–अनिल रश्मि
मैं नन्हीं सी ,प्यारी सी बेज़ुबान ,
“परी ” रोती है़ पा ss पा ss
तेरे जाने के बाद …।
जब मैं सो रही होती हुँ ,
तुम मुझे छोड़ चल देते हो ,
मेरे काँपते हुए होंठ ,
मेरी अनंत अंतस – वेदना ,
सिसकियों को तुमने महसूस किया है़ कभी….॥
पापा तेरे जाने के बाद ….
जब मैं उठती हुँ ,
आँखें सबसे पहले तुम्हें हीं निहारती हैं ।
एक एक कमरों में ,
पर्दे के पिछे ,
तुम्हें खोजती हुँ ,
जब तुम नहीं मिलते …….कलेजा!!
ऐंठ जाता है़ ,
बालमन क़ा उत्सव ,
जेठ की दुपहरिया की तरह पतझड़ में बदल जाता है़ ..
पापा तेरे जाने के बाद
तेरी बेदर्द ….जख़्म भरे मोहब्बत देख,
जब मैं रुदाली बनती हुँ ,
तब माँ बड़ी निर्ममता से मुझे पिटती है़ ,
तुम नहीं होते …निः शब्द हो जातीं हुँ
पापा तेरे जाने के बाद ….
ना खाने की सुध,
ना खेलने क़ा मन ,
तुम कहाँ, कैसे , किस हाल में हो
,मैं अतीव चिंतित रहती हुँ …।
पापा तेरे जाने के बाद …
क्यों छोड़ जाते हो मुझे ….?
तुम्हारे कलेजे में ” कुहुक ” नहीं उठती …?
मैं दरवाज़े पर तेरा इन्तेज़ार करती हुँ ,
तेरे आने तक ,
एकदिन ” परी ” बन उड़ जाऊंगी,
तब तुम्हें मेरे ना होने क़ा अहसास होगा ,
पापा तेरे जाने के बाद