)-डॉ नीता चौबीसा
दक्षिण पूर्व एशियाई देश व वृहतर भारत: स्यामदेश
स्यामदेश एक ऐसा देश है जो पूरी तरह भारतीयता के रंग में रंगा आज भी दृष्टव्य होता है।स्याम देस या आधुनिक थाईलैंड में थेरावाद बौद्ध के मानने वाले बहुमत में हैं, फिर भी वहां का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है, जिसे थाई भाषा में ‘राम-कियेन’ कहते हैंl इसका अर्थ राम-कीर्ति होता है, जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित हैlसन् 1939 ई. तक थाईलैंड को श्यामदेश या ‘स्याम’ नाम से ही जाना जाता था। इस देश में भारतीय संस्कृति का प्रवेश ईसा की प्रथम शताब्दी में होना शुरू हुआ। सबसे पहले यह कार्य व्यापारियों ने किया तथा उनके पश्चात् प्रचारकों और धर्माचार्यों ने इसे आगे बढ़ाया।भारतीय संस्कृति अनेक प्रकार से वहां पहुंची। वहां के राज्यों के नाम संस्कृत में रखे गये जैसे- द्वारावती, श्रीविजय, अयोध्या और सुखोदय आदि। थाईलैंड में नगरों के नाम भी भारतीयता के द्योतक हैं जैसे-कंचनपुरी के तर्ज पर कांचनबुरी, राजपुरी के समान राजबुरी और लवपुरी के समान लोबपुरी। यहां शहरों के प्राचीनबुरी, सिहबुरी जैसे नाम मिलते है जो संस्कृत भाषा के प्रभाव को दर्शाते हैं। यहां तक कि राजाराम, राजा-रानी, महाजया और चक्रवंश जैसे गलियों के नाम यहां रामायण की लोकप्रियता का साक्ष्य देते हैं।श्यामदेश की प्राचीन राजधानी अयोध्या का उल्लेख यहां का इतिहास में किया गया है। अयोध्या नगरी की स्थापना एवं इसके इतिहास में यहां के आस-पड़ोस की जगहों का काफी महत्व और योगदान है। छोप्रया, पालाक एवं लोबपुरी नदियों के संगम पर बसा द्वीपनुमा शहर अयोध्या व्यापार, संस्कृति के साथ-साथ आध्यात्मिक अवधारणाओं का भी गढ़ रहा है।हिंदू धर्म का थाईलैंड के राज परिवार पर सदियों से गहरा प्रभाव रहा है। माना यह जाता है कि थाईलैंड के राजा भगवान विष्णु के अवतार हैं। इसी भावना का सम्मान करते हुए थाईलैंड का राष्ट्रीय प्रतीक गरुड़ है।अयोध्या जिसे ‘अयुत्थिया’ कहते हैं उन्हीं में से एक है। यहां बहुत बड़े-बड़े मंदिर थे पर आज वे सब खण्डहरों के रूप में खड़े हैं परन्तु वर्तमान राजधानी बैकांक में आज भी 400 मंदिर हैं जो वृहतर भारत का अंश होने की गवाही देते है।बैंकॉक का वास्तविक नाम “क्रुंग देव महानगर अमर रत्न कोसिन्द्र महिन्द्रायुध्या महा तिलक भव नवरत्न रजधानी पुरी रम्य उत्तम राज निवेशन महास्थान अमर विमान अवतार स्थित शक्रदत्तिय विष्णु कर्म प्रसिद्धि” है, यह नाम संस्कृत और पाली भाषा से लिया गया है, जिसमें कुल 163 अक्षर है। इस नाम को एक गाने की तरह बोला जाता है। स्थानीय भाषा में बैंकॉक को ‘महेंद्र अयोध्या’ भी कहा जाता है।थाईलैंड में राजा को राम कहा जाता है। राज परिवार यहां के अयोध्या नामक शहर में रहता है। ये स्थान बैंकॉक से कोई 50-60 किलोमीटर दूर होगा। यहां पर बौद्ध मंदिरों की भी भरमार है जिनमें भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में मूर्तियां स्थापित हैं। क्या ये कम हैरानी की बात है कि बौद्ध होने के बावजूद थाईलैंड के लोग अपने राजा को राम का वंशज होने के चलते विष्णु का अवतार मानते हैं। इसलिए थाईलैंड में एक तरह से राम राज्य है। वहां के राजा को भगवान राम का वंशज माना जाता है। थाईलैंड में 94 प्रतिशत आबादी बौद्ध धर्मावलंबी है। फिर भी इधर का राष्ट्रीय चिन्ह गरुड़ है। हिंदू पौराणिक कथाओं में गरुड़ को विष्णु की सवारी माना गया है। गरुड़ के लिए कहा जाता है कि वह आधा पक्षी और आधा पुरुष है। उसका शरीर इंसान की तरह का है, पर चेहरा पक्षी से मिलता है। उसके पंख हैं। अब प्रश्न उठता है कि जिस देश का सरकारी धर्म बौद्ध हो वहां पर हिंदू धर्म का प्रतीक क्यों है? इसका उत्तर ये है कि चूंकि थाईलैंड मूल रूप से हिंदू धर्म था, इसलिए उसे इस में कोई विरोधाभास नजर नहीं आता कि वहां पर हिंदू धर्म का प्रतीक राष्ट्रीय चिन्ह हो। एक सामान्य थाई गर्व से कहता है कि उसके पूर्वज हिंदू थे और उसके लिए हिंदू धर्म भी आदरणीय है। स्यामदेश या थाईलैंड एक के बाद एक आश्चर्य देता है। वहां का राष्ट्रीय ग्रंथ रामायण है। वैसे थाईलैंड में थेरावाद बौद्ध के मानने वाले बहुमत में हैं, फिर भी वहां का राष्ट्रीय ग्रंथ रामायण है। जिसे थाई भाषा में ‘राम-कियेन’ कहते हैं, जिसका अर्थ राम-कीर्ति होता है, जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के सबसे बड़े और भव्य हॉल का नाम ‘रामायण हॉल’ है। यहां पर राम कियेन पर आधारित नृत्य नाटक और कठपुतलियों का प्रदर्शन प्रतिदिन होता है। राम कियेन के मुख्य पात्रों में राम (राम), लक (लक्ष्मण), पाली (बाली), सुक्रीप (सुग्रीव), ओन्कोट (अंगद), खोम्पून ( जाम्बवन्त), बिपेक ( विभीषण), रावण, जटायु आदि हैं।बौद्ध मंदिरो का निर्माण तीसरी-चैथी शताब्दी में आरंभ हो गया था। वहां के मंदिरों से प्राप्त होने वाली सबसे प्राचीन मूर्तियां भगवानविष्णु की हैं।हिन्दू और बौद्ध धार्मिक साहित्य तथा कला ने स्याम देश की भाषा, कला, साहित्य और सामाजिक संस्थाओं को अत्यधिक प्रभावित किया। यहाँ अमरावती शैली, गुप्तकालीन कला और पल्लव लिपि में अंकित बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों के अवशेषों की प्राप्ति हुई, जिनसे भारतीय संस्कृति के प्रसार का परिचय प्राप्त होता है।(क्रमशः ,