मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

कल्याणी राष्ट्रभाषा हमारी सँस्कृत है जन्मदायिनी।

कल्याणी राष्ट्रभाषा हमारी सँस्कृत है जन्मदायिनी।

इन्दु उपाध्याय (संचिता)

 

कल्याणी राष्ट्रभाषा हमारी सँस्कृत है जन्मदायिनी।
ओत प्रोत है समरस से प्यारी अपनी मातृ वाणी।

उद्घोषक स्वतंत्रता की, जन जन में उल्लास भरे।
बनी एकता की संवाहक, प्रसार मानवता की करे।

भाव इसके जन-गण-मन सबका जीवन उजियार करे।।
दूर रहे सब वैर -भाव से   एकजुटता का आह्वान करें।

उच्चरित होती हिंदी की विमल-वाणी जिस, मुख से
अर्थ हो जाते स्वयंq मुखरित ,सप्त-स्वर में वेद-ऋचाओं के।

क्षमता आत्मसात् करने की  ,अपनी हिंदी अति विलक्षण ।
यह भाषा है अति  प्रियकर,   आकर्षित करती तत्क्षण।।

हम हिंदी का तेज़ बढ़ाएं,ऐसी प्रतिज्ञा हम  सभी  करें  ।
किसी भी भाषा का कोई  हो, मित्रता  को  नहीं लजाएं।।

हिंदी  में  हम सब बोलें हरसू ,विपन्नता का भाव न आए ।
पालक पोषक विश्व-शांति के, हिंदी से सबका मन हर्षाएँ।।

 

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