मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

ज़िंदगी

–प्रियांशु त्रिपाठी

ज़िंदगी

फ़ुरसत ना मिले

फिर भी अपना ख़्याल रखना

और हर रोज़ बेहतर होने की ख़ातिर दिल में बस एक सवाल रखना

कि कल सुबह

मेरी ज़िंदगी में क्यों हो?

क्या मक़सद हो कल उठने का?

जवाब मिले तो चैन से सो जाना, और ना मिले

तो फिर रात सवाल बुनना

ख़्वाब ओढ़कर

हकीकत की तलाश करना

हकीकत तकिये के सिरहाने होगी

उसे समेट कर खुद में,

बड़े नर्म अंदाज़ से

उसके कानों में अपनी बात कहना

मैं सो रहा हूँ

मगर कल उठना है

तुम, मेरे अंदाज़ से संभलकर रहना मेरी बात पर नाराज़ हो

या खुश हो

जो भी हो बेझिझक मुझसे कहना

फिर क्या ज़िंदगी हो

तो बस ऐसी हो जिसमे,

हर सुबह तेज रफ़्तार रहे

और वहीं होंठों पर हल्की हँसी लिए

फ़ुरसत सी शाम का इंतज़ार रहे ।।

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *