मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

सम्पादकीय

संघर्ष की धधकती मशाल: श्री कृष्ण”

डॉ.नीता चौबीसा, बांसवाड़ा राजस्थान

अध्यात्म के विराट आकाश में श्रीकृष्ण ही अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म की परम गहराइयों व ऊंचाइयों पर जाकर भी न तो गंभीर ही दिखाई देते हैं और न ही उदासीन दीख पड़ते हैं, अपितु पूर्ण रूप से जीवनी शक्ति से भरपूर व्यक्तित्व हैं। श्रीकृष्ण के चरित्र में नृत्य है, गीत है, प्रीति है, समर्पण है, हास्य है, रास है, और है आवश्यकता पड़ने पर युद्ध को भी स्वीकार कर लेने की मानसिकता। धर्म व सत्य की रक्षा के लिए महायुद्ध का उद्घोष है।

एक हाथ में बांसुरी और दूसरे हाथ में सुदर्शन चक्र लेकर महाइतिहास रचने वाला कोई अन्य व्यक्तित्व नहीं हुआ संसार में। श्रीकृष्ण के चरित्र में कहीं किसी प्रकार का निषेध नहीं है, जीवन के प्रत्येक पल को, प्रत्येक पदार्थ को, प्रत्येक घटना को समग्रता के साथ स्वीकार करने का भाव है। वे प्रेम करते हैं तो पूर्ण रूप से उसमें डूब जाते हैं, मित्रता करते हैं तो उसमें भी पूर्ण निष्ठावान रहते हैं, और जब युद्ध स्वीकार करते हैं तो उसमें भी पूर्ण स्वीकृति होती है।

 भगवान श्रीकृष्ण हमारी संस्कृति के एक अद्भुत एवं विलक्षण महानायक हैं। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी तुलना न किसी अवतार से की जा सकती है और न संसार के किसी महापुरुष से। उनके जीवन की प्रत्येक लीला में, प्रत्येक घटना में एक ऐसा विरोधाभास दि‍खता है जो साधारणतः समझ में नहीं आता है। यही उनके जीवन चरित की विलक्षणता है और यही उनका विलक्षण जीवन-दर्शन भी है। ज्ञानी-ध्यानी जिन्हें खोजते हुए हार जाते हैं, जो न ब्रह्म में मिलते हैं, न पुराणों में और न वेद की ऋचाओं में, वे मिलते हैं ब्रजभूमि की किसी कुंज-निकुंज में राधारानी के पैरों को दबाते हुए – यह श्रीकृष्ण के चरित्र की विलक्षणता ही तो है कि वे अजन्मा होकर भी पृथ्वी पर जन्म लेते हैं। मृत्युंजय होने पर भी मृत्यु का वरण करते हैं।श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण जीवन चरित संघर्षो से इतना भर हुआ है फिर भी वे हार नही मानते।उन्ही संघर्षो में नए रास्ते बनाते है ।जन्म से ले कर मृत्यु तक क्षण भर भी उनके जीवन मे संघर्षो से विराम नही लिया।वस्तुतः वे संघर्षो की ऐसी धधकती हुई मशाल है जो स्वयं जल कर दूसरो को राह दिखाती है।जहां सामान्य इंसान छोटे छोटे संघर्षो से आज हार जाता है वहीं श्री कृष्ण आजीवन संघर्षो से लड़ कर भी मुसकुराते है कभी निराश नही होते।उन्होंने दिखा दिया निराश हुई दुनिया को कि कैसे सर्प के सिर से जहर की जगह मणि की प्राप्ति की जा सकती है,कैसे सागर की लहरों में डूबने की जगह उन पर तैरा जा सकता है। उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण की प्रत्येक लीला हमें संदेश देती है। जैसे उनके जन्म का समय व स्थान ही ले लीजिए। वे सर्वशक्तिमान होने पर भी जन्म लेते हैं कंस के बंदीगृह में।उनके जन्म का समय  रात्रि बारह बजे यह ऐसा समय है, जब विराट सूर्य भी अंधकार की गहरी खाई में खो जाता है। घोर रात्रि को अपने जन्म का लगन चुना यह दिखा दिया संसार को कुछ शुभ और अशुभ नहीं होता। इंसान की सोच ही समय को अनुकूल प्रतिकूल बनाती है।ततपश्चात शैशवावस्था में अपने स्व माता पिता से कही ओर हस्तांतरण, प्रत्येक पल जीवन पर कंस के काल का संकट झेलना,पूतना जैसे असुरो से लड़ना,बाल्यकाल की उनकी लीलाओ में कालिया नाग बकासुर,अघासुर,मटकासुर न जाने कितने कितने असुरो से लड़ना, स्वरक्षा के साथ बृजवासियों की रक्षा का दायित्व भी नन्हे कंधो पर उठाना,कंस की चुनोतियो का सामना करना,कंस व चाणूर वध और यही क्रम जीवन पर्यंत चलता रहा कभी जरासन्ध कभी शिशुपाल कभी किसी और रूप में पर किसी भी संघर्ष से कभी उन्होंने मुह नही मोड़ा।वह संघर्षो के मैदान में खुशी खुशी कूद पड़ते और नए रास्ते बनाते मुस्कुराते जीवन को जीते हम सभी को यही संदेश दे गए कि संघर्ष ही जीवन है । जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है । इस सृष्टि में छोटे-से-छोटे प्राणी से लेकर बड़े-से-बड़े प्राणी तक, सभी किसी-न-किसी रूप में संघर्षरत हैं जो इन संघर्षों का सामना करने से कतराते हैं, वे जीवन से भी हार जाते हैं, जीवन भी उनका साथ नहीं देता ।संघर्ष के कारण ही मनुष्य का वास्तविक शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक विकास होता है। जो व्यक्ति कभी भी संघर्ष का सामना नहीं करता वो जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता और ना ही कठिनाइयों से लड़ सकता है। … ठीक इसीतरह मानव-जीवन में संघर्ष उसके व्यक्तित्व के परिष्करण और उसकी चेतना के उद्विकास के लिए अनिवार्य होते हैं।महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण अगर पांडवो की मदद करते तो क्या आज हम पांडवो को याद रखते, शायद नहीं ! जबकि श्री कृष्ण चाहते तो पांडवो की मदद कर  उन्हें जीवन में कोई संघर्ष करने ही नहीं देते, श्री कृष्ण ने तो बस उन्हें राह दिखाया और उस राह पर चलकर संघर्ष पांडवो ने खुद किया ! जीवन में सफलता उसी को मिलती है जिसने संघर्षो से जूझना सीखा है ! भगवान  कृष्ण ने गीता में कहा है – जीवन एक संघर्ष है एवं इसका सामना प्रत्येक व्यक्ति को करना पड़ता है !  वास्तव में श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व भारतीय इतिहास के लिए ही नहीं, विश्व इतिहास के लिए भी अलौकिक एवम आकर्षक व्यक्तित्व है और सदा रहेगा। उन्होंने विश्व के मानव मात्र के कल्याण के लिए अपने जन्म से लेकर निर्वाणपर्यन्त अपनी सरस एवं मोहक लीलाओं तथा परम पावन उपदेशों से अंत: एवं बाह्य दृष्टि द्वारा जो अमूल्य शिक्षण दिया था वह किसी वाणी अथवा लेखनी की वर्णनीय शक्ति एवं मन की कल्पना की सीमा में नहीं आ सकता। उन्होंने अपने जीवन जचित से हमे यही समझाया कि पलायन नही संघर्ष से जूझ कर ,लोहा ले कर ही हम निखर सकते है और हमे बिखरना नही,निखरना है क्योंकि संघर्ष जीवन का सत्य है।कृष्ण हमे सिखाते है कि हमे संघर्षो से कैसे निकलना है,जीवन को कैसे जीना है।कृष्ण जीवन शैली देते है तभी वह हजार वर्षों बाद भी लोक नायक है।

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