मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

सम्पादकीय

राष्ट्रवाद की नई अवधारणा चिंता और राष्ट्रीय स्तर पर विमर्श का विषय बन गया है।

राष्ट्रवाद की नई अवधारणा चिंता और राष्ट्रीय स्तर पर विमर्श का विषय बन गया है

  1. नीरव समदर्शी

आज हम अपना 77वा स्वतंत्रता दिवस मना रहे है।हमारे देश में अब आजादी के बाद जन्मी पहली पीढ़ी सत्ताधीष है।इस पीढ़ी के आते ही राष्ट्रवाद की अवधारणा में ऐसा बदलाव किया गया है की राष्ट्रवाद राष्ट्रीय स्तर पर विमर्श का विषय हो गया है। राष्ट्रवाद की यह नई अवधारणा चिंता का विषय भी हो गया है। राष्ट्रवाद के इस नई अवधारणा में हिंदुत्व और हिंदू को राष्ट्रवाद का प्रतीक बना दिया गया है भक्ति को खास करके राम की भक्ति को राष्ट्रवाद से जोड़ दिया गया है जबकि भारत स्वतंत्र भारत के शक्ति अनेकता में एकता की है ऐसे में किसी एक धर्म के महापुरुष की भक्ति को देश का नारा बना दिया जाना राष्ट्रवाद के प्रतीक बना दिया जाना न्याय संगत नहीं जान पड़ता है।
साधारणतया भी किसी भी महापुरुष को भगवान बना देना हमारी भक्ति नहीं कमजोरी ही है
किसी भी महापुरुष को भगवान बना देना हमारी भक्ति नहीं कमजोरी ही है
श्री राम हम सबके लिए अनुकरणीय हृदय में बसा लेने वाले महापुरुष थे। अतुलनीय शक्ति रखने के बावजूद पति, पुत्र, सखा, भाई,हर रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन ही नही किए बल्कि अपने को उदाहरण के रूप में स्थापित करने के लिए उन्होंने जीवन पर्यंत अत्यंत कष्ट झेला । श्री राम के जीवन के हर कष्ट लोगों के लिए उदाहरण ही नहीं बना बल्कि लोगों का कष्ट निवारक बना। यह तो सौभाग्य की बात कि हमारे पास राम जैसे महामानव मर्यादा पुरुषोत्तम व्यक्तित्व का बेहतरीन उदाहरण है। अनुकरण करके अपने आप को परिष्कृत करने के लिए अपने को ऊंचाई पर ले जाने के लिए लेकिन हम भारतीय इस सोच के साथ अपने आप को मजबूत बनाने और अनुकरणीय बनाने के बजाय ऐसे महान विभूतियों को भगवान बना कर घर के कोने में स्थापित कर देते हैं।शहर गांव बस्ती के नुक्कड़ों और निर्जन स्थलों पर उन्हें स्थापित कर अवैध जमीन कब्जाने माध्यम बनाते है।दो सम्प्रदायो में बैर पैदा कर सियासी रोटी सेंकते है। दंगे करवाकर खून की होली खेलते है।या यों कहें कि उन महात्माओं का असली भक्त बनने के नाम पर उनके उच्च विचार बेहतरीन सिद्धान्त और अनुकरणीय जीवन चरित्र का चीरहरण कर सामाजिक समरसता को नेस्त -नाबूत कर देते है।
उनकी और उनकी आदतों की पूजा करने लगते हैं उनका अनुकरण नहीं सकते उनके अनुकरण करने से अपने को बचाने के लिए ही हम उन्हें भगवान बना देते हैं और अपने आप को यह समझा लेते हैं कि वह तो महान थे वह तो भगवान थे इसलिए इतना कुछ कर पाए हम एक साधारण व्यक्ति इतना कुछ कतई नहीं कर सकते। इसी वजह से महापुरुषों को भगवान बना देने की परंपरा हमारी भक्ति नहीं है कमजोरी कही जाएगी ।

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