दहेज

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ऋचा वर्मा

ममता की सलीके से जिंदगी जीने की कला ने प्रभा को बहुत ही प्रभावित कर रखा था और प्रभा हर समय ममता से कुछ न कुछ सीखने का प्रयास करती। लिहाजा जब बेटी पलक ने अपनी शादी अपने सहकर्मी पारितोष से करने के फैसले के साथ उसके घर की डांवाडोल आर्थिक स्थिति के विषय में प्रभा को बताया और प्रभा का माथा ठनका तो उसने आदतन ममता को फोन लगाकर सलाह मांगी। “नहीं प्रभा, यह सब बहाना है, किसी भी परिस्थिति में तुम शादी के खर्चे की जिम्मेवारी अपने सर मत लेना, यह भी एक प्रकार का दहेज है, और दहेज जैसी सामाजिक बुराई को दूर करने के लिए हम जैसों को ही आगे आना पड़ेगा।” ममता की बात पत्थर की लकीर हो गई…. और एक दिन सामर्थ्य होते हुए भी पलक और पारितोष सादगी के साथ कचहरी में मजिस्ट्