मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

नज़र आपकी


 

–प्रियांशु त्रिपाठी

मुझे जो आप बदला देख रहे है

मुझे आप एकतरफ़ा देख रहे है

भार सब दिल ने संभाल रखे हैं

आप हुज़ूर मेरा चेहरा देख रहे है

कानों में जो बात रखी जमाने ने

आप वहीं मिल-जुला देख रहे हैं

मेरे साथ मेरी परछाई भी है

नहीं आप कहाँ सिलसिला देख रहे हैं

मुझमें जो बारूद था वो बूझ गया

आप बस खाली छर्रा देख रहे है

मैं जो था कब का ख़त्म हो चुका हूँ

आप आख़िर काफ़िला देख रहे है ।।

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