कोर्ट रूम नं 9

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—–प्रियांशु त्रिपाठी

हर सुबह एक सी होती है मगर दिन एक जैसा ही नहीं गुज़रता है और आज का दिन कुछ हट कर ही रहा हमारे लिए । मैं, तोशवंत और अरविंद रोज़ाना की तरह द्वारका कोर्ट में अपने काम को निपटा, कोल्ड कॉफी को गले से लगा, ऑफिस की ओर बढ़ चले थे । काले कोर्ट में गर्मी तो लगती है मगर आनंद भी आता है । वक्त से पहले हम ऑफिस टपक पड़ते हैं और वहाँ अनीश सर और सुहाष मिलते है बाकी सभी कही ना कही कोर्ट में व्यस्त थे । मैं फाइल लेकर एक मज़ेदार केस को फिर आगे जीने की कोशिश करने लगता हूँ और तोशवंत लैपटॉप ऑन करके कुछ काम करने लगते है, अरविंद जी भी फाइल में गुम हो जाते है तभी सबके फोन की रिंग एक साथ बजती हैं । तोशवंत कहते है, पीयूष सर का कॉल आ रहा है और सब पर आ रहा हैं, कॉल पर सर ने पूछा कौन कौन है ऑफिस में, हम पाँचों ने अपना जिक्र किया । सर बोले मेरी गाड़ी में चार लोगों के बैठने की जगह है, गुड़गांव कोर्ट में एक शानदार केस है सिखने का मौका है, चार लोग चले आओ मैं 10 मिनट में महिपालपूर टी प्वाइंट पर मिलता हूँ । अनीश सर को कुछ काम था ऑफिस में इसलिए वो वहीं रूकना ठीक समझे । सुहाष भी बोले आप तीन चले जाओ मैं भी थोड़ा यहाँ काम कर लेता हूँ । अनीश सर बोले बहुत दूर है 40 मिनट दिखा रहा है पहुँच पाओगे । हम तीनों बोले कोशिश को करके देखना बनता है, कैब बुक हो जाती है और हम तीन ऑफिस से कूदते फानते नीचे उतर जाते हैं । सर का फिर कॉल आता है कि कहाँ पहुँचे अब पहुँचे तो नीचे ही थे बस पर हौसला गगन छू रहा था, हमने बोला बस सर कैब आने को है । सर कहते है अब तक तो आपको निकल जाना चाहिए था, लेट कर दिये, कोई नहीं आओ मैं वेट करूंगा । हम तीनों कैब वाले अंकल से बोलते हैं सब आपके हाथ में है आप टाइम से हमें पटक देना । सर फिर कॉल करते है और कहते है कैब वाले से बोलना कि डायरेक्ट गुड़गांव कोर्ट लेते आये वहीं मिलता हूँ । हमने भी हामी भर दी । अरविंद की हालत थोड़ी सही नहीं लग रही थी, उन्हें रास्ते में गाड़ी रोक कर उल्टी करना पड़ा । तोशवंत से मैंने पानी लेने को कहा तो तोशवंत कहते है कि कोर्ट में ले लेंगे । मेैं सदमे में था कि वो लड़का अभी परेशान है और मैं मर्म उसको 40 किलोमीटर आगे देने की बात सुन रहा हूँ । बात खारिज होती है पानी की बोतल लेकर हम फिर जहाज की रफ़्तार से गुड़गांव कोर्ट पहुँच जाते हैं । काम के सुर में हमें ये भी नहीं पता चला कि हम दूसरे राज्य में टपक गये थे । बाकी जल्द दौड़ते हुए कोर्ट परिसर में दाख़िल होकर कोर्ट रूम नं 9 का पता पुछते है तभी एक वकील सर इशारे में बता देते है कि गुरू सही दिशा में दौड़ लगाई है थोड़े और आगे है । कोर्ट के बाहर सर खड़े थे और पहुँचने की खुशी हमसे ज़्यादा उनके चेहरे पर झलक रही थी । सर ने बात कहते वक्त बहुत शानदार बात बता दी, उन्होंने ने कहा कि फैसला लेने में बहुत सोचना नहीं चाहिए और आप एक बार सोच लिए कि आपको ये करना है फिर दिमाग में उनके विपरीत कुछ नहीं चलना चाहिए ।

लंच के बाद कोर्ट रूम में दाख़िल होते है और जज साहब आकर बैठ जाते है । पीयूष सर बोलने को तैयार और पीयूष सर से कान्फिडेन्स गज़ब सीखने को मिलता है । कोर्ट में जिंदादिल लहज़े से सर से अपनी बात रखी और जिस तरीके से सर से इस मामले को समझा और इस पर काम किया, निश्चित तौर पर हमारा गुड़गांव आना और सर को सुनना एक सुखद अनुभव था । कोर्ट रूम नं 9 का माहौल उस वक्त एकदम शांत हो गया और लगा कि सिर्फ़ पीयूष सर बोल रहे है और जज साहब भी सर की बातों को समझ रहे है । इस सुनवाई के बाद हम सब वापस आने के लिए निकल पड़ते हैं और सर कोर्ट से पार्किंग तक आते आते केस हमें बताते है और हमें तब लगता हैं कि ये मामला इतना ज़रूरी क्यों है । कार में पीयूष सर, तोशवंत, अरविंद और मैं बैठकर ऑफ़िस की ओर निकल पड़े और केस पर थोड़ी और बात होने पर पता लगा कि कैसे बड़े लोगों के खिलाफ़ केस गलत होने के बाद भी थोड़ा झूका रहता है । खैर इस केस पर काम करने का मौका पीयूष सर ने हमें दिया है, उम्मीद है कुछ ठीक कर पाये । कुछ दूर चलते हुए कार में सन्नाटा पसर गया और मुझे सन्नाटा बहुत खलता है ।  सर ने मैंने पूछ लिया कि आपकी इच्छा लॉ में आने की कब और क्यों हुई । और मुझे लगता है अब घर लौटने के बाद कि आज अगर ये सवाल ना पूछते तो बहुत कुछ सीखने से वंचित रह जाते हम तीन । सर ने अपनी कहानी इस अंदाज़ में बताई कि लगा कि रिश्क लेने की आदत सर की नई नहीं है, सर ने कुछ ऐसी बात बताई जिसे सुनकर लगा दोस्त हम सब भी चाहते तो यही है मगर हिचक जाते है करने से । सर ने कहा – आप कितना भी पैसा काम लो मगर आप अपने काम से समाज को कुछ बेहतर नहीं दे पा रहे फिर काम करना और पैसा कमाना बेकार है । एक बात और कि तुम अकेले भी हो अगर सच के साथ हो तो जीत तुम्हारी निश्चित है । ट्रैफिक सिग्नल पर रूके तो एक कार देखते हुए सर ने पूछा किसी को कार का शौख है, हमने हंसकर कुछ ज्यादा सटीक बोला तो नहीं मगर हमने ना का ही इशारा किया, सर ने वहाँ भी एक बात कि शौख बड़े करो तभी ज़िंदगी में मजा है वरना कहीं कुछ ज़िंदगी में बाकी रह जायेगा । हमारा गुड़गांव आना सफल क्यों रहा ये कार से ऑफिस आने पर पता चल गया । आप किसी के साथ आम बोल चाल हंसी मजाक मस्ती में जो सीखते हो वो किसी एक सेमेस्टर या साल तक ही सीमित नहीं रहता है बल्कि ज़िंदगी के हर परीक्षा में काम आता है । दिल्ली सफ़र बाकी है, बाकी सब कुछ आज लिख देना नाइंसाफ़ी है, जल्द मिलते हैं ।

हर सुबह एक सी होती है मगर दिन एक जैसा ही नहीं गुज़रता है और आज का दिन कुछ हट कर ही रहा हमारे लिए । मैं, तोशवंत और अरविंद रोज़ाना की तरह द्वारका कोर्ट में अपने काम को निपटा, कोल्ड कॉफी को गले से लगा, ऑफिस की ओर बढ़ चले थे । काले कोर्ट में गर्मी तो लगती है मगर आनंद भी आता है । वक्त से पहले हम ऑफिस टपक पड़ते हैं और वहाँ अनीश सर और सुहाष मिलते है बाकी सभी कही ना कही कोर्ट में व्यस्त थे । मैं फाइल लेकर एक मज़ेदार केस को फिर आगे जीने की कोशिश करने लगता हूँ और तोशवंत लैपटॉप ऑन करके कुछ काम करने लगते है, अरविंद जी भी फाइल में गुम हो जाते है तभी सबके फोन की रिंग एक साथ बजती हैं । तोशवंत कहते है, पीयूष सर का कॉल आ रहा है और सब पर आ रहा हैं, कॉल पर सर ने पूछा कौन कौन है ऑफिस में, हम पाँचों ने अपना जिक्र किया । सर बोले मेरी गाड़ी में चार लोगों के बैठने की जगह है, गुड़गांव कोर्ट में एक शानदार केस है सिखने का मौका है, चार लोग चले आओ मैं 10 मिनट में महिपालपूर टी प्वाइंट पर मिलता हूँ । अनीश सर को कुछ काम था ऑफिस में इसलिए वो वहीं रूकना ठीक समझे । सुहाष भी बोले आप तीन चले जाओ मैं भी थोड़ा यहाँ काम कर लेता हूँ । अनीश सर बोले बहुत दूर है 40 मिनट दिखा रहा है पहुँच पाओगे । हम तीनों बोले कोशिश को करके देखना बनता है, कैब बुक हो जाती है और हम तीन ऑफिस से कूदते फानते नीचे उतर जाते हैं । सर का फिर कॉल आता है कि कहाँ पहुँचे अब पहुँचे तो नीचे ही थे बस पर हौसला गगन छू रहा था, हमने बोला बस सर कैब आने को है । सर कहते है अब तक तो आपको निकल जाना चाहिए था, लेट कर दिये, कोई नहीं आओ मैं वेट करूंगा । हम तीनों कैब वाले अंकल से बोलते हैं सब आपके हाथ में है आप टाइम से हमें पटक देना । सर फिर कॉल करते है और कहते है कैब वाले से बोलना कि डायरेक्ट गुड़गांव कोर्ट लेते आये वहीं मिलता हूँ । हमने भी हामी भर दी । अरविंद की हालत थोड़ी सही नहीं लग रही थी, उन्हें रास्ते में गाड़ी रोक कर उल्टी करना पड़ा । तोशवंत से मैंने पानी लेने को कहा तो तोशवंत कहते है कि कोर्ट में ले लेंगे । मेैं सदमे में था कि वो लड़का अभी परेशान है और मैं मर्म उसको 40 किलोमीटर आगे देने की बात सुन रहा हूँ । बात खारिज होती है पानी की बोतल लेकर हम फिर जहाज की रफ़्तार से गुड़गांव कोर्ट पहुँच जाते हैं । काम के सुर में हमें ये भी नहीं पता चला कि हम दूसरे राज्य में टपक गये थे । बाकी जल्द दौड़ते हुए कोर्ट परिसर में दाख़िल होकर कोर्ट रूम नं 9 का पता पुछते है तभी एक वकील सर इशारे में बता देते है कि गुरू सही दिशा में दौड़ लगाई है थोड़े और आगे है । कोर्ट के बाहर सर खड़े थे और पहुँचने की खुशी हमसे ज़्यादा उनके चेहरे पर झलक रही थी । सर ने बात कहते वक्त बहुत शानदार बात बता दी, उन्होंने ने कहा कि फैसला लेने में बहुत सोचना नहीं चाहिए और आप एक बार सोच लिए कि आपको ये करना है फिर दिमाग में उनके विपरीत कुछ नहीं चलना चाहिए ।

लंच के बाद कोर्ट रूम में दाख़िल होते है और जज साहब आकर बैठ जाते है । पीयूष सर बोलने को तैयार और पीयूष सर से कान्फिडेन्स गज़ब सीखने को मिलता है । कोर्ट में जिंदादिल लहज़े से सर से अपनी बात रखी और जिस तरीके से सर से इस मामले को समझा और इस पर काम किया, निश्चित तौर पर हमारा गुड़गांव आना और सर को सुनना एक सुखद अनुभव था । कोर्ट रूम नं 9 का माहौल उस वक्त एकदम शांत हो गया और लगा कि सिर्फ़ पीयूष सर बोल रहे है और जज साहब भी सर की बातों को समझ रहे है । इस सुनवाई के बाद हम सब वापस आने के लिए निकल पड़ते हैं और सर कोर्ट से पार्किंग तक आते आते केस हमें बताते है और हमें तब लगता हैं कि ये मामला इतना ज़रूरी क्यों है । कार में पीयूष सर, तोशवंत, अरविंद और मैं बैठकर ऑफ़िस की ओर निकल पड़े और केस पर थोड़ी और बात होने पर पता लगा कि कैसे बड़े लोगों के खिलाफ़ केस गलत होने के बाद भी थोड़ा झूका रहता है । खैर इस केस पर काम करने का मौका पीयूष सर ने हमें दिया है, उम्मीद है कुछ ठीक कर पाये । कुछ दूर चलते हुए कार में सन्नाटा पसर गया और मुझे सन्नाटा बहुत खलता है ।  