मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

बरसता इश्क़, भटकते आशिक़ और डूबता शहर

 

प्रियांशु त्रिपाठी

देर रात जबआप बहुत ठके हुए बिस्तर में हमसफ़र की बाहों की तरह सिमट कर सोते हैं और तभी सुबह अचानक खौफ़नाक मंजर आपके आँखों के सामने हकीकत में घटे तो आपकी प्रकिया क्या होगी?, मुझे लगता है जैसे मेरी हुई बिलकुल वैसी ही होगी । सुबह 4:13 में एक भव्य शरीर का मासूम नर्म दिल व्यक्ति आशीष बाथरूम जाने के लिए जब मुझे लाँधते हुए जाते है तभी मेरी थकी पलकों के बीच से आँखें झांकती है और डर जाती है मानो कोई भूत हो। मुँह से डरे हुए आवाज़ निकलती है मालिक कहाँ, वो आशीष जी बड़े आराम से कहते है मालिक बाथरूम जा रहे है । कल रात ही मैंने खबर पढ़ी थी लैंड स्लाइदिंग से 9 लोगों की मौत, खैर इसका संबंध ऊपर हुए घटना से कोई जुड़ाव नहीं रखता, मैं नींद में था ना कुछ भी सोच रहा था । मैं भी उठकर तैयार होकर हरि ओम और किशन का गेट ठकठकाता हूँ, क्योंकि मुझे लग रहा था वो सोये होंगे मगर नहीं दोनों वीर सेनानी 2:30 बजे से वाइवा का तैयारी कर रहे हैं, जब आप ना पढ़े हो तो डर कम लगता है पर सामने वाले दोस्त आपका बोले कि पढ़ रहा था दिल में गज़ब सा धकधक होता है । हम पाँच वक्त से तैयार होकर घाट के लिए सुबह 5 बजे निकल जाते हैं । आप सब सोच रहे होंगे घूमने मगर हम वाइवा के तैयारी के लिए और चाय पीने जा रहे थे ।

घाट पर सच कहे तो सुबह का नज़ारा बहुत खूबसूरत था

, धीमी धूप, बहती पवन, नदी की ठंडक, चिड़ियों की चहचहाहट और लोगों की ना खटकने वाली भीड़ जहाँ इतने भीड़ में भी एक अलग शांति थी । और इस घाट से मुझे देखने मिला जहाँ एक ओर लोग खुशी मना रहे है और दूजी ओर कुछ अपनो को अलविदा कहने भी आये हैं, जहाँ एक ओर रूह पवित्र हो रही हैं, दूसरी ओर जिस्म राख ये भी एक बेहद खुबी है बनारस की जो ये हकीकत आप को दिखा देता है कि मनुष्य खुद को चाहे तो किसी माहौल में ढाल सकता है और परिस्थिति एक होती है अनुकुल बनाना पड़ता है । मगर हम सब डरे हुए थे क्योंकि वाइवा दस बजे से था । थोड़ी देर पढ़ाई करके हम 7 बजे के करीब वापस आते है और एक चाय की दुकान पर चाय पीने लगते हैं । तोशवंत बिस्किट की भी डिमांड कर देते है लगे हाथ हैं हम भी खा ही लेते है और चाय पर चर्चा ना हो और सकारात्मक परिणाम ना आये ऐसा हो सकता है, वही हुआ भइया ने एक नाश्ते की दुकान बताई जहाँ हम वक्त से पहले हाज़िरी लगा आये । और वहाँ की छोटी कचोरी और केसर की चासनी में डूबी तैरती जलेबी बस आप ये समझ ले मंहगी बात चीत क्योंकि हमें आशीष और हरि ओम के रहते फिक्र नहीं थी । बस आपका मन हो क्योंकि धन तो वो ले ही आये थे । जल्दी जल्दी हम सब ठुसते है और इतना खा लेते हैं कि वाइवा के पहले नींद आने लगती है । मैं और तोशवंत नहा लेते हैं बाकी दो मेधावी लोग बिना नहाये लैपटॉप के आगे प्रस्तुत हो जाते हैं । किशन का वाइवा 1 बजे था तो सर देर से नहाकर आते है और वाइवा देते हैं । मन बनता है सोने का मगर चाय पीने का मन था और ठूसने का निकल जाते हैं मुसाफिर फिर ठूससे की ओर ।

