राष्ट्रभाषा के विस्तार में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का है विशेष योगदान – महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद और पीर मुहम्मद मुनिस के सहयोग से हुई थी इसकी स्थापना

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जिन दिनों देश में स्वतंत्रता आंदोलन जोर पकड़ रहा था और सरकारी स्कूल-कॉलेज के बहिष्कार की एक लहर पूरे देश में फैल रही थी, हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने, न सिर्फ हिन्दी की सेवा के लिए लोगों को जागरूक किया, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत को देश से बाहर करने के लिए साहित्यकारों की एक पूरी फौज तैयार की I

हालांकि इस कार्य में नागरी प्रचारिणी सभा, हिंदी विद्यापीठ देवघर, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास सहित अनेक साहित्यिक संस्थाओं ने भी अपना अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन हिन्दी साहित्य सम्मेलन की भूमिका विशेष उल्लेखनीय रही है

माना जाता है कि महात्मा गांधी के भारतीय राजनीति में प्रवेश करने के साथ-साथ हिंदी प्रचार के लिए जो संस्थाएं स्थापित हुई थी, उनका प्रमुख लक्ष्य राष्ट्रीय संग्राम में भाग, लेने के लिए उचित वातावरण तैयार करना था I महात्मा गांधी के भारतीय राजनीति में प्रवेश करने से पूर्व

भी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक आदि नेताओं ने राष्ट्रीय मंच पर हिंदी को अपनाकर उन के माध्यम से देश भर में स्वतंत्रता का उद्घोष करने का पावन व्रत ले लिया था I

गांधीजी ने इस कार्य को आगे बढ़ाकर सन 1918 में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा मद्रास की स्थापना की थी I उनकी इस भावना के पीछे यही दृष्टि थी यदि देश में राष्ट्रीय जागरण का संदेश देने के लिए हिंदी का प्रचार किया जाए और इसके माध्यम से जो हिंदी प्रचारक तैयार होंगे, वास्तव में वे ही इस संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे

सन् 1910 में इसी निमित्त प्रयाग में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई। इस महान कार्य में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय, राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन आदि राष्ट्र-भक्त हिन्दीसेवी महापुरुषों का विशेष योगदान रहा I I

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रारंभ से ही हिन्दी साहित्य जगत की बड़ी विभूतियों और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े सारे बड़े नेताओं का केन्द्र हुआ करता था। डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद समेत कई बड़ी विभूतियां साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया I  जब 1919 में सम्मेलन का 10वाँ अधिवेशन बिहार प्रांत में सुनिश्चित हुआ। उस समय हिन्दी साहित्य से जुड़े कुछ नौजवानों के मन में यह विचार आया कि प्रदेश में भी प्रांतीय सम्मेलन का गठन किया जाना चाहिये। इनमें प्रमुख थे भगवानपुर (मुजफ्फपुर) के प्रतिष्ठित विद्वान श्वासुदेव नारायण के पुत्र रामधारी प्रसाद, जो सम्मेलन की स्थापना के सूत्रधार थे, ने डॉ राजेंद्र प्रसाद से संपर्क साधा उस समय तक राजेंद्र प्रसाद अखिल भारत वर्षीय साहित्य सम्मेलन से जुड़ चुके थे, और उन्हीं के प्रयास से, मुंबई में महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी के सभापतित्व में संपन्न हुए 9वें अधिवेशन में स्वीकृति प्राप्त कर, बिहार में सम्मेलन का 10वाँ अधिवेशन आयोजित होना था I राजेन्द्र प्रसाद ने बेतिया से पीर मुहम्मद मुनिस को पटना बुलाया। पटना से लौटने के क्रम में श्री मूनिस, वासुदेव बाबू से मिलने आए थे। यहीं चर्चा के क्रम में श्री प्रसाद ने प्रांतीय साहित्य सम्मेलन के गठन का प्रस्ताव रखा I यह बात दोनों को पसंद आयी और उन्होंने इसकी स्वीकृति प्रदान कर दी। इस कार्य में हिन्दी अध्यापक लक्ष्मीनारायण सिंह, कॉलेजियेट स्कूल के अध्यापक मथुराप्रसाद दीक्षित, म्युनिसिपैलिटि के तत्कालीन चेयरमैन वैद्यनाथ प्रसाद सिंह, अधिवक्ता लक्ष्मीनारायण, पीर मुहम्मद मूनिस, लतीफ हुसैन

इन सब के अथक प्रयास के बाद अंतत: मुजफ्फरपुर के हिन्दू भवन के प्रांगण में 19 अक्टूबर 1919 को जगन्नाथ प्रसाद काव्यतीर्थ  की अध्यक्षता में हिन्दी सेवियों और हिन्दी प्रेमियों की एक सार्वजनिक सभा हुई, जिसमें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना का निर्णय लिया गया। इसी बैठक में यह भी निर्णय किया गया कि सम्मेलन का प्रथम अधिवेशन, मुजफ्फरपुर जिला की ओर से, सोनपुर मेले के अवसर पर 8-9 नवम्बर को आयोजित किया जाये। 11 सदस्यों की एक कार्य समिति का भी गठन किया गया I स्वागत समिति के अध्यक्ष बनाये गये बैधनाथ प्रसाद सिंह और प्रधान मंत्री हुए मथुराप्रसाद दीक्षित । आगे चलकर फिर अधिवेशन के लिये, मलयपुर (मुँगेर) निवासी और ‘हास्यरसावतार’ के रुप में ख्यात पंडित जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी को सभापति बनाया गया। इस तरह बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का स्वरुप प्रकट हुआ।

अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन की तर्ज पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रत्येक वर्ष अलग-अलग जिलों में अधिवेशन होने लगे, जिनमें प्रदेश के सभी नामचीन साहित्यकारों एवं साहित्य – प्रेमियों की उपस्थिति होती थी, जिनमें राजेन्द्र प्रसाद (भारत के प्रथम राष्ट्रपति), बिहार के प्रथम प्रधान मंत्री ( मुख्यमंत्री ) डॉ0 श्रीकृष्ण सिंह, अनुग्रह नारायण सिंह, प्रथम शिक्षा मंत्री बदरी प्रसाद वर्मा, आचार्य शिवपूजन सहाय, आचार्य रामवृक्ष बेनीपुरी, प्रो. मनोरंजन प्रसाद सिंह, गंगा शरण सिंह, पंडित जनार्दन प्रसाद झा “द्विज”,  पीर मुहम्मद मुनिस आदि के नाम प्रमुख रुप से शामिल हैं।

बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के रूप में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े लेख को साहित्यकारों, पत्रकारों, संपादकों को एक ऐसा मंच मिला, जहां वे अपनी बात खुलकर अपने सहयोगियों और नई पीढ़ी के कवि साहित्यकार मित्रों के साथ कह सकते थे I इसका परिणाम सुखद रहा I आरंभ में सम्मेलन का कोई कार्यालय नही था। कोई मंत्री, जो अपने घर मे स्थान उपलब्ध करा देता था, वहीं सम्मेलन का कार्य चलाया जाता था। सम्मेलन के प्रथम सभापति (स्वागताध्यक्ष) बैधनाथ प्रसाद सिंह (मुजफ्फरपुर नगरपालिका के तत्कालीन अध्यक्ष) के प्रयत्न और सहयोग से मई 1921 में मुजफ्फरपुर में एक मकान किराए पर ले लिया गया, जिसमें कार्यालय चलने लगा। इसी में सम्मेलन का पुस्तकालय भी आरंभ किया गया। उनके प्रयत्न से नगर की पुरानी संस्था हिन्दी भाषा प्राचारणी सभा , जो मृतप्राय हो गयी थी, की तमाम पुस्तकें और फर्निचर सम्मेलन को प्राप्त हो गये I  बिहार हिन्दी साहित्य के स्वरुप में नया और ऐतिहासिक मोड़ तब आया, जब सन् 1936 में पूर्णिया में आयोजित सम्मेलन के 13वें अधिवेशन में प्रसिद्ध विद्वान् और हिन्दी संसार के सुपरिचित साहित्यकार पंडित छविनाथ पाण्डेय सम्मेलन के प्रधानमंत्री बनाये गये। उनके परामर्श पर, इसी अधिवेशन में सम्मेलन का कार्यालय पटना में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव भी पारित किया गया। अँग्रेजी दैनिक  सर्चलाइट के तत्कालीन संपादक मुरलीमनोहर मिश्र के प्रयत्न से बिहार सरकार के तत्कालीन मंत्री मो. अजीज ने एक्जिबिशन रोड स्थित अपने मकान का एक कमरा उपलब्ध कराया। उसमें सम्मेलन का कार्यालय स्थापित किया गया। प्रदेश मे अंतरिम सरकार बन चुकी थी। डॉ0 श्रीकृष्ण सिंह प्रधान मंत्री ( मुख्यमंत्री ) थे I उनके मंत्रिमंडल में अनेक मंत्री ऐसे थे, जो साहित्य सम्मेलन से पूर्व से ही आंतरिक रूप से जुडे हुए थे उन सबों के सहयोग से कदमकुआँ में एक भू-खंड उपलब्ध हुआ। भवन निर्माण में बनैली के साहित्य प्रेमी राजा कीर्त्यानंद सिंह ने दस हजार रुपये का सहयोग किया I सन 1942 के आंदोलन में सक्रिय रहने के कारण पंडित छविनाथ पांडेय गिरफ्तार कर लिये गये। इससे निर्माण कार्य बाधित हुआ। सन् 1946 में बौंसी ( बांका ) अधिवेशन में प्रसिद्ध साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मेलन के प्रधान मंत्री चुने गये। उन्होंने इस कार्य को आगे बढाया। इसमे राज्य सरकार की ओर से तीन किश्तों में 72 हजार 5 सौ रुपये की राशि प्राप्त हुई थी। इस प्रकार 1938 से शुरू हुआ भवन-निर्माण कार्य 1951 में पूरा हुआ। उन्हीं दिनों सम्मेलन से आचार्य शिवपूजन सहाय और आचार्य नलिनविलोचन शर्मा सक्रियता से जुड गये। 1936 से शुरू हुए सम्मेलन की शोध – पत्रिका ‘साहित्य’ के प्रकाशन का दायित्व इन्होंने अपने कंधे पर उठाया I

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