सर ने मैंने पूछ लिया कि आपकी इच्छा लॉ में आने की कब और क्यों हुई । और मुझे लगता है अब घर लौटने के बाद कि आज अगर ये सवाल ना पूछते तो बहुत कुछ सीखने से वंचित रह जाते हम तीन । सर ने अपनी कहानी इस अंदाज़ में बताई कि लगा कि रिश्क लेने की आदत सर की नई नहीं है, सर ने कुछ ऐसी बात बताई जिसे सुनकर लगा दोस्त हम सब भी चाहते तो यही है मगर हिचक जाते है करने से । सर ने कहा – आप कितना भी पैसा काम लो मगर आप अपने काम से समाज को कुछ बेहतर नहीं दे पा रहे फिर काम करना और पैसा कमाना बेकार है । एक बात और कि तुम अकेले भी हो अगर सच के साथ हो तो जीत तुम्हारी निश्चित है । ट्रैफिक सिग्नल पर रूके तो एक कार देखते हुए सर ने पूछा किसी को कार का शौख है, हमने हंसकर कुछ ज्यादा सटीक बोला तो नहीं मगर हमने ना का ही इशारा किया, सर ने वहाँ भी एक बात कि शौख बड़े करो तभी ज़िंदगी में मजा है वरना कहीं कुछ ज़िंदगी में बाकी रह जायेगा । हमारा गुड़गांव आना सफल क्यों रहा ये कार से ऑफिस आने पर पता चल गया । आप किसी के साथ आम बोल चाल हंसी मजाक मस्ती में जो सीखते हो वो किसी एक सेमेस्टर या साल तक ही सीमित नहीं रहता है बल्कि ज़िंदगी के हर परीक्षा में काम आता है । दिल्ली सफ़र बाकी है, बाकी सब कुछ आज लिख देना नाइंसाफ़ी है, जल्द मिलते हैं ।

हर सुबह एक सी होती है मगर दिन एक जैसा ही नहीं गुज़रता है और आज का दिन कुछ हट कर ही रहा हमारे लिए । मैं, तोशवंत और अरविंद रोज़ाना की तरह द्वारका कोर्ट में अपने काम को निपटा, कोल्ड कॉफी को गले से लगा, ऑफिस की ओर बढ़ चले थे । काले कोर्ट में गर्मी तो लगती है मगर आनंद भी आता है । वक्त से पहले हम ऑफिस टपक पड़ते हैं और वहाँ अनीश सर और सुहाष मिलते है बाकी सभी कही ना कही कोर्ट में व्यस्त थे । मैं फाइल लेकर एक मज़ेदार केस को फिर आगे जीने की कोशिश करने लगता हूँ और तोशवंत लैपटॉप ऑन करके कुछ काम करने लगते है, अरविंद जी भी फाइल में गुम हो जाते है तभी सबके फोन की रिंग एक साथ बजती हैं । तोशवंत कहते है, पीयूष सर का कॉल आ रहा है और सब पर आ रहा हैं, कॉल पर सर ने पूछा कौन कौन है ऑफिस में, हम पाँचों ने अपना जिक्र किया । सर बोले मेरी गाड़ी में चार लोगों के बैठने की जगह है, गुड़गांव कोर्ट में एक शानदार केस है सिखने का मौका है, चार लोग चले आओ मैं 10 मिनट में महिपालपूर टी प्वाइंट पर मिलता हूँ । अनीश सर को कुछ काम था ऑफिस में इसलिए वो वहीं रूकना ठीक समझे । सुहाष भी बोले आप तीन चले जाओ मैं भी थोड़ा यहाँ काम कर लेता हूँ । अनीश सर बोले बहुत दूर है 40 मिनट दिखा रहा है पहुँच पाओगे । हम तीनों बोले कोशिश को करके देखना बनता है, कैब बुक हो जाती है और हम तीन ऑफिस से कूदते फानते नीचे उतर जाते हैं । सर का फिर कॉल आता है कि कहाँ पहुँचे अब पहुँचे तो नीचे ही थे बस पर हौसला गगन छू रहा था, हमने बोला बस सर कैब आने को है । सर कहते है अब तक तो आपको निकल जाना चाहिए था, लेट कर दिये, कोई नहीं आओ मैं वेट करूंगा । हम तीनों कैब वाले अंकल से बोलते हैं सब आपके हाथ में है आप टाइम से हमें पटक देना । सर फिर कॉल करते है और कहते है कैब वाले से बोलना कि डायरेक्ट गुड़गांव कोर्ट लेते आये वहीं मिलता हूँ । हमने भी हामी भर दी । अरविंद की हालत थोड़ी सही नहीं लग रही थी, उन्हें रास्ते में गाड़ी रोक कर उल्टी करना पड़ा । तोशवंत से मैंने पानी लेने को कहा तो तोशवंत कहते है कि कोर्ट में ले लेंगे । मेैं सदमे में था कि वो लड़का अभी परेशान है और मैं मर्म उसको 40 किलोमीटर आगे