रामधारी सिंह दिनकर
——– माधुरी भट्ट
भारतभूमि सदा से ही रही भरपूर रत्नों की खान,
समय समय पर अवतरित हुए यहाँ व्यक्तित्व महान।
दिनतेईस सितम्बर ज़िला बेगूसराय सिमरिया घाट ,
हुआ रत्न अवतरित यहाँ साल था सन उन्नीस सौ आठ।
धन्य हुआ कृषक परिवार पाकर ऐसा ओजस्वी लाल,
बाल्यकाल से ही जली रगों में जिसकीआज़ादी की मिसाल।
राष्ट्रीयता,क्रान्ति और विद्रोह भरे शब्दों से भरा जोश जन जन में,
शब्दों से बजाया बिगुल आज़ादी का,फूँके प्राण मुर्दों के भी तन में
देख भारतमाता की दयनीय दशा,भरी शब्दों की ऐसी हुंकार,
दिनकर कहलाएआधुनिक युगके लेखक और निबन्धकार।
एक ओर भरी शब्दों में ओज, विद्रोहऔर क्रान्ति की पुकार,
भर हुंकार पहुँचे ‘कुरुक्षेत्र ‘, होकर ‘रश्मिरथी’ पर सवार।
हुआ वीर रस के सङ्ग- सङ्ग सौंदर्य की देवी उर्वशी से प्यार,
मन के तारों से रच दिया, कोमल श्रृंगारिक भावनाओं का सार।
संस्कृति के चार अध्याय,कुरु क्षेत्र,रश्मिरथी, उर्वशी और हुंकार,
सङ्ग अन्य कई रच डाली ,परशुराम की प्रतीक्षाऔर हाहाकार ।
ऐसे अद्भुत रामधारी सिंहदिनकर जनजन के कवि हृदय को भाए
परतन्त्र भारत के विद्रोही और स्वतंत्र भारत के राष्ट्रकवि कहलाए
बारम्बार है नमन ऐसे व्यक्तित्व को,जिनके शब्दोंमें बसता जहान,
ऐसे व्यक्तित्व मिटते नहीं,सदा के लिए अमर हो बन जाते महान।