प्रोoकेसरी कुमार और मुरलीधर श्रीवास्तव ‘शेखर’ की जयंती पर नवोदित लेखिका ज्योति झा के कथा संग्रह ‘आनंदी’ का हुआ लोकार्पण, आयोजित हुई लघुकथा-गोष्ठी

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पटना,/प्रतिनिधि ( मलांच नई सुबह)पटना  ३१ मार्च। पिछली पीढ़ी के वरेण्य कवि आचार्य मुरलीधर श्रीवास्तव शेखर एक बड़े कवि हीं नहीं, एक बड़े व्याकरण विद और महान भाषा-विज्ञानी थे। वे हिन्दी के देशज रूप को महत्त्वपूर्ण मानते थे। वे यह कहा करते थे कि, हिन्दी की उन्नति, सबसे अधिक वहाँ हुई, जहाँ की भाषा हिन्दी नहीं थी। उनकी बौद्धिक-क्षमता अद्भुत थी। उनकी वाणी में ओज भी था और लालित्य भी। वे किसी भी विषय को रोचक बनाने में समर्थ थे। दूसरी ओर सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष प्रो केसरी कुमार में अद्भुत साहित्यिक प्रतिभा थी। आचार्य नलिन विलोचन शर्मा के साथ उन्होंने साहित्य में अनेक आंदोलन खड़े किए। हिन्दी कविता में प्रयोगवादी विचारों के पोषक थे।

यह बातें आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में प्रो केसरी कुमार और मुरलीधर श्रीवास्तव ‘शेखर’ की जयंती पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि साहित्य वह अमर होगा जो समाज की मौलिक ज़रूरतों पर केंद्रित और मानव-मन के वैज्ञानिक समझ पर आधारित होगा, जिसमें समाज की पीड़ा की अभिव्यक्ति भी होगी, और जिसमें कातर नयनों के आँसू पोछने की शक्ति और दुखों के निवारण के मार्ग भी परिलक्षित होंगे।

इस अवसर पर नवोदित कथा-लेखिका ज्योति झा के कथा-संग्रह ‘आनंदी’ का लोकार्पण किया गया। डा सुलभ ने कहा कि ज्योति जी मानवीय संवेदना से परिपूर्ण एक प्रतिभाशाली लेखिका हैं। लोकार्पित पुस्तकों की कहानियों में इनके कोमल-कांत विचारों और सामाज की पीड़ा की मर्म-स्पर्शी अभिव्यक्ति हुई है।

समारोह के मुख्य अतिथि और हिन्दी प्रगति समिति,बिहार के अध्यक्ष कवि सत्यनारायण ने कहा कि पुण्यश्लोक शेखर जी एक ऐसे स्नेही साहित्यकार थे, जिनके सान्निध्य में आकर कोई भी व्यक्ति बस उनका हो जाता था। उनका व्यक्तित्व चुम्बकीय था। वे रचनाधर्मिता और काव्य-तत्त्व के दुर्लभ उदाहरण थे। उनका साहित्यिक-संस्कार अगली पीढ़ी को भी प्राप्त हुआ और उनके दो पुत्र डा शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव और डा रवींद्र राजहंस हिन्दी के बड़े कवियों में परिगणित होते हैं।

आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, आचार्य मुरलीधर श्रीवास्तव ‘शेखर’ ने अपने साहित्य में कोई प्रयोग तो नहीं किया, किंतु हिन्दी की काव्य-भाषा और गद्य की भाषा के उन्नयन में उनका अवदान अत्यंत मूल्यवान है।

सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, प्रो आरती राजहंस, डा कैलाश ठाकुर, लेखिका ज्योति झा, रिमझिम वर्षा, डा बच्चा ठाकुर, डा शलिनी पाण्डेय, डा अर्चना त्रिपाठी, अरुण कुमार श्रीवास्तव तथा राजेश कुमार भट्ट, ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में डा ध्रुव कुमार ने ‘अग्नि परीक्षा’, डा शंकर प्रसाद ने ‘क्रूर आघात’, कुमार अनुपम ने ‘मजबूरी’,शुभचंद्र सिन्हा ने ‘ठंढी चाय’, डा मेहता नगेंद्र सिंह ने ‘चिराग़ और बल्ब’, चितरंजन भारती ने ‘पीछा करती दृष्टि’ तथा विभा रानी श्रीवास्तव ने ‘कोढ़’ शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

सम्मेलन के पुस्ताकालय मंत्री जय प्रकाश पुजारी, अर्जुन प्रसाद सिंह, सिद्धेश्वर, प्रणव पराग, श्रीकांत व्यास, प्रेमलता सिंह, रंजीता नन्दन,अमन वर्मा, चंद्रशेखर आज़ाद, दीप्ति ठाकुर आदि बड़ी संख्या में प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे।

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