जो स्थान मां के आंचल का है, वही पिता के गमछे का। विवाह के बाद विदा होती बेटी पिता के सीने से लगकर रोती है। पिता अपने गमछे से उसके आंसू पोछता है। यह गमछा एक प्रतीक है। भरोसे का,पिता इसके ज़रिए जताता है कि आगे की ज़िंदगी में भी आंसू की जगह नहीं होगी।मां का आंचल बच्चों के लिए ज़मीन है, तो पिता का गमछा माथे के ऊपर का आसमान। गमछे को भारत के हर राज्य और कई एशियाई देश में लोग अलग-अलग ढंग से उपयोग में लाते हैं। लेकिन पूर्वांचल और बिहार में यह लोक-जीवन का अभिन्न अंग है। कोरोना महामारी के बाद तो यहां इसकी उपयोगिता और बढ़ गई है। ऐसे नाज़ुक वक़्त में पूरब का गमछा ही है, जो धूप, लू और प्रदूषण के साथ-साथ वायरस से भी बचा रहा है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इन दिनों 80 प्रतिशत लोग मास्क के विकल्प के रूप में गमछे का उपयोग कर रहे हैं।
मणिपुर यानी पूर्वोत्तर में गमछा मेहमानों को सम्मान स्वरूप भेंट दिया जाता है। देश के कई बड़े माइक्रो बायोलॉजिस्ट का दावा है कि गमछे को अगर तीन लेयर में यूज किया जाए, तो यह मास्क से कहीं ज्यादा कारगर है।
गमछे और मास्क में यही बुनियादी फ़र्क है। मास्क से कोई अपना सिर्फ मुंह और नाक ढंक सकता है, मास्क किसी को चिलचिलाती धूप से राहत नहीं दे सकता। मास्क से आप पसीना नहीं पोछ सकते। ठंड लगने पर मास्क से कानों को नहीं बांध सकते। थकान होने पर आप मास्क को बिछाकर उस पर लेट नहीं सकते। गर्मी के मौसम में ठंडक पाने के लिए मास्क को गीला करके शरीर पर नहीं रख सकते
गांव के खेत खलिहानों से निकल कर गमछा महानगर के फैशन और जीवन-शैली में भी अपनी जगह बना रहा है। न्यूज़ रूम के एंकर से लेकर फ़िल्मी सितारे इसका प्रचार करने से नहीं हिचक रहे। सोशल मीडिया पर गमछे की बढ़ती प्रसिद्धि ने इसे युवाओं में एक स्वैग का पहनावा बना दिया है। हिंदी सिनेमा में गंवई जीवन का प्रतिनिधत्व करने वाला गमछा तेज़ी से शहरी जीवन का स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है।
नीलोत्पल जी ने सोशल मीडिया पर इससे जुड़ी घटना का ज़िक्र किया। इसके बाद हैशटैग गमछा से बिहार और पूर्वांचल के लोगों ने एक मुहिम छेड़ दी। इसका नतीजा यह हुआ कि उस रेस्तरां के मैनेजमेंट को माफ़ी मांगनी पड़ी। साथ ही हुए इंडियन फ़ूड फेस्टिवल में उसके मैनेजर से लेकर बैरों तक को गमछा पहना कर भोजन परोसना पड़ा।
गमछे के बारे में नीलोत्पल मृणाल कहते हैं, ‘प्रधानमंत्री द्वारा गमछा उपयोग करने के बाद लोगों ने गमछे को अप-टू-डेट माना है, जबकि खेतिहर जीवन की शुरुआत से ही गमछा पहनावे का एक ज़रूरी हिस्सा रहा है। यह एक मानसिक विकृति है कि हम किसी समुदाय या क्षेत्र के विशेष पहनावे, भोजन या रहन-सहन को हीन भावना से देखें। उसे सम्मान न दें।’
जब पति की गौना से पहले किसी कारणवश मृत्यु जाती थी,तो बहू के मायके उस लड़के की निशानी के तौर पर गमछा उसे ससुराल लाने के लिए भेजा जाता था। राजनीति में भी गमछे का महत्व है। अगर गमछे की राजनीतिक प्रासंगिकता की बात करें तो अलग-अलग सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा से संबंध रखने वाले लोग अलग-अलग रंगों का गमछा लगाते हैं। जैसे वामपंथी विचारधारा के लोग लाल गमछा, दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग भगवा और बहुजन विचारधारा से प्रेरित लोग नीला गमछा लगा रहे हैं।हिंदू कर्मकंड पद्धति में गमछा एक अहम अंग वस्त्र माना गया है। ‘ शुभ कार्यों में बाएं कंधे पर होता है और श्राद्ध कर्म में दाहिने पर। क्योंकि हम दाहिने हाथ से गमछे को बाएं कंधे पर सहज स्थिति में रख सकते हैं। लेकिन दाहिने हाथ से गमछे को दाहिने कंधे पर रखना ज़रा असहज है। श्राद्ध क्रिया में दाहिने कंधे पर गमछे का होना आदमी के असहज स्थिति में होने का परिचायक है। कोई भी पूजा-पाठ अनुष्ठान हो ,मंदिर या किसी से आशीर्वाद लेना हो तो सर पर गमछा होना अनिवार्य है। इससे प्राप्त होने वाली उर्जा क्षीण नहीं होती है।’गमछे ने किसान और मज़दूरों के श्रम के पसीने से लेकर खुशी और ग़म के आंसू के स्वाद तक चखे हैं। अब यह कोरोना काल में राष्ट्रीय फ़लक पर लहरा रहा है।