मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

*बात बिगड़ गयी*

*बात बिगड़ गयी*

  • दीपिका गहलोत
    पूणे

बात बिगड़ गयी,
जब उसकी सहेली,
मुझको देख हंस गयी,

जाते-जाते ये वो क्या कर गयी,
बातों-बातों में ये क्या कह गयी,
मेरी वाली मुझ पर ही बिगड़ गयी,

यारों ने तो बताया था,
उसको रिझाने का रास्ता,
मेरी बाज़ी मुझ पर ही उलटी पड़ गयी,

उसकी सहेली को रिझाना है,
तारीफ़ के पुल बांधते जाना है,
तरकीब ये मुझको महंगी पड़ गयी,

करना था उसको प्रभावित,
पर क्या कहूं क्या हुआ,
उसकी सहेली ही तारीफों के झाड़ पर चढ़ गयी,

वो नाराज़ हो कर महफ़िल से चली गयी,
उसकी सहेली की बढ़ती दिलजस्पी,
मुझ पर ही भारी पड़ गयी,

अब ना यारों की बातों में आऊंगा,
अपने मामलों में अपना ही दिमाग चलाऊंगा,
इस घटना से ये सीख मुझको मिल गयी,

बात बिगड़ गयी,
जब उसकी सहेली,
मुझको देख हंस गयी….

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