चाय पीते हुए भइया को फिर गुदगुदी रूप अंदाज़ में मैं पुछता हूँ कोई खाने का बढ़िया जगह, भइया फिर एक बेहतरीन सलाह देते है अशोक भोजनालय, हम फिर दौड़े चल जाते है । वहाँ खाना सर्व करने वाले मज़ेदार होते हैं, गाकर खाना देते हैं भोजपुरी में और तभी मैं भोजपुरी में पुछता हुँ “भइया कहाँ घर बा”। भइया खुशी से बोले गया बा, तहर? मेैं भी उसी अंदाज़ में हमहु भोजपूर से ही बानी फिर क्या जो मलाई वाली स्पेशल दही खाने को मिली, वो स्वाद ही कुछ और था । अपनी भाषा में प्रेम थोक में टपकता है और इसी प्रेम में चार रोटी पेट में, मगर बाज़ीगर तोश और आशीष ने सात से आठ चढ़ा लिया । हरिओम और किशन ने भी दही जमकर उडेल लिया । मैं भी कम नहीं खाता हूँ पर भरे पेट के बाद भी रोटी चार खा लिया । अब किसी की हालत चलने को ना थी । टोटो लिए, कमरे में पहुँचे और सोने की कोशिश पर आशीष आनलाइन ढ़लइया का मिठाई खाने के चक्कर में सोने ना दिये, तोशवंत पबजी आशीष पबजी, फिर हम तीन दोनों सोये बालकों को उठाकर तैयार कराने लगते हैं । देर शाम कहीं जाने की असफल कोशिश के बाद वी आर लैंडिंग ऑन अस्सी घाट । सब बहुत खुश और दुखी भी एक कार्यक्रम थप हो गया तब ये यहाँ आये । आप घाट पर जैसे ही पहुँचते है नाव वाले आपको पानी में पटकने के लिए तैयार । सर नाव आइये आरती दिखा दे, ये, वो। नौजवान गलतियां करते हैं डैसिंग किशन तैयार होने लगे मगर हमारे मौसम वैज्ञानिक तोशवंत ने इशारा किया मौसम देखो बारिश होगी । और वो कहते है और बरसात शुरू । सब सेड के नीचे छुप जाते हैं, और झुँड में से एक लड़की बाहर निकलती है और बरसात में झूमना शुरू करती है, मन तो मेरा भी था पर जूता भींग जाता इसलिए सिर्फ़ उसे देखकर बरसात को महसूस कर रहे थे । घुंघराले बाल, सर पर भींगा दुप्पटा, धूंधली आँखें क्योंकि मुझमे उसमे बारिश की चादर दरार बन रही थी । बाकी फिर मैडम असली रूप में बाबा बनकर नाचने लगती है और लोग अपने अंदाज़ में चिललाने । पहले मुझे लगा वो रील बना रही है मगर वो बारिश फील कर रही थी । खैर बाद में करीब से देखने का मौका मिला और हाव भाव से मंहगी बात चीत लगी । हम भी जल्द बारिश के बचकर भागे और आराम से बाटी चोखा खाने का इंतज़ार करने लगे।

कुछ हल्का खाकर मन कहता है बारिश रूकने से रही हमें चलना चाहिए । बाहर का नज़ारा देखकर टोटो से ज़्यादा नाव की जरूरत महसूस हुई । बनारस में पानी का जलजला मानो गंगा नदी और सड़क में फर्क नहीं । हम टोटो में तैरते हुए जा रहे थे और बाइक वाले हमको नहला रहे थे । मंजिल से 50 मीटर पहले टोटो वाले भइया कहते है यही उतर जाइये आगे टोटो बिगड़ जायेगा । हम भी उतर जाते हैं और वहां पानी घुटने को गले लगाते हुए कमर चूमने को तैयार । आशीष जी की तबियत भी थोड़ी खराब हो रही हैं और जूते भी गीला नहीं करना था । फिर क्या आशीष और हरि ओम इमरान हासमी बनकर पैंट घुटने के ऊपर चढ़ाकर जूता हाथ में उठाकर गले लगने चले जाते हैं घीमे घीमे । और बीच में फसे एक टोटो वाले भइया इन दोनों का भव्य शरीर देखकर मन में कहते है मेरे करण अर्जुन आ गये यही टोटइया पार लगायेंगे पर वो दोनों ठके हारे बगल से निकल जाते हैं । मैं तोशवंत और किशन रोड़ से जाकर रिक्शा से आने का सोचते हैं और ये सफल उपाये रहता है, हम सफल तरीके से मंजिल पर पहुँच जाते हैं । और जल्द नहाकर खाकर बिस्तर में खो जाते है और सपने पलकों पर नृत्य करने लगते हैं जैसे वो लड़की बारिश में झूम रही थी । आप बारिश में डूबते तैरते नृत्य महसूस करे, इस सफ़र के किरदार कल फिर आपसे रूबरू होंगे ।

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