देने की बात सुन रहा हूँ । बात खारिज होती है पानी की बोतल लेकर हम फिर जहाज की रफ़्तार से गुड़गांव कोर्ट पहुँच जाते हैं । काम के सुर में हमें ये भी नहीं पता चला कि हम दूसरे राज्य में टपक गये थे । बाकी जल्द दौड़ते हुए कोर्ट परिसर में दाख़िल होकर कोर्ट रूम नं 9 का पता पुछते है तभी एक वकील सर इशारे में बता देते है कि गुरू सही दिशा में दौड़ लगाई है थोड़े और आगे है । कोर्ट के बाहर सर खड़े थे और पहुँचने की खुशी हमसे ज़्यादा उनके चेहरे पर झलक रही थी । सर ने बात कहते वक्त बहुत शानदार बात बता दी, उन्होंने ने कहा कि फैसला लेने में बहुत सोचना नहीं चाहिए और आप एक बार सोच लिए कि आपको ये करना है फिर दिमाग में उनके विपरीत कुछ नहीं चलना चाहिए ।

लंच के बाद कोर्ट रूम में दाख़िल होते है और जज साहब आकर बैठ जाते है । पीयूष सर बोलने को तैयार और पीयूष सर से कान्फिडेन्स गज़ब सीखने को मिलता है । कोर्ट में जिंदादिल लहज़े से सर से अपनी बात रखी और जिस तरीके से सर से इस मामले को समझा और इस पर काम किया, निश्चित तौर पर हमारा गुड़गांव आना और सर को सुनना एक सुखद अनुभव था । कोर्ट रूम नं 9 का माहौल उस वक्त एकदम शांत हो गया और लगा कि सिर्फ़ पीयूष सर बोल रहे है और जज साहब भी सर की बातों को समझ रहे है । इस सुनवाई के बाद हम सब वापस आने के लिए निकल पड़ते हैं और सर कोर्ट से पार्किंग तक आते आते केस हमें बताते है और हमें तब लगता हैं कि ये मामला इतना ज़रूरी क्यों है । कार में पीयूष सर, तोशवंत, अरविंद और मैं बैठकर ऑफ़िस की ओर निकल पड़े और केस पर थोड़ी और बात होने पर पता लगा कि कैसे बड़े लोगों के खिलाफ़ केस गलत होने के बाद भी थोड़ा झूका रहता है । खैर इस केस पर काम करने का मौका पीयूष सर ने हमें दिया है, उम्मीद है कुछ ठीक कर पाये । कुछ दूर चलते हुए कार में सन्नाटा पसर गया और मुझे सन्नाटा बहुत खलता है ।  सर ने मैंने पूछ लिया कि आपकी इच्छा लॉ में आने की कब और क्यों हुई । और मुझे लगता है अब घर लौटने के बाद कि आज अगर ये सवाल ना पूछते तो बहुत कुछ सीखने से वंचित रह जाते हम तीन । सर ने अपनी कहानी इस अंदाज़ में बताई कि लगा कि रिश्क लेने की आदत सर की नई नहीं है, सर ने कुछ ऐसी बात बताई जिसे सुनकर लगा दोस्त हम सब भी चाहते तो यही है मगर हिचक जाते है करने से । सर ने कहा – आप कितना भी पैसा काम लो मगर आप अपने काम से समाज को कुछ बेहतर नहीं दे पा रहे फिर काम करना और पैसा कमाना बेकार है । एक बात और कि तुम अकेले भी हो अगर सच के साथ हो तो जीत तुम्हारी निश्चित है । ट्रैफिक सिग्नल पर रूके तो एक कार देखते हुए सर ने पूछा किसी को कार का शौख है, हमने हंसकर कुछ ज्यादा सटीक बोला तो नहीं मगर हमने ना का ही इशारा किया, सर ने वहाँ भी एक बात कि शौख बड़े करो तभी ज़िंदगी में मजा है वरना कहीं कुछ ज़िंदगी में बाकी रह जायेगा । हमारा गुड़गांव आना सफल क्यों रहा ये कार से ऑफिस आने पर पता चल गया । आप किसी के साथ आम बोल चाल हंसी मजाक मस्ती में जो सीखते हो वो किसी एक सेमेस्टर या साल तक ही सीमित नहीं रहता है बल्कि ज़िंदगी के हर परीक्षा में काम आता है । दिल्ली सफ़र बाकी है, बाकी सब कुछ आज लिख देना नाइंसाफ़ी है, जल्द मिलते हैं ।

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