मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

सम्पादकीय

फागुन

पूनम आनंद /पटना

बाजार रंग पिचकारी फागुनी टोपी से भरा हुआ था ।बच्चे बडे सभी की एक नजर उस तरह उठ ही जाती।सब अपने ढंग से उसे अपने बच्चे के लिए खरीदना चाहते थे।सोनू भी अपने पिता के साथ मिलकर रोज सुबह से शाम तक बाजार सजाता था।प्रतिदिन वो अपने पिता के पास बैठ कर सभी सामग्री को गिनती शुरू कर रखता और वापसी पर गिनती कर रखता था।सोनू के पिता को दिखलाई कम पडता था,सोनू उनकी सहायता करता था।उसके पिता रोज उसे आश्वासन देते की इस बार की कमाई से उसके लिए नये कपड़े खरीदने की योजना है ।सोनू भी अपने पिता के पास बैठ कर सभी बच्चे की तरह नये कपड़े और जूते की का इंतजार किया करता था।सोनू के पिता के साथ साथ और भी फेरी वाले लोग अपने अपने सामान को बेचने के लिए बाजार सजाते थे।सोनू भी अपने पिता के कहने पर रोजाना करीब के फेरीवाले के पास अपने कपडे को पसंद किया करता था।होली नजदीक आ गई थी और उस अनुसार बिक्री मंदी ही हो रही थी।अच्छा! आज नहीं तो कल के इंतजार में समय कट रहे थे।सोनू एक बार पूरे दिन में पुछ ही बैठता “क्या ?उसके नये कपड़े खरीदने की योजना पुरी होगी?” क्योंकि इस बार भी लोग अपने घर के पास अत्याधुनिक सजे बाजार से ही खरीदारी कर रहे है।सोनू के पिता अपने अनुभव के आधार पर आश्वासन देते”सब्र  कर बेटा!सभी सामग्री बिक जाऐगी “।लेकिन यह आसरा भी होली के एक दिन पहले तक खत्म हो गया ।सोनू अपने सामान की गिनती भी आज नही किया और फूट फूट कर रोना चाह रहा था,कल तक उसके आँखो में सपने थे,लेकिन आज वह निराश हो गया था ।उसने बहुत भरे हुए मन से बचे सामान को बटोरने के लिए हाथ लगाया था की उसके पास फेरी पर बैठने वाले लोग ने अपने बच्चे के लिए  पिचकारी खरीदना चाहा,सोनू से रहा नही गया वे बोले पडा”चाचा आप सभी की भी तो बिक्री मंदी रही,फिर यह सब क्यों खरीद रहे?”ऐसा!है मेरे बच्चे हम बचे हुऐ सामान को जबरन बेच नही सकते है लेकिन आपस में एक-दूसरे के साथ एक्सचेंज कर अपने घर के बच्चे की खुशी तो देख सकते है, और इस तरह सभी फेरीवाले ने मिलकर होली की खुशी के गीत गाए ।एक दूसरे पर अब आँसू और दुखो की बात के बदले खिलखिलाहट की हंसी गूंज रही थी ।

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