मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

सम्पादकीय

नारी तेरी यही कहानी

निक्की शर्मा ‘रश्मि

‘मुम्बई

भारतीय  संस्कृति में नारी को बहुत ही सम्मान और महत्व दिया गया है, धरती पर नारी के अनेक रूप हैं। नारी को दुर्गा , काली, चंडी एवं सरस्वती के रूप मानने वाले लोगों की मानसिकता कहां लुप्त हो गई है समझ नहीं आ रहा। नारी की स्थिति पहले की तुलना में काफी हद तक सुधार हुआ है, नारी शिक्षा को बढ़ावा मिलने से प्रगति पथ पर अग्रसर होती रही है। राजनीति हो या व्यवसाय हर जगह नारी की भागीदारी है, आज नारी के बिना इस संसार में कुछ भी नहीं है इसके बिना, यह सृष्टि अधूरी है। भारतीय समाज को हमेशा पुरुष प्रधान माना गया यह लेकीन अब 21वीं सदी में बदलाव पूरी तरह आया और आज नारी पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं, फिर भी जो सम्मान, जो इज्जत नारियों को मिलनी चाहिए वह मिलती ही नहीं है। जिस तरह के अमानवीय  व्यवहारों से वह गुजरती है उसका अंदाजा भी शायद लगाना मुश्किल है।

एक तरफ हम उन्हें आगे बढ़ाने की बात करते हैं और दूसरी तरफ अभद्रता की हद पार करते हैं,आजकल महिलाओं,छोटी-छोटी बच्चियों के साथ अभद्रता की सारी सीमाएं टूट गई है।आज एक भी  दिन ऐसा नहीं जाता जब हम बलात्कार जैसी अभद्रता की घटना नहीं सुनते हैं। 4 महीने की बच्ची से लेकर महिलाएं तक सुरक्षित नहीं है।आज फिर इक्कीसवीं सदी में पहुंचकर भी समाज की सोच नहीं बदल रही। क्यों.. नारी के सम्मान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा,अपनी सोच बदलिए। महिलाओं की सुरक्षा के लिए नियम तो बनते हैं, पर क्या सजा हुई उन्हें इस कानून से इंसाफ मिला,?नहीं….. बच्चियों के साथ भी हैवानियत  का सिलसिला थम ही नहीं रहा.. फिर भी फांसी की सजा नहीं सुनाई जा रही।

डर ..किसी को कानून का हो तभी तो..पर… डर कैसा… जब गलती की सजा नहीं मिलती तो गलतियां तो आगे भी करते ही जाएंगे। यह बात कोई क्यों नहीं समझ पाता, हैवानियत की हद पार कर जिस तरह आज देश के हर हिस्सों में महिलाओं, बच्चीयों के साथ ये सब हो रहा, अगर फांसी की सजा सुनाई जाती तो घटनाएं कम जरूर होती। नारी शक्ति की बातें करते हैं, नियम बनाते हैं पुरुष और फिर उसी नारी को कुचल डालते हैं, क्योंकि पुरुष प्रधान देश है,।कहने को आज भी नारी कदम से कदम मिलाकर चल रही है पुरुषों के साथ ताल से ताल मिला रही है पर नजरिया आज भी पुरुषों का नहीं बदला अगर चार बातें हंसकर कर लो तो गलत समझ कर फायदा उठाने की कोशिश करते हैं,मौका पाने पर रौंंदने से बाज नहीं आते, आखिर क्यों.. क्योंकि हमारे देश का कानून कमजोर है। कुछ पुरुषों के कारण दुसरेे शरीफ पुुरूषों पर भी शक की चौड़े कानून पर, खोखले जो एक नारी की इज्जत से खेलने वाले को फांसी के फंदे तक नहीं पहुंचा पाई तभी तो आज हर जगह नारी शक्ति की गाथा के साथ साथ अभद्रता की कमी भी सुनने को मिलती है। “*वाह रे नारी तेरी यही कहानी आंचल में दूध आंखों में पानी 21 वीं सदी में भी ना बदली तेरी कहानी”

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