मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

सम्पादकीय साहित्य

नवरात्र

नवरात्र

 

इन्दु उपाध्याय

सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलम

 

यी, कल्याण करने वाली, सब के मनोरथ को पूरा करने वाली, तुम्हीं शरण ग्रहण करने योग्य हो, तीन नेत्रों वाली यानी भूत भविष्य वर्तमान को प्रत्यक्ष देखने वाली हो, तुम्ही शिव पत्नी, तुम्ही नारायण पत्नी अर्थात भगवान के सभी स्वरूपों के साथ तुम्हीं जुडी हो,आप को नमस्कार है.

नवरात्र में इक्यावन पीठों पर भक्तगण बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना के लिए एकत्रित होते  है। जो उपासक इन शक्तिपीठों पर नहीं जा पाते, वे अपने निवास स्थल पर ही शक्ति का आह्वान करते हैं।

अधिकांश उपासक आजकल शक्ति पूजा रात में नहीं करते हैं, पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं। सामान्य भक्त ही नहीं, पंडित और साधु-महात्मा भी अब नवरात्र में पूरी रात जागना नहीं चाहते और न ही कोई आलस्य को त्यागना चाहता है। बहुत कम उपासक आलस्य को त्यागकर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए रात के समय का उपयोग करते हैं।

नवरात्र का महत्व मनीषियों ने अत्यंत सूक्ष्म रूप से वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझाने का प्रयत्न किया। रात में प्रकृति के कई  अवरोध समाप्त हो जाते हैं। विज्ञान भी इस बात को मानता  है। हमारे ऋषि-मुनि आज से हजारों वर्ष पूर्व  प्रकृति के प्रत्येक वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।

दिन में आवाज़ दूर तक नहीं जाती किंतु रात को आवाज बहुत दूर तक जाती है। इसके पीछे का कारण है  दिन में कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य  कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। रेडियो इस बात का उदाहरण है। कम शक्ति के स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है, जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से पकड़ लेता है आवाज को स्पष्ट सुना जा सकता है।

कारण यह कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं,ठीक उसी प्रकार मंत्र जाप के विचार तरंगों में भी दिन के समय में बाधा उत्पन्न करते हैं इसीलिए ऋषि-मुनियों ने रात का महत्व दिन की अपेक्षा अधिक माना  है। मंदिरों में घंटे और शंख के आवाज की तरंगों से  दूर-दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है। यह रात का वैज्ञानिक रहस्य है। जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं, उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय पर पूरी होती है।

संस्कृत व्याकरण के अनुसार ‘नवरात्रि’ कहना त्रुटिपूर्ण है। 9 रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण द्वंद समास है ।इसलिए यह शब्द पुल्लिंग रूप ‘नवरात्र’ में ही शुद्ध है।

पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियां हैं। उनमें मार्च और सितंबर माह में पड़ने वाली संधियों में साल के दो प्रमुख नवरात्र  हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की आशंका होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां उग्र रूप लेती हैं अत: उस समय स्वस्थ एवं शुद्ध , तन-मन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रहने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया ही ‘नवरात्र’ है।
अमावस्या की रात से अष्टमी तक या प्रतिपदा से नवमी की दोपहर तक व्रत-नियम चलने से नौ रात यानी ‘नवरात्र’ नाम से जाना जाता है।

जिसमे मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक के रूप में शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारु रूप से क्रियाशील रखने हेतु नौ द्वारों की शुद्धि का यह पर्व नौ दिन तक चलता  है। व्यक्तिगत महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे  और माने जाते हैं

हम प्रतिदिन शरीर को नियमित रखने के लिए विरेचन या शुद्धि करते ही हैं किंतु भीतरी सफाई के लिए हर नौ माह के अंतर से सफाई करनी चाहिए । सात्विक आहार व्रत का पालन, शरीर की शुद्धि, शुद्ध मन, उत्तम विचार , कर्म,सच्चरित्रता आवश्यक है क्योंकि स्वच्छ मन-मंदिर में ही ईश्वर का स्थायी निवास होता है।

श्लोकः नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततंनम:। नम: प्रकृत्यै भद्राये नियता: प्रणता: स्मताम्।
हे देवी आपको नमस्कार है, महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार है। प्रकृति एवं भद्रा को प्रणाम है। जय मां अम्बे |

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