मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

प्रीति स्पर्श

 —–डॉ. रमेश नारायण

पूर्व विभागाध्यक्ष

ए0एन0कॉलेज हिंदी विभाग

 

एक नन्हीं सी छुवन की नाव खेकर

मैं समुंदर पार जाना चाहता हूं|

आंख देखी दूरियों का भूलना,

पास की परछाइयों पर झूलना|

सांस की भटकन सिहर कर थामना,

आंख आंखों में सजल शुभकामना|

एक दुबली सी किरण की आहटों पर

धुंध को अंकवार लेना चाहता हूं|

बौर माखे पवन की सी डोलती

बड़ी पलकें मौन हो हो बोलतीं|

लालसा उत्ताप के स्वर घोलती,

 नेह-नलिनी नयन पंखुड़ी खोलती|

सांझ की धुंधली ललाई छेदकर

चांदनी में रंग भरना चाहता हूं|

अतल तल में एक कुहरा जागता,

 सजग मीठी आस को पहचानता|

अनगिनत सुकुमार सपने पालता,

 आंसुओं के मोल बिकना जानता|

द्वार बैठे पहरुओं की टोह लेकर,

अबूझे सब भेद लेना चाहता हूं|

मैं समुंदर पार||

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *