मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

       कोई गाँधी बन पाता

  •                 कोई गाँधी बन पाता

                – विनोद प्रसाद, जगदेव पथ, पटना

बापू, तुम चुप क्यों हो !
तुम्हारी नज़रों के सामने ही
गीता पर हाथ रखकर
झूठ बोलने का
संकल्प लिया जाता है.
गांधीवादी आदर्शों की
रोज हत्या होती है
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में
शोषण और भ्रष्टाचार
फलता-फूलता हैं.
स्वार्थ में अंधे चंद लोगों ने
तुम्हारे जन्मदिन पर
राष्ट्रीय पर्व मनाने की
रस्म अदायगी तो करते हैं
पर स्वयं गाँधीवादी नहीं बनते,
उन आदर्शों का
अनुकरण नहीं करते
जिन्होंने तुम्हें महात्मा बना दिया.
तुम्हारे चित्र सिक्कों पर ढालकर,
चौराहे पर मूर्त्ति स्थापित कर
सम्मान का रिश्वत दिया जाता है
जिसकी लालसा तुम्हें नहीं रही.
मानवता की आजादी के लिए,
शोषण और भ्रष्टाचार के चंगुल से
समाज को मुक्ति दिलाने के लिए,
राष्ट्र की एकता, अखंडता
और सहिष्णुता की रक्षा के लिए,
आज फिर तुम्हारी जरूरत है.

काश, तुम फिर आते !
काश, कोई गाँधी बन पाता !!

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