मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

फरवरी और तुम

फरवरी और तुम

—–{प्रत्यूष आत्मदर्शी}

इस फरवरी भी मेरे ख़्वाबों के पड़ोस में

आई हो तुम

इस फरवरी भी अपने आंगन के झूले पर

बैठी हो तुम

इस फरवरी भी गुनगुनी धूप को

स्याह जुल्फों से सहलाती हो तुम

इस फरवरी भी मेरे माऊथ ऑर्गन पर है

तुम्हारी फ़रमाईशों की धुन

इस फरवरी भी मेरे ख्वाबों में ही कहीं

गुनगुनाती हो तुम

इस फरवरी भी मेरे दिल की टीस में

कहीं समाई हो तुम

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