डॉ.अनुज प्रभात
आंचलिकता आधारित रचना करने वाले कई कहानीकार हुए.इनमें हिंदी भाषा के क्षेत्र में प्रथम नाम नागार्जुन का आता है . उपरांत यदि किसी ने आंचलिकता को लेकर ठेठ, गवई शब्दों का प्रयोग कर विश्व में किसी को ख्याति मिली तो केवल फणीश्वरनाथ रेणु को.जिन्होने आंचलिकता को एक नई परिभाषा देते हुए आंचलिक शब्द को अपने अंदाज में लिखा.किंतु इसे हम भूल नहीं सकते कि पूर्व किसी भी कहानीकार,उपन्यासकार ने अपनी रचना के साथ आंचलिक शब्द लिखने का प्रयास नहीं किया.संभवतः अपनी कृति के प्रतिआंचलिकता को लेकर स्वयं से विचार नहीं कर पाये हो या आत्मविश्वास का अभाव रहा हो.लेकिन रेणु जी का आत्मविश्वास इतना प्रबल था कि किसी भी प्रकार की टिप्पणी की चिंता किए बगैर स्वयं ही “मैला आँचल ” शीर्षक के नीचे कोष्ट में लिखा ‘ एक आंचलिक उपन्यास ‘ और इसकी सार्थकता भी सिद्ध हुई जो एक कालजयी कृति है. एक सच भी है, जीवन कहीं है तो गाँव में ही है.और गांव को यदि जानना हो तो गाँव में जाकर जीना होगा. ” नाच्यो बहुत गोपाल ” अमृत लाल नागर जी का उत्कृष्ट उपन्यास माना जाता है. लेकिन उस उपन्यास में आत्मा तभी वे डाल पाये जब छ: महीने तक मलीन बस्ती में जाते रहे और उनके भीतर के जीवन को खंगालते रहे. तो रेणु ने जो लिखा, उसमें जीकर लिखा.
मैला आँचल में प्रयुक्त एक-एक शब्द में स्वर, लय. और ताल है जिसे पकड़ना , चुनना फिर उसी रुप लिखना सहज नहीं है लेकिन रेणु ने लिखाऔर सबों ने माना कि वास्तव में यदि रेणु ने लिखा -एक आंचलिक उपन्यास तो सही लिखा.
रेणु की रचनाओं में ऐसा इसलिए हो पाया कि वे गांव के थेऔर गाँव में रहकर रचना करते थे.मारे गये गुलफ़ाम (तीसरी कसम) का हीरामन गाँव का था, ठेस का सिरचन गाँव का था.कहने का तात्पर्य यह कि उनकी रचनाओं के सभी पात्र, जीवित पात्र रहा है.कहानी हो या उपन्यास पात्र उसकी आत्मा रही है. उसी आत्मा को लेकर रेणु ने रचना की जिसे संवदिया. पंचलाईट, लाल पान का बेगम, रसप्रिया आदि के नाम से हम जानते हैं. रेणु की कहानियों को लेकर प्रसिद्ध समालोचक प्रेम कुमार मणि ने जब कहा ‘ गाँव हिंदी कहानियों का केंद्र ‘ तो स्वत: स्पष्ट हो जाता कि रेणु ने स्वयं से क्यों लिखा “मैला आँचल ” के लिए ‘एक आंचलिक उपन्यास ‘