मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

आखिर ऐसा क्यूँ है

आखिर ऐसा क्यूँ है

स्वाति रॉय,भागलपुर

 

कहीं मेरे रूप की पूजा,
कहीं मेरे रूप पे कीचड़,
कहीं मेरे रूप पे आँसू,
तो कहीं मेरे रूप पे हँसी l
आखिर ऐसा क्यूँ है??
कहीं मेरे रूप से भय,
कहीं मेरे दामन से खेल,
कहीं मैं सृजन की प्रतीक,
तो कहीं मैं भोग्या की सच l
आखिर ऐसा क्यूँ है??

कहीं मेरे संस्कार की बात,
कहीं घृणा और तिरस्कार,
कहीं मेरे निर्माण की गाथा,
तो कहीं मेरे मिटने की व्यथा l
आखिर ऐसा क्यूँ है??
कहीं मैं कवि के शब्दों की ज़करण,
तो कहीं चित्रकार की रेखाओं की जाल,
कहीं मैं संगीत की स्वर,
तो कहीं मैं वेदना की लहर l
आखिर ऐसा क्यूँ है??
कहीं मैं साज़ और श्रृंगार,
कहीं मैं रूप और बहार,
कहीं मैं दर्शन और विचार,
तो कहीं अग्नि में दहन और चित्कार l
आखिर ऐसा क्यूँ है??
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