मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

सम्पादकीय

जीवन को सफल बनाने के लिए शिक्षा की जरुरत है या डिग्री की।

जीवन को सफल बनाने के लिए शिक्षा की जरुरत है या डिग्री की

ऋचा वर्मा पटना

 “जीवन को सफल बनाने के लिए शिक्षा की जरूरत है ,डिग्री की नहीं। हमारी डिग्री है -हमारा सेवा भाव ,हमारी नम्रता, हमारे जीवन के सरलता। अगर वह डिग्री नहीं मिली, अगर हमारी आत्मा जागृत नहीं हुई तो कागज की डिग्री व्यर्थ है।”

मुंशी प्रेमचंद का उपर्युक्त कथन जितना उनके युग में प्रासंगिक था उससे ज्यादा आज के युग में है ।जब डिग्रियां हासिल करने के लिए आपके पास योग्यता ना हो ,आप इतना परिश्रम ना कर सकें तो  भी येन केन प्रकारेण आप उसे हासिल कर सकते हैं। हम सब में से बहुतों ने ‘थ्री ईडियट्स’ फिल्म जरूर देखी होगी, और यह भी देखा होगा कि रण छोड़ दास के जगह किसी दूसरे युवक ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और डिग्री रणछोड़ दास को मिली , और बिना डिग्री वाला फुंगशुक वांगडू देश का एक जाना माना वैज्ञानिक बना।
ऐसे अगर मोटे तौर पर देखा जाए तो शिक्षा और डिग्री में अन्योन्याश्रय संबंध है क्योंकि शिक्षा की परिणति डिग्री में ही होती है। समस्या वहां होती है जब मनुष्य शिक्षा सिर्फ इसलिए ग्रहण करता है कि उसे डिग्री प्राप्त हो जाए और डिग्री के बल पर अपनी आजीविका पा सके । बहुत बार यह फार्मूला काम भी कर जाता है परंतु बहुत बार डिग्री के बावजूद व्यक्ति बेरोजगार ही रह जाता है और अगर रोजगार मिलता भी है तो अपना काम सही ढंग से न कर पाने के कारण छंटनी का भी शिकार हो जाता है।

कागज पर छपी इन  डिग्रियों  अनुपयोगिता को ध्यान में रखते हुए ही नयी शिक्षा नीति का प्रावधान किया गया है जिसमें डिग्रियों से ज्यादा व्यावहारिक प्रशिक्षण पर जोर देने की बात की गई है।
वह शिक्षा जो केवल डिग्री प्राप्त करने के उद्देश्य से दी जाती है ,उसमें बहुत बार रटंतु विद्या या फिर बिना तर्क के कोई भी तकनीकी ,वैज्ञानिक कलात्मक ज्ञान हासिल करने को प्रेरित करती है, बहुत बार समाज को महत्वकांक्षी बनाती है और युद्ध की ओर भी धकेलती है ऐसी शिक्षा सही अर्थ में शिक्षा नहीं हो सकती।

शिक्षा संस्कृत भाषा के ‘शिक्ष’ धातु से बना शब्द है जिसका अर्थ है सीखना। तो सीखने और रटने में बहुत अंतर है, सीखने का अर्थ है किसी भी विषय को अच्छी तरह से समझना उसका सही दिशा में उपयोग करना जबकि रटने का सिर्फ एक ही उद्देश्य होता है किसी तरह से डिग्री हासिल कर लेना।
शिक्षा का मकसद है एक खाली दिमाग को खुले दिमाग में परिवर्तित करना। सही ढंग से प्राप्त की गई शिक्षा इंसान को जीना सिखाती है और जिंदगी में सफलता प्राप्त कर कुछ अलग करने के लिए प्रेरित भी करती है। गलत ढंग से दी गई शिक्षा जिसका मकसद केवल डिग्री देना होता है ने तथाकथित पढ़े लिखे लोगों का एक ऐसा समुदाय तैयार कर दिया है जिन्हें पता ही नहीं है कि जो उन्होंने पढ़ा है उसका उपयोग कहां है। ऐसे लोग बहुत बार बेरोजगारी के एक बहुत बड़े कौम का भी हिस्सा बन कर रह जाते हैं। वही सही ढंग से शिक्षित लोग कुछ ना कुछ कर कर अपना व्यवसाय चला लेते हैं अपनी आजीविका भी कमा लेते हैं।

शिक्षा केवल विद्यालयों में पढ़े लिखे लोगों की थाती नहीं होती, और ना उनके सफलता के गारंटी ही होती है। बहुत सारे ऐसे व्यक्ति जैसे कि घनश्याम दास बिड़ला, बिल गेट्स ,स्टीव जॉब्स ,मार्क जुकरबर्ग ,अजीम प्रेमजी ,सुभाष चंद्रा ,कपिल देव सचिन तेंदुलकर ,मैरी कॉम ऐसे  जिनके पास बेशक ऊंची डिग्रियां नहीं हैं फिर भी वे दुनिया के मानचित्र के जगमगाते सितारे बने।
सही शिक्षा वही है जिसे इंसान अपनी जिंदगी में उतार ले और सीख ले, यही वजह है की भारतीय प्रशासनिक सेवा जैसे महत्वपूर्ण परीक्षाओं में ऊंची डिग्रियों  वालों की नहीं बल्कि उन विद्यार्थियों को जिन्होंने अपने स्कूल और कॉलेज के दौरान पढ़े गए विषयों को अच्छे ढंग से समझा है और सीखा है को तरजीह दी जाती है।

अगर कोई मेडिकल की डिग्री प्राप्त डॉक्टर किसी मरीज के रोग को पकड़कर अच्छे से इलाज नहीं कर सकता है ,अगर कोई एमबीए की डिग्री प्राप्त व्यक्ति भीड़ को नहीं संभाल सकता है तो ऐसे लोगों असफल ही माना जाएगा।
सही अर्थों में शिक्षा का अर्थ केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं है ना ही डिग्री धारी होना है। शिक्षा हमें जीवन के कठिन समय में चुनौतियों से सामना करना सिखाती है, हमारे अंदर अच्छे विचारों को लाती है और बुरे विचारों को बाहर करती है। एक शिक्षित माँ अपने बच्चों को सही संस्कार देती है उसे देश का एक अच्छा नागरिक बनने में सहायक होती है, सही- गलत में फर्क करना सिखाती है और अंत में उसे एक सफल व्यक्ति भी बनाती है।

मैं नहीं कहती की डिग्री लेना गलत है , परंतु योग्य और सही व्यक्ति को डिग्री देकर ही डिग्री की गरिमा को बरकरार रखा जा सकता है।
मैं अपनी बातों का अंत अपनी ही लिखी एक कविता से करती हूँ

साक्षर नहीं शिक्षित बनो

अक्षरों से रूबरू होना
बनाता है साक्षर,
वही अक्षर जब धीमे-धीमे,
दिमाग से उतरकर रूह तक पहुंचता है,
तो इंसान बनता है शिक्षित।

एक शिक्षित इंसान…मतलब शब्दों का जादूगर,
उसके हरेक शब्द मानो सागर मंथन से निकले मोती।
और इन मोतियों का जादू,
कभी स्पंदित करता मानवीय चेतनाओं को,
कभी अपनी आभा से अलख जगाता सर्व शिक्षा का,
देता है एक नई दिशा, जब उलझा – उलझा नजर आता है सारा परिवेश।

इसलिए साक्षर होना पर्याप्त नहीं है,जरुरी है इंसान काशिक्षित होना ।

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