मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

मेरा गाँव

        मेरा गाँव

कुमारी ईला कृति

कहाँ गई वो आम की डाली,

कहाँ गए वो झूले |

कहाँ गए वो ताल- तलैया,

और गाँव के मेले |

चुनमुन,राधा,श्याम और भोला

,अब लुका- छुपी न खेले |

कहाँ गया वो सोनपापडी वाला,

गटृा ,निबू,चाट के ठेले |

न चूल्हा -चाकी दिखे कहीं भी,

न भाजी न मोटी रोटी |

बाजरे की बेरहिन भी भूले,

और गोईंठा की लिटृी |

होली की हुल्लडबाजी न रही,

न माटी के दीप |

नए परिवेश के चकाचौंध में,

हम भूले अपनी रीत |

सुना है अब गाँव ,गाँव न रहा,

सब बदल गया यहाँ पर |

मेरा मन बस अब ये पूछे,

मेरा गाँव है अब कहाँ पर |

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