पान बनारसिया

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 प्रियांशु त्रिपाठी

बनारस आये और बनारसी पान ना खाये तो क्या ही बनारस आने का फायदा । इसी सोच से हम पाँच केरला कैफे के बाद पान की तलाश में और सब इतने थके कि कहते हैं हरिओम तुम चले जाओ और लेते आओ ना । हरिओम सदमा में बोलता है कोई साथ चलेगा तो जायेंगे और हम चार में से एक भी बंदा वो “कोई” होना नहीं चाहता था । सब ने कहा चलो चलते है और सब यही कहीं खाते हैं । एक गली में एक पान की दुकान तक किशन नेतृत्व करके ले जाते है और वो दुकान पर सामान सब मौजूद थे, मध्यम आवाज़ में गाना भी बज रहा था मगर चच्चा नहीं थे । तभी चच्चा घर से निकलते है और कूद कर दुकान में (चप्पल खोलकर) । तोशवंत कसम निभा रहे थे पान से दूर और हम चारों को तो खाना ही था । चच्चा कहते है मीठा पान 20 का है लगाये ना?  हम चार भी हामी भर देते हैं । पान में चाचा बहुत कुछ मिलाकर 4 पान पैंक कर देते हैं । और जाने से पहले सबके हाथ में इत्र लगा देते हैं । किशन पुछते है इसकी क्या विशेषता पान के साथ, चच्चा कहते है पान चाय पूजा और घाट बनारसी के मशहूर है और आज तो घर में चावल दाल कोफ्ता और लिट्टी बना जमकर खाये है । हमें अभी तक इत्र का उत्तर नहीं मिला, बाकी हम सब मुड़ी हिलाकर चल देते है । रूम पहुँचते ही सब मैंच देखने लगते हैं और तभी हरि ओम और मैं दूसरे कमरे में थे, वहाँ हरि ओम कहते है जा रहे हैं थोड़ा पढ़ ले, अभी शांति है । वो ये कहकर बिना चाभी लिए रूम से बाहर आ जाते है । और मैं सोचता हूँ कि रूम में कोई नहीं है अभी रूम बंद कर देते है क्योंकि मुझे लगा चाभी हरि ओम लिए है । रूम ऑटो लॉक था, और चाभी अंदर रूम लॉक । हरि ओम आते ही सदमा में भाई मज़ाक नहीं करो, सच कहे तो यहाँ मज़ाक कोई नहीं कर रहा पर हरि ओम के साथ मज़ाक हो चूका था क्योंकि भाई साहब का नोट्स अंदर ही था । शांति तो थी, वक्त भी था पर पढ़े क्या मेटेरियल अंदर । बहुत मुश्किल से 1 घंटे बाद रूम दूसरे चाभी को ढूंढ कर खोलते है । हरि ओम, आशीष फिर कुछ लस्सी और खास्ता लिट्टी लेने बाहर चले जाते हैं, किशन रूम में और मैं और तोशवंत मार्केट ।

आज रात बनारस में हमारी आखिरी रात थी और घर के लोगों के लिए यादों के साथ कुछ ले ना जाये ऐसा हो सकता है । मैं तोशवंत मम्मी के लिए साड़ी पसंद करने लगते हैं और मेरी पसंद इतनी खराब की मेरी गर्लफ्रेंड भी मर्द जैसी लगती थी । बाकी तोशवंत सर पूरा अनुभव का इस्तेमाल कर रहे थे । हम भी बारी बारी देख रहे थे क्योंकि पसंद दिल और जेब दोनों से करना था । मुझे मम्मी और दादी के लिए साड़ी पसंद आ गई अब तोशवंत की मदद कर रहे थे । किशन को भी बुला लिया जाता है दोस्त तुम भी ले लो । हम तीनों उलझे रहते हैं कि हमारे मालिक स्वरूप हरि ओम बाज़ीगर की तरह आते हैं और हमसे पहले दो पसंद कर लेते है एक 1 हजार की और एक 600 की, मैंने दो साड़ी लिए, किशन दो, हरिओम 2 और तोशवंत एक । बिलिंग होता है 4600 और भइया 4000 पर मान जाते है । 6 साड़ी 600 का था और एक 1000 का । हम सब ये कहते हैं कि ठीक 600 में सबके घट जायेगा बाकी 1000 वाला वही रहने देंगे । खैर जब रूम जाते हैं सभी तो एक शख़्स सदमा में रहता है, कयोंकि  जिसका 600,या 1200 लगता हैं उसको ज़्यादा डिसकाउट मिलता है और जो 1600 का लेता है उसे कम । अब सेठ हरि ओम गाँव जाकर इसे बेचने का जुगाड़ लगाते है । तभी पेट को शांति दिये बिना आशीष लिट्टी खाते है और सेब ठुकराने लगते । रात काफी देर तक हरि ओम सदमे से बाहर नहीं आ पाते है ।।कल सुबह ही ट्रेन पकड़ना था और मैं और तोशवंत सामान पैक कर लेते है बचे ये तीन कोशिश करते है सामान बाँधने का । आशीष कहते है सब कर लो जो भी बचेगा हम समेट लेंगे मेरा ही होगा ना बाकी बचा सामान और मालिक थक कर जल्द सो जाते है । हरि ओम आशीष के 250 का डीओ बोतल, आधे से ज़्यादा रूम को खुशनुमा बनाने में उड़ा देते और आशीष अब पैसा निकलवाने का तरक़ीब लगाते है मगर असफल रहते है । इसी खीचा तानी में कम नींद वाली रात हम सभी को अपने साये में ढ़क लेती है जैसे आप ढ़क चुके हैं बनारस के रंग बिरंगे दुप्पटे से ….

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