मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

निगरानी

नीना सिन्हा,कलमकार पटना,

“रात को साढ़े बारह बजे कहाँ से आ रहे हैं, साहबजादे?” पिता ने प्रश्न किया।

“क्या पापा! आप हद करते हैं! मैं अक्सर इसी वक्त घर आता हूँ। मैं पढ़ा-लिखा बेरोज़गार इंसान, समय काटना मुश्किल है, करूँ तो क्या करूँ? तिस पर आपकी टोका-टोकी मुझे आहत कर देती है।” दीपक नाराज़ स्वर में बोला।”बेटा! आप नौकरी, व्यवसाय या ज़रूरी काम के सिलसिले में देर से रात घर आए होते, मैं कुछ नहीं पूछता। पर यहाँ मुझे कुछ नहीं दिख रहा है! आपके पास कोई काम-धंधा तो है नहीं, ऊपर से खाली दिमाग शैतान का घर। पैसे वाले घरों के बिगड़े लड़कों से आपकी पतित संगति, जिनका काम ही है निशाचरों की तरह सड़कों पर भटकना। माँ-बाप कैसे और कब तक नजर रखें?”

“इसे मेरी सलाह मानिए या हुक्म, जी जान से नौकरी ढूँढना शुरू करें, या तो छोटा-मोटा व्यवसाय करें। और कुछ नहीं, तो काम मिलने तक घर के कामों में मम्मी का हाथ ही बँटा दिया करें। पर आपका देर रात गए घूमना-फिरना मुझे नागवार गुजरता है।“

“मम्मी कितनी अच्छी हैं पापा”, नाक सिकोड़ता हुआ दीपक बोला, “मैं रात को दो बजे भी लौटूँ, फिर भी नहीं डाँटती, खाना-वाना खिला कर सो जाने को कहती हैं। आप सामने पड़ गए तो बिला वजह टोका-टोकी प्रारंभ हो गई। जब नौकरी मिलनी होगी, तब मिल जाएगी। उतने दिन तो मुक्त जीवन का आनंद ले लूँ।”

“बेटे! आप जैसे बिगड़े नवाबों का आनंद, युवा बेटियों के माता-पिता की दुश्चिंताओं का कारण बना हुआ है। मेरी सलाह है, ‘रात को दस बजे तक घर आ

जाया करें, नहीं तो घर का दरवाज़ा नहीं खुलेगा।’ रहीं आपकी मम्मी, जिन्होंने आपको सर चढ़ा रखा है, उनपर भी पाबंदी लगानी पड़ेगी!””हद हो गई पापा! मैं कोई लड़की हूँ, मुझे किस बात का खतरा है! मैं समय से घर क्यों आऊँ? “दीपक का गुस्सा बढ़ता जा रहा था।

“साहबजादे! खाली बैठे युवा, जो कुलदीपक बनने की क्षमता तो नहीं रखते, वही अपने घर और दूसरों के घरों की इज़्ज़त जलाकर खाक करने का कारण बनते हैं।“

“महिला पशु चिकित्सक की बलात्कार के बाद हत्या, तथा और भी ऐसे एक के बाद एक कई दर्दनाक हादसों के कारण देश के हर युवा बेटी के माँ-बाप के आँखों की नींद उड़ी हुई है कि बेटियों के साथ ऐसी कोई अनहोनी न हो जाए? डरे हुए माता-पिता बेटियों को दूसरे शहरों में पढ़ने और नौकरी करने भेजने से कतराने लगे हैं। हालात नहीं सुधरे तो लड़कियों के भविष्य पर नकारात्मक असर पड़ने वाला है।“

“ठीक है पापा, कल से घर वापस आने का वक्त सुधारना प्रारंभ करता हूँ”, दबे स्वर में भुनभुनाता दीपक अपने कमरे में चला गया।

 

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