीं रखते..मायने रखती है तो महज यह बात कि सच्चा प्रेम आत्मा की गहराई में ऐसा उतरता है कि प्रेमी और प्रेमिका की आत्माएं एक होकर ईश्वरत्व को प्राप्त होती हैं अर्थात परमात्मा से एकाकार हो जाती हैं। बिल्कुल ऐसे ही, जैसे विभिन्न नदियां एक होकर सागर से मिल जाती हैं।
आज जब समाज में प्रेम को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां उत्पन्न हो रही हैं, धर्म,जाति, सम्पन्नता आदि को लेकर अक्सर विवाद खड़े हो रहे हैं, प्रेमी-प्रेमिका शारीरिक प्रेम को सच्चा प्रेम समझने की भूल कर बैठे हैं,ऐसे में जरूरी है राधा और कृष्ण के अद्भुत पवित्र प्रेम के दर्शन को गहराई से समझा जाए।
राधा और कृष्ण का प्रेम यकीनन इस दुनिया में सबसे ज्यादा अद्भुत प्रेम है क्योंकि प्रेम में उन दोनों को कुछ भी पाने की इच्छा नहीं थी। दोनों आत्मिक रूप से एकाकार थे।उनके बीच सिवाय प्रेम के कुछ भी नहीं था..न कोई अपेक्षा,न कोई इच्छा,न कोई बंधन,न कोई शिकायत। उनके प्रेम की पराकाष्ठा यह थी कि कृष्ण स्वयं को राधा में देखते थे और राधा स्वयं को कृष्ण में। उनमें न मिलन था,न अलगाव था.. दोनों बस एक ही आत्मा के दो स्वरूप थे। इसीलिए,उस प्रेम में विलयन था दृष्टि और दृष्टा का।उनके लिए राधा उनका हृदय व आत्मा बन गईं थीं, जो हमेशा उनके साथ रहती थीं। उनके प्रेम ने यह भी समझाया कि प्रेम किसी से भी हो सकता है। प्रेम के बीच कभी आयु का बंधन नहीं होता। राधा रानी श्रीकृष्ण से आयु में बड़ी थीं, फिर भी कान्हा राधा से बहुत स्नेह करते थे।आज के समाज में भी इस तरह के उम्र से परे प्रेम-प्रसंग मिल जाते हैं परंतु यह आज के प्रेम आमतौर पर शारीरिक आकर्षण पर आधारित ज्यादा रहते हैं और इसीलिए उनकी पवित्रता पर प्रश्न खड़े होते रहते हैं और वे अक्सर सामाजिक मापदंडों पर पराजित हो जाते हैं। कृष्ण और राधा का प्रेम,देखा जाये तो इस दृष्टि से अत्याधुनिक सोच वाला प्रेम प्रतीत तो होता है परन्तु,इसकी पवित्रता और दार्शनिकता इसेआध्यात्मिकता से जोड़ देती है। कृष्ण का प्रेम आज के प्रेम का खुलापन और निर्भीकता तो दर्शाता है परंतु,उसकी पवित्रता और उसका मर्यादित आचरण उनके प्रेम को ईश्वरीय शक्ति प्रदान करता है और इसीलिए उनका प्रेम मंदिरों में स्थान पाता है ,आदर्श बन जाता है और पूजा जाता है।जहां कृष्ण, वहां राधा। भगवान श्रीकृष्ण का नाम ही राधा के नाम से जुड़ा हुआ है। आज भी लोग कान्हा को राधे कृष्ण, राधे श्याम कहकर पुकारते हैं। इसे कृष्ण और राधा के प्रेम की ताकत कह लें या भौतिकता से दूर अध्यात्म और आंतरिक मिलन की मिसाल कह लें, एक दूसरे के साथ न होने पर भी कृष्ण और राधा एक ही हैं। उनके प्रेम की मिसाल दी जाती है। दोनों बचपन में बरसाना और वृंदावन की गलियों में मिले। उन्हें प्रेम हुआ। पुराणों के मुताबिक, हर प्रेमी युगल की तरह वह भी एक दूसरे के साथ जीवन बिताना चाहते थे,विवाह करना चाहते थे लेकिन, ऐसा हो न सका। कर्तव्य के रास्ते में उनका प्रेम कभी बाधा बनकर नहीं आया।कृष्ण मथुरा चले गए और एक राजा बन गए। कहा जाता है कि जाने से पहले कृष्ण ने राधा से वापस आने का वादा किया था। हालांकि कृष्ण कभी वापस मथुरा नहीं लौटे। कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी से ऐसा लगता है कि उनके प्रेम-कहानी अधूरी रह गई। दोनों का मिलन न हो सका। लेकिन, अगर उनके प्रेम की गहराई को समझें तो राधा व कृष्ण कभी अलग थे ही नहीं तो उनके विवाह और भौतिक मिलन का अर्थ ही क्या था।प्रेम की गहराई इतनी थी कि रुक्मिणी से विवाह करने और पत्नी और पटरानी के रूप में उन्हें हर अधिकार देने के बावजूद राधा कृष्ण की प्रिय बनी रहीं और कृष्ण के साथ रुक्मिणी की बजाय उनका नाम जुड़ा रहा। रुक्मिणी भी कृष्ण के पवित्र प्रेम की इस पराकाष्ठा को समझती थीं और इसीलिए उन्होंने कभी भी इस बात को लेकर ऐतराज नहीं किया।
वेदों के अनुसार, कृष्ण का मानना था कि प्रेम के लिए विवाह की आवश्यकता नहीं होती। वास्तव में विवाह गृहस्थ जीवन की एक आवश्यक धुरी है जबकि प्रेम दो व्यक्तियों द्वारा साझा की जाने वाली एक निःस्वार्थ, शुद्ध भावना है। प्रेम सच्चा है और पवित्र है। राधा और कृष्ण का प्रेम अमर है,आध्यात्मिक है। इसका कोई आरंभ और अंत नहीं है।शुद्ध प्रेम केवल आध्यात्मिक स्तर पर ही मौजूद हो सकता है और सभी परिस्थितियों में अपने प्रियतम की सेवा करने की इच्छा के रूप में प्रकट होता है,बिना अपने सुख या दुख की चिंता किए। देखा जाए तो,प्रत्येक जीव भगवान का अंश है और इस प्रकार उनके साथ उसका शाश्वत संबंध है। यद्यपि इंसानों में प्रत्येक का इस संसार में अनेक लोगों के साथ संबंध है, लेकिन ये संबंध तब शुरू होते हैं जब हम भौतिक शरीर में प्रवेश करते हैं और तब समाप्त होते हैं जब हम इसे छोड़ते हैं। लेकिन हम परम भगवान श्री कृष्ण के साथ शाश्वत रूप से जुड़े हुए हैं। हम सभी के भीतर प्रेम का स्रोत कृष्ण ही हैं और कृष्ण ही हमारे प्रेम का परम उद्देश्य भी हैं। इसलिए,सभी कृष्ण से सबसे अधिक प्रेम करते हैं और यह कृष्ण ही हैं जो सभी से सबसे अधिक प्रेम करते हैं।उनके प्रेम का यह स्वरूप ही प्रेम को मंदिर में स्थान देता है। कृष्ण का प्रेम समस्त वातावरण को प्रभावित करता है। कृष्ण का प्रेम उदार है,विश्व व्यापी है।राधा के साथ-साथ वह गोपियों को भी प्रेम करते हैं,सोलह हजार स्त्रियों के उद्धार के लिए वह उन सभी से विवाह भी करते हैं और प्रेम के इस मार्ग को प्रशस्त करते हुए आलोचना के शिकार होने पर भी वह किसी की परवाह नहीं करते,प्रेम की प्रवाह से सभी को तृप्त करते हैं।इस तरह का उच्च प्रेम लौकिकता से परे ही प्रतीत होता है। इसीलिए कृष्ण को प्रेम करनेवालों की संख्या समस्त विश्व में सबसे अधिक है।कृष्ण को चाहने वालों में वृंदावन के निवासी सबसे ऊपर हैं। कृष्ण के प्रति उनका प्रेम सबसे असाधारण है। उनमें से गोपियां कृष्ण के प्रति सबसे अधिक प्रेम रखती हैं। उन्हें अपने सुख या अपने दुख दूर करने में कोई रुचि नहीं है। वे केवल कृष्ण की खुशी के लिए तन, मन और वचन से सेवारत हैं।
शुद्ध प्रेम की विशेषता निःस्वार्थता,सेवा भाव और प्रियतम का निरंतर स्मरण है। ऐसे शुद्ध प्रेम की एक झलक एक माँ और एक छोटे बच्चे के बीच के रिश्ते में देखी जा सकती है। एक माँ अपने बच्चे की निःस्वार्थ भाव से सेवा करती है,यहाँ तक कि अपनी ज़रूरतों से समझौता भी करती है। वह अपने शरीर से निकले दूध से बच्चे का पोषण करती है और हर समय,यहाँ तक कि आधी रात को भी बच्चे की देखभाल करने के लिए तैयार रहती है। हालाँकि, ऐसा प्यार बच्चे के बड़े होने के साथ कम होता जाता है और अक्सर परिस्थितियों या व्यक्तियों की बदलती प्राथमिकताओं के कारण माँ और बच्चे के पूरे जीवन में मौजूद नहीं रह पाता है। अगर माँ-बच्चे के रिश्ते के साथ ऐसा है, तो यह इस भौतिक दुनिया के अन्य रिश्तों पर कितना लागू होता होगा,इसकी कल्पना की जा सकती है।इस प्रकार, यद्यपि इस नश्वर संसार में जिस प्रेम का आदान-प्रदान होता है,वे अस्थायी और अक्सर अस्थिर होते हैं। इसके विपरीत, आध्यात्मिक स्तर पर प्रेम पूरी तरह से निःस्वार्थ और शाश्वत होता है।राधा-कृष्ण का प्रेम एक माता के प्रेम की तरह ही किसी भी स्वार्थी स्वरूप से परे एक विशुद्ध और निश्छल प्रेम है,जो ‘प्रेम’ शब्द के वास्तविक एवं आंतरिक भाव को परिभाषित करता है।श्रील प्रभुपाद लिखते हैं, “जब गतिविधियाँ व्यक्तिगत इंद्रिय संतुष्टि के मंच पर की जाती हैं, तो उन्हें भौतिक गतिविधियाँ कहा जाता है, लेकिन जब वे कृष्ण की संतुष्टि के लिए की जाती हैं, तो वे आध्यात्मिक गतिविधियाँ होती हैं। उदाहरण के लिए, भौतिक मंच पर, यदि भुगतान बंद कर दिया जाता है तो नौकर स्वामी की सेवा नहीं करेगा। इसका मतलब है कि नौकर केवल अपनी इंद्रियों को संतुष्ट करने के लिए स्वामी की सेवा में खुद को लगाता है। हालाँकि, आध्यात्मिक मंच पर, भगवान के सर्वोच्च व्यक्तित्व का सेवक बिना भुगतान के कृष्ण की सेवा करता है, और वह सभी परिस्थितियों में अपनी सेवा जारी रखता है। यही कृष्ण चेतना और भौतिक चेतना के बीच का अंतर है।” कृष्ण का प्रेम भी राधा एवं अपने सभी प्रेमियों के लिए ऐसा ही है।वह जिससे प्रेम करते हैं,उसके लिए सर्वस्व अर्पण हेतु तत्पर रहते हैं।राधा हो, गोपियां हों कि उन्हें चाहने वाले सुदामा या उद्धव हों, कृष्ण सभी को निःस्वार्थ प्रेम देते हैं और उनका हाथ थामकर रखते हैं ।उनके जैसा प्रेमी कोई भी अन्य नहीं।वृंदावन की गोपियाँ भी ऐसी ही शुद्ध और परिपूर्ण कृष्ण चेतना का उदाहरण हैं। इसीलिए कृष्ण के प्रति उनका प्रेम और उनकी सेवा निःस्वार्थ है और उनका निरंतर ध्यान यही रहता है कि कैसे कृष्ण की सेवा की जाए।कृष्ण को कृष्ण -प्रेम का सर्वोच्च उदाहरण प्रस्तुत करती हुई गोपियाँ अपना प्रेम, यौवन और सौंदर्य केवल कृष्ण के आनंद को बढ़ाने के लिए प्रदर्शित करती हैं। कृष्ण के प्रति उनकी निःस्वार्थ सेवा और समर्पण की भावना की पूजा उद्धव जैसे महान भक्त भी करते हैं।
भले ही राधा और कृष्ण के बीच के प्रेम ने कई अनुयायियों को प्रभावित किया है, लेकिन परंपराओं और सांस्कृतिक प्रभावों के आधार पर कथाएँ और व्याख्याएँ अलग-अलग हो सकती हैं। भगवान विष्णु के अवतार होने के नाते, कृष्ण का जन्म वासुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में हुआ था। लेकिन भगवान कृष्ण को उनके पालक माता-पिता, नंद और यशोदा ने गुप्त रूप से गोकुल गाँव में पाला था। हालाँकि, राधा को वृंदावन नामक स्थान पर एक चरवाहे की लड़की कहा जाता है। बचपन से ही, वह भगवान कृष्ण के प्रति समर्पित रही हैं। वह भगवान कृष्ण के प्रति अपने निःस्वार्थ प्रेम के लिए जानी जाती हैं। जैसे-जैसे कृष्ण बड़े होते हैं, उन्हें अपने दिव्य व्यक्तित्व और आकर्षक व्यक्तित्व का एहसास होता है। वह शानदार बांसुरी बजाकर अपने आस-पास के सभी लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।हर व्यक्ति उनके प्रेम से सराबोर होता है। फिर,चाहे उनका बांसुरी बजाना हो या माखन चुराना।उन्हें प्रेम की पराकाष्ठा माना जाता है। राधा और कृष्ण साथ-साथ बड़े हुए और खुशी-खुशी साथ-साथ खेले। हालाँकि कृष्ण के आकर्षक व्यक्तित्व ने कई लड़कियों को आकर्षित किया, लेकिन राधा का दिव्य और गहन प्रेम ही वह मुख्य कारक था जिसने कृष्ण को उनकी ओर आकर्षित किया। वे एक साथ नहीं रहे क्योंकि कृष्ण ने अपने दिव्य मिशन को पूरा करने के लिए वृंदावन और राधा को छोड़ दिया। इस कहानी को असाधारण बनाने वाली बात है राधा की कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और भक्ति, जिसने उन्हें जीवन भर प्रतीक्षा कराई। हर्षोल्लासपूर्ण दिव्य संवादों ने राधा-कृष्ण की प्रेम-कहानी को और भी आनंदमय बना दिया है। उनके बीच के प्रेम को भक्ति का एक महत्वपूर्ण रूप माना जाता है और हिंदू धर्म में कविताओं, कलाओं आदि के माध्यम से याद किया जाता है। उनकी कहानी ‘भागवत पुराण’ में प्रस्तुत की गई है, जो एक पवित्र हिंदू ग्रंथ है। राधा और कृष्ण के दिव्य प्रेम को ‘रास लीला’ के रूप में दर्शाया गया है।
कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार थे। उनका जन्म धरती पर कुछ जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए हुआ था। उनके कार्यों के पीछे दिव्य उद्देश्य धार्मिकता को बहाल करना और मानवता का मार्गदर्शन करना है। राधा सहित पृथ्वी पर उनके रिश्ते और बातचीत एक गहन सत्य को व्यक्त करने के लिए महज एक आध्यात्मिक बात होने से राहत देते हैं।उनकी कहानी प्रेम के जरिए जनमानस को देवत्व के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हुए ईश्वर और जीव को एकाकार करती है।ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने रुक्मिणी और सत्यभामा जैसी 16,108 पत्नियों से विवाह किया है। यह बात जन साधारण को भले ही प्रश्न खड़ा करने के लिए मुद्दा दे परन्तु, इसकी आध्यात्मिक गहराई में जायें तो यह प्रेम की वह पराकाष्ठा है,जहां कृष्ण अपने हर प्रेम करने वाले का हाथ थामते हैं, उन्हें दिशा देते हैं और अपने-आप से जोड़कर सभी के प्रेम को परमात्मा से एकाकार करते हैं।इस तरह के दिव्य प्रेम और भक्ति का प्रतीकात्मक प्रतिबिंब होने के कारण, राधा और कृष्ण की कहानी पारंपरिक वैवाहिक संबंध से परे है और इसीलिए मंदिरों में पूजनीय है।हालाँकि राधा कृष्ण की प्रेम कहानी पर बहुत से लोगों का विश्वास है और यह एक प्रेरणा है लेकिन,राधा की वैवाहिक स्थिति पर काफ़ी बहस और व्याख्याएँ हैं। कुछ कहानियों में राधा का विवाह अयान नाम के एक अन्य व्यक्ति से दिखाया गया है, जो उनके परिवार द्वारा तय किया गया था। हालांकि, अन्य व्याख्याओं में, ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने राधा के साथ मौजूदा गहरे आध्यात्मिक संबंध को खोए बिना दिव्य लीला के रूप में अयान से विवाह करने की अनुमति दी थी। वहीं, भगवान कृष्ण के प्रति उनकी पूर्ण भक्ति और आध्यात्मिक एकता के कारण कुछ कथाएं उनके विवाह से सहमत नहीं थीं।इसे यदि आज के संदर्भ में देखें तो ऐसा प्रेम समाज में विवाद का विषय बनता है लेकिन आम इंसानों से इतर ईश्वर और जीव के बीच इस तरह का प्रेम विवाह जैसे किसी भी बंधन से परे का प्रेम है और इसीलिए पवित्रता साथ लेकर फलता है। प्रेम निःस्वार्थ होता ही नहीं है, निःस्वार्थ बनाता भी है।राधा भगवान कृष्ण के प्रति अपने निःस्वार्थ प्रेम और भक्ति के लिए जानी जाती हैं। कृष्ण की खुशी के लिए अपनी इच्छा और अहंकार को दबाने के उनके विचार एक व्यक्ति के रिश्ते और भक्ति में त्याग और निःस्वार्थता के महत्व को दर्शाते हैं। राधा का कृष्ण के प्रति विश्वास एक बड़ी चट्टान की तरह अटूट है। भगवान कृष्ण के प्रति उनका दिव्य विश्वास, भले ही वे दूर थे, हमें भारी चुनौतियों का सामना करते हुए रिश्ते में विश्वास की भूमिका और महत्व सिखाता है। राधा कृष्ण की कहानी से जो महत्वपूर्ण सबक सीखा जा सकता है, उनमें से एक यह है कि सच्चा प्यार सांस्कृतिक और धार्मिक सीमाओं से परे असीम हो सकता है। भगवान कृष्ण एक चरवाहे थे और राधा गाँव की एक लड़की थी जो अलग समाज और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से थी। उनके प्यार ने कभी भी सामाजिक मानदंड और पारंपरिक बाधाओं की परवाह नहीं की। यह प्रेम बाहरी मतभेदों से परे प्यार करने और जुड़ने के लिए एक महान प्रेरणा के रूप में खड़ा था। इसके अतिरिक्त,राधा को व्यक्ति का अवतार माना जाता है, जबकि कृष्ण भगवान हैं,सर्वोच्च प्राणी हैं। इसलिए उनकी प्रेम कहानी व्यक्तिगत दिव्य आत्मा के पुनर्मिलन और दुनिया के लिए दिव्य निःस्वार्थ प्रेम को साबित करने की प्रतीक्षा को दर्शाती है। कहानी ने हमें सिखाया कि एक व्यक्ति में सच्ची खुशी तब पैदा होती है जब एक व्यक्तिगत आत्मा सार्वभौमिक आत्मा से मिलती है और एक हो जाती है। लोग जन्माष्टमी को न केवल भगवान कृष्ण के जन्म का जश्न मनाने के लिए चुनते हैं, बल्कि राधा और कृष्ण के दिव्य प्रेम और रिश्ते को मनाने और सम्मान देने के लिए भी चुनते हैं। लोग इसे राधा कृष्ण की जन्माष्टमी भी कहते हैं। यह त्यौहार दुनिया भर में कृष्ण के भक्तों के एक विशाल हिंदू समुदाय द्वारा भगवान कृष्ण और उनकी शिक्षाओं के प्रति अपनी भक्ति और सम्मान फैलाने के लिए मनाया जाता है। कृष्ण प्रेम का प्रतीक हैं और इसीलिए उनका उत्सव प्रेम का उत्सव है।लोगों का मानना है कि राधा और कृष्ण दोनों एक ही आत्मा वाले प्राणी हैं। ऐसा कहा जाता है कि राधा किसी दूसरी देवी का ही रूप हैं। इसलिए, यह स्वीकार करना सही है कि उनका प्रेम शाश्वत है और न केवल अतीत और वर्तमान में बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सबसे उल्लेखनीय पवित्र प्रेम कहानी होगी और कृष्ण हर युग और हर काल में प्रेम का मानवीय रूप बनकर उभरेंगे। जय राधे कृष्ण।🙏