मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

“ आज़ादी के मतवाले ”

  “ आज़ादी के मतवाले ”

दीपिका गहलोत (मुस्कान),पुणे

ये कहानी है आज़ादी के मतवालों की,
तिरंगे के अनोखे दीवानों की,
हर पल देश भक्ति की धूनी में रमने वालों की,
अलबेलों की भारत माता के संतानों की ||1||

हर पल आज़ादी का जज़्बा रहता था,
वंदे मातरम् ही जुबां पर चढ़ा रहता था,
ना था कोई और जुनू ना था कोई और ख्वाब,
बस आज़ादी का अरमा पलता था ||2||

ना थी कोई प्रीत बढ़कर,
ना था कोई वादा हट कर,
बस देश प्रेम में ही लीन वो रहता था,
ना था दूजा कोई मोह घर-घर ||3||

इस बार निभालू रिश्ता भारत माता से,
क़र्ज़ उतार दूँ अपने रक्त से,
अगला जन्म माँ तेरा फ़र्ज़ निभाऊंगा,
करने दे जीवन कुर्बान इस बार तिरंगे पे ||4||

एक जुट हो एक ही सपना देखा करता था,
भारत माता की बेड़िया देख खून खौलता रहता था,
हर चीज़ त्याग दूँ रक्त का आखरी कतरा भी वार दूँ,
तिरंगे के आगे हर रिश्ता बेईमानी लगता था ||5||

चल दिए वो अपना कर्तव्य निभा कर,
अपनी भारत माता को बेड़ियों से छुड़ा कर,
याद उन्हें भी रखना उनके जज़्बों को भी सलाम करना,
आज़ादी जो दिला गए हमको उसे सर आँखों पे रखना ||6||

ये कहानी है आज़ादी के मतवालों की,
तिरंगे के अनोखे दीवानों की,
हर पल देश भक्ति की धूनी में रमने वालों की,
अलबेलों की भारत माता के संतानों की . . . .

 

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