मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

“सावन की हर एक बूंद “

“सावन की हर एक बूंद “

—-दीपिका  गहलोत,पुणे

सावन की हर एक बूंद कुछ सिखलाती है,
आँखों को ही नहीं मन को भी हर्षा जाती है ,
सावन तो है सदा से प्रतिक मिलन का ,
ये बात सदियों से ही मानी जाती है ,

मन मचल रहा है घने बादलों सा ,
जब भी बिजली चमक-२ जाती है,
विरह नहीं है इस के गुणों का अंश,
ये तो प्रेम का प्रतिक ही कहलाती है,

पहले सावन की बरसती बरखा में ,
खुशियों की परछाई झिलमिला जाती है ,
सतरंगी इंद्रधनुष का है अनोखा संबंध,
धूप और बारिश के मिलन से ये दृश्य दर्शाती है,

हर बाग़ खुद ही हरा-भरा हो जाता है,
साँझ का मिलन भी अनोखा चित्र दिखलाती है,
यूँ तो सुबह-शाम दिखलाती है अलग-२ रूप अपने,
पर सावन का मौसम इक जैसा रहना सिखलाती है,
सावन की हर एक बूंद कुछ सिखलाती है,
आँखों को ही नहीं मन को भी हर्षा जाती है , .

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