मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

लिफ्ट

 ऋचा वर्मा

रोज की तरह आज फिर विक्रम ने स्कूटी की हैंडल थाम ली और गरिमा पीछे बैठ गई। “लेकिन हम जा कहां रहें हैं”, गरिमा ने अकचका कर पूछा। “अरे मैडम जी, पिछले तीन दिनों से आप मुझे अपने स्कूटी में लिफ्ट दे रहीं हैं, तो मेरी तरफ से आपको एक ट्रीट तो बनता है न…।“

विक्रम के बातचीत करने की आकर्षक शैली गरिमा के दिलो दिमाग को ताजगी से भर दिया करती,  ठीक वैसे ही जैसे उमस भरी दुपहरी के बाद चली हवा,  शाम को अपनी ताजगी से भर देती है, और गरिमा विक्रम के निमंत्रण को अस्वीकार नहीं कर सकी।

रेस्तरां में खाने पीने के दौरान विक्रम के बात चीत करने के ढंग से गरिमा को यह बात समझ में आ गई, कि पिछले तीन दिनों से लंच के बाद आफिस जाने के क्रम में घर के आगे चौराहे पर मई की भीषण गर्मी में पसीने से लथपथ विक्रम का मिलना न ही संयोग था,  न ही उसका गरिमा से लिफ्ट मांगना किराया बचाने की जुगत थी और न ही स्कूटी खुद ड्राइव करने की उसकी पेशकश अपने से बड़े उम्र की स्त्री के प्रति सम्मान व्यक्त करने का तरीका था,  बल्कि यह सब विक्रम पूर्व प्रायोजित योजना के तहत कर रहा था।

“आप इतना सब अकेले कैसे कर लेतीं हैं, मेरा मतलब है अपने बूढ़े माता-पिता की देखभाल, अपने अनाथ भतीजे अंश की इतनी अच्छी परवरिश, समाज – सेवा…. नौकरी।” एक ही मुहल्ले में रहने के कारण,  विक्रम गरिमा के विषय में सब कुछ जानता था। “इन सबमें ‘करने’ जैसी कौन सी बात है?… हाँ मुझे बेकार बैठना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। “गरिमा का  सपाट सा जवाब था।

” लेकिन फिर भी…. अच्छा, आपने अब तक शादी क्यों नहीं की….आपको अकेलापन खलता नहीं है?

अभी तक गरिमा को विक्रम का साथ अच्छा लग रहा था, बड़े भाई और भाभी की दुर्घटना में मृत्यु और उसके बाद घर की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेने के एवज में पति और ससुराल वालों से लगातार किचकिच और अंत में तलाक…,   बीते कुछ वर्षों से गरिमा की जिंदगी सुखे रेगिस्तान सी हो गई थी, विक्रम की बातें उसकी शुष्क जिंदगी पर पानी की पहली बौछारों सा असर दे रही थीं। पर, इस बार गरिमा ने विक्रम की आवाज में एक सवाल के साथ – साथ और भी बहुत कुछ महसूस किया, जिसकी पुष्टि विक्रम ने अपने  हाथों से  गरिमा के हाथों को स्पर्श कर, कर दिया, विक्रम के दिल में चल रही भावना का आभास होते ही शर्म और गुस्से से गरिमा का चेहरा लाल हो गया, लेकिन पड़ोसी होने के नाते गरिमा ने इन बातों को नजरअंदाज करने में ही भलाई समझी।

“अब हमें चलना चाहिए” कहते हुए तत्क्षण गरिमा और फिर उसके पीछे – पीछे विक्रम दोनों निकल पड़े, गरिमा निश्चिंतता से पीछे बैठी सोच रही थी,  “आज आखिरी बार है, अब मैं विक्रम को कभी लिफ्ट नहीं दूंगी….” तभी विक्रम ने स्कूटी रोक दी,”क्या हुआ” गरिमा ने अचानक स्कूटी रोकने का कारण पूछा।

“मैं यहीं उतर जाता हूँ, मुहल्ले के लोग हमलोगों को एक साथ देखेंगे तो बातें बनायेंगे”। गरिमा स्कूटी से उतरी, इस बार उसका चेहरा क्रोध और अपमान से लाल हो गया, जी में आया कि एक जोरदार तमाचा रसीद करे विक्रम को… परंतु वह ऐसा नहीं कर पाई… स्कूटी स्टार्ट किया और घर की तरफ बढ़ चली।

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