प्रियंका त्रिवेदी/बक्सर-डुमरांव
फिर वो पुरानी गली,जब सामने से गुजर गई।
बहुत से खट्टे-मीठे लम्हों को,फिर संजो गई।।
चिलमन में झांका तो ,फिर वो चेहरे दिखे।
वो पल लबों पे हंसी,आंखों में नमी छोड़ गई।।
जहां बीता मेरा बचपन,थी मैं जवान हुई।
उन खूबसूरत लम्हों की, फिर यादें दिला गई।।
उन जज़्बातों से जब दिल मैं थी,सूनी हो चली।
वो यादें,बातें,वो पल,मुझको झकझोर के गई।।
फिर वो पुरानी गली,जब सामने से गुजर गई।
बहुत से खट्टे-मीठे लम्हों को,फिर संजो गई।।
वो संग-साथी जो साथ छूटने पे,थे उदास हुए।
वो शहर,वो गली,नई उम्मीद,नई आस जगा गई।।