मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

स्त्री की उम्र

स्त्री को अपनी उम्र का 

डॉक्टर मीरा श्रीवासत्व

सही पता कभी भी नहीं होता ,
न ही जब वह बेटी थी और
न ही तब जब वह पत्नी बनी
पुरुष तय करते हैं उसकी उम्र
समय और स्थिति के अनुसार
बेटी , नन्हें भैया के आते ही
बड़ी दीदी में तब्दील हो जाती है
जिसके लिए भैया को गोद में
उठाने से लेकर , उसे थपथपाते
अपनी तोतली आवाज में अपने लिए
सुनी मां की लोरी गाते सुलाना – सब
उसके सहज कर्त्तव्यों में गिन लिए जाते हैं
अरे ! मैं तो भूल ही गई , सुनते ही
तुर्श आवाज में पुरुष टिप्पणी जड़ने से
बाज नहीं आता – उम्र हो गई है तुम्हारी
याददाश्त कमजोर होने लगी है
पनीली आंखें चुराते स्त्री व्यस्त कर लेती है
स्वयं को किन्हीं ऐसे कामों में जहां
याददाश्त की जरूरत ही नहीं पड़ती
काम निबटाते – निबटाते उसके मुंह से
कराह निकली न निकली , कमर को
हथेलियों से पकड़ते – आह ! थक गई मैं
सुनते ही काईंयेपन से मुस्कुराता पुरुष
कह उठता है – अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है
अभी से थक गई ?
स्त्री मुग्ध दृष्टि से पुरुष को निहारते
बांध लेती है अपनी दुखती कमर पर
कसकर अपने आंचल को और
भूल जाती है पुरुष की पहली टिप्पणी !
सच ! स्त्री को कहां पता होती है अपनी उम्र
वह तो तय करते हैं पुरुष
समय और स्थिति के मुताबिक !!!
~~~~~~~~~~~~~

1 COMMENTS

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *