बिहार में गैर कानूनी तरीके से कानून का डंडा चलाने पर आमादा है नव गठित जदयू बीजेपी सरकार
नीरव समदर्शी
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव और राजद कोटे के मंत्रियों के निर्णयों की समीक्षा करने के आदेश दिए हैं। एनडीए सरकार राजद कोटा में रहे मलाईदार विभाग में मंत्री स्तर पर किए गए निर्णय को देखेगी। मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग ने यह आदेश जारी किया है।
यहां सवाल यह उठता है कि अगर पिछले सरकार के मंत्रियों के निर्णयों की जांच के आदेश दिए ही गए है तो सिर्फ राजद कोटे के मंत्रियों के निर्णयों की ही जांच का आदेश क्यो दिया गया? सभी के क्यो नही ?अगर डिप्टी सीएम के निर्णयों के जांच का आदेश दिया जा रहा है तो एनडीए -जदयू काल के डिप्टी सीएम के निर्णयों के जांच का आदेश क्यो नही ?उस काल मे तो बहुत चर्चित सृजन घोटाला भी हुआ था जिसमें कथित तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी का नाम आया था ? इस दोनो प्रश्न का एक ही जवाब है कानून के डंडे का गैरकानूनी इस्तेमाल से दबाव की राजनीति ।
भले अबतक एनडीए यह कहती रही कि भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कानून अपना कार्य करेगा ही। बिल्कुल सही है करनी भी चाहिए लेकिन जबतक भ्र्ष्टाचार सिद्ध नही हो जाता तबतक सिर्फ आरोपी ही कहा जा सकता है। आरोप तो हवाला कांड में आडवाणी और ताबूत घोटाला में जॉर्ज फर्नांडिस पर भी लगे थे।दोने के ही आरोप कांग्रेस के शासन काल मे गलत सिद्ध हुए। जिस तरह से सिर्फ राजद कोटा के मंत्रियों के निर्णयों के विरुद्ध का आदेश दिया गया है और जिस तरह पिछले दिनों से चेतन आनंद के मामले में उनके गायब होने की एक प्राथिमिकी को आधार बना कर तीन बार तेजस्वी यादव (जो चेतन आनंद के अपनी पार्टी के उपमुख्यमंत्री थे) के घर 11.30वजे,12बजे और 2.30 बजे रात्रि में पुलिस फौज के सहारे घुस कर चेतन आनंद द्वारा अपनी इच्छा से आने की बात कह दिए जाने के बावजूद उन्हें उठा ले जाने की घटना के सामने आई।इसके बाद यह समझा सकता है कि गैरकानूनी तरीके से कानूनी डंडा चलाने पर आमादा है वर्तमान गठबंधम सरकार।
समझने कि बात है कि अगर मिथ्या आरोप के आधार पर भी पूछताछ करवा कर मीडिया ट्रायल शुरू कर दिया गया तो चुनाव तक मामले को खींचकर छवि धूमिल कर चुनाव में नुकसान पहुँचाय जा सकता है।