मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

नारी

मरियम ट्रुथ

नारी हूं मैं

ख़ामोश रहूं मैं,

तो सही हूं मैं

बोली तो बदतमीज हूं मैं

हां नारी हूं मैं

घुघंट या पर्दा ना करू

तो बदचलन हूं मैं

कोई देखें गंदी निगाहों से हमें

फिर भी गुनहगार हूं मैं

हां नारी हूं मैं

पराई घर की मैं,

पराए घर से मैं,

अपने घर से बे घर हूं मैं

पढ़ी लिखी मैं,

समझदार मैं

पेशे से ग्रहणी हूं मैं

हां नारी हूं मैं

बेटी, पत्नी, मां, सब रिश्ते में हूं मैं

हां नारी हूं मैं

बस जब खुद हक की बात करू

तो बदचलन हूं मैं

हां नारी हूं मैं….

1 COMMENTS

  1. मरियम ट्रुथ का नारी हुँ मैं, बहुत ही मार्मिक कविता लगी, सच्चाई को बयां करती हुई

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