-डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहितकवि,साहित्यकार
जिला झालावाडराजस्थान
मानव सृष्टि का सबसे खूबसूरत विकसित मस्तिष्क वाला जीव ईश्वर की अनमोल कृति है। जो सोचता है बोलता है गति करता है नित नये विकास की ओर बढ़ता हैं। वह परिश्रम कर सफलता प्राप्त करता है विज्ञान और तकनीकी के इस युग मे मनुष्य ने अपनी नई पहचान बनाई है। आज का मनुष्य भौतिकता की अंधी दौड़ में लगा है। वह भौतिक विलासिता के अधिक से अधिक साधनों को जुटाने में लगा है लेकिन मानव मूल्यों को भूलता जा रहा है धन येन केन प्रकारेण एकत्रित करने के लिए वह इंसानियत की हद को पार कर हैवानियत पर उतर आता है। मर्यादा त्याग समर्पण दया सहयोग सहानुभूति करुणा सेवा जैसे मानव मूल्य शने शने समाप्त होते जा रहे हैं। मनुध्य खुदगर्ज़ हो गया। अपनी मतलबपरस्ती में मस्त रहने लगा है अनर्गल गतिविधयों में खुद को व्यस्त कर दुनिया के सामने झूँठी व्यस्तता के मायावी जाल में फंस कर रह गया है हमारे मानव मूल्यों का हास चिंताजनक है। सब कुछ पा लेने का अर्थ धन दौलत बटोटना तो नहीं होता है न।
हम देखते हैं परिवारों में रिश्तों के भीतर अब पहले जैसा अपनत्व नहीं मिलता। घरों में दीवारें बनने लगी है। नफरत की इन दीवारों को बनने से रोकना होगा। तभी घर मन्दिर सा लगेगा। मूल्य हमें परिवार में बुजुर्गों से मिलते हैं। उनके द्वारा प्रदत्त शिक्षाओं को ही हम जीवन मे अंगीकार करते हैं। किसी भी व्यक्ति का कार्य व व्यवहार मानव मूल्यों पर आधारित होता है।बचपन से घर परिवार का वातावरण संस्कार ही मानव मूल्य सिखाता है।बचपन से माता पिता शिक्षक मानव मूल्य सिखाते हैं। अच्छे मां मूल्य रखने वाले मनुष्य को विश्वसनीय माना जाता है। समाज मे उसका सम्मान होता है लोग उसे अपना आदर्श मानने लगते हैं।मनुध्य के चरित्र व व्यक्तित्व के विकास में मानव मूल्यों का होना आवश्यक है।