खुले आसमान में खुशियाँ उड़ी

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(डाॅ पुष्पा जमुआर, पटना

खुले आसमान में खुशियाँ उड़ी

जिन्दगी में रंग घुली

जब मन के कोने से निकल कर

रंगों भरी  मेरी पतंग उड़ी ।

सारे ग़मों को भूला कर

अपना-पराया भूल कर

मजबूत डोर में बन्ध कर

उड़ी रे  उड़ी मेरी पतंग उड़ी ।

क्या हुआ जो दुख अंग-अंग भींगें

क्या हुआ जो आँखें बूंद बूंद बहें

क्या हुआ जो लबों में लब्ज़ घुटे

क़यामत तक कहर मिले  पर

 हँसते हुए मेरी पतंग उड़ी ।

जमाने वाले हँसो नहीं तुम्हारी व्यंग्यात्मक हँसी

हमें नहीं तोड़ेगी

बल्कि उत्प्रेरित करेगी

तुम्हारी डोर काटने को

और कट जाएगी तुम्हारी पतंग ।

क्यों कि  अब मेरी पतंग उड़ने लगी । जहाँ तक नज़र गयी

मेरी पतंग उड़ चली

वो देखो उन्मुक्त गगन में

मेरी पतंग उड़ी

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