मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

सम्पादकीय

बढ़ती महंगाई की मार….

बहुत हुई महंगाई की मार अबकी बार……. जैसे लुभावने नारे से , कुछ जनता भ्रम में पड़कर भारी मतों से नेता जी को जिताया। आज वही जनता महंगाई से त्रस्त हैं। पिछले कुछ वर्षों से खाने पीने का सामान का दम आसमान छू रहा है। रोजमर्रा की चीजों पर महंगाई बेतहाशा बढ़ा है।कोरोनकाल में आम जनता की कमाई घट गई, वही जरूरत के चीजें आम जनता पूरा नहीं कर पा रही हैं।

कोरोना में करोड़ों लोगों का जॉब चला गया, लोगो का कारोबार ठप हो गया। आमदनी कम होने के कारण तीन चौथाई से अधिक आबादी के आगे जीवन जीना कठिन हो गया। सब्जियों से लेकर, अनाज, खाने का तेल,दूध, ब्रेड, पेट्रोल, डीज़ल,रसोई गैस, ट्रेन-बस किराया जैसे बुनियादी चीजों के दाम बढ़ने के कारण मेहनत करने वाले और निम्न  मध्यवर्गीय परिवार को पेट भरकर पौष्टिक भोजन मिलना  दूभर हो गया है। अस्पताल, स्कूल फीस, दवाएं, बिजली पानी का बिल हर चीज में आग लगी हुई हो।

इतनी महंगाई के बावजूद मीडिया चैनलो और अखबारों में ये मुद्दा सुर्खियों से बाहर है। न्यूज चैनल पर चलता हैं पाकिस्तान में टमाटर महँगी, लोग महंगाई से तबाह, लेकिन अपने देश में महंगाई से लोगों का कितना बुरा हाल है अभी इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं होता, नही कहीं छपता हैं।

महंगाई से गरीबो के साथ साथ मध्यवर्गीय परिवार त्रस्त है। इनके परिवार कैसे चलेगा, उनके सामने विकट परिस्थिति उत्पन्न हो गया हैं। महंगाई से अमीरों को कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन महंगाई गरीब जनता का कमर तोड़ रखा है।आज भी तीन चौथाई आबादी प्रति व्यक्ति आय 30 से 40 रु रोजाना हैं। इससे देश के हालात पता चलता है।

शहरों में आज भी मजदूर दस से बारह घंटे काम करके दस हजार से 12 हजार रु ही कमा पाते हैं। किसी दिन मजदूर थोड़ा कम काम किया तो मालिक पैसा काट लेते हैं। इनकी आधी कमाई तो किराए के मकान, बिजली, बस भाड़े में चली जाती हैं।  बाकी बचा आधी कमाई से जैसे तैसे परिवार का भरण- पोषण कर पाते है। अगर कोई बीमारी या शादी करना हो तो साहुकारों से कर्ज लेकर खर्च करते हैं। साहूकार इनकी शोषण भी करते हैं।

गरीबों के थाली से दाल गायब हो चुका है। आलू -प्याज भी महंगी होने के कारण ये लोग कभी- कभी मार भात नमक से ही काम चला लेते हैं ।बीमारी होने पर बहुत जरूरी हो तभी डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाते हैं।

कोई लोग कई मिल पैदल चलकर काम पर जाते हैं, ताकि भाड़े का पैसा बचाया जा सके। तीन चौथाई आबादी के भोजन में प्रोटीन और विटामिन जैसे जरूरी तत्वों की कमी देह जा रहा है। सरकार जनता की बात सुन नहीं रही हैं, लोग लाचार हो गए हैं। लोग करे तो क्या करे बड़ी समस्या से जूझ रहे है।

कुछ लोग तो सुसाइड जैसे गलत काम कर ले रहे हैं। गर्भवती महिलाओं को पोष्टिक से भरपूर खाना नहीं मिल पाने के कारण कुपोषित बच्चों का जन्म देने पर मजबूर हैं। भारत मे कम वजन वाले बच्चों की संख्या ज्यादा है।

ग्रामीण क्षेत्रों में  बहुत परिवारों को दो वक़्त का शुद्ध से खाना उपलब्ध नहीं हो पाता है। मनमोहन सरकार ने स्वीकार की की लगभग 3000 बच्चे कुपोषण और उससे होने वाले बीमारियों से मर जाते है।

महंगाई के लिए सरकार की नीति और पूंजीवादी व्यवस्था जिम्मेदार हैं। किसानों से 10 से 14 रु धन खरीदकर उसी का चावल 40 से 50 रु मोल से बेचा जाता है।ये पूंजीवादी व्यवस्था नहीं तो क्या कहेंगे?

गरीब लोगों और मिडिल क्लास परिवार को  अपना परिवार चलाने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। लोग चिंताग्रस्त होकर बीपी, शुगर जैसे बीमारियों से ग्रसित हो रहे है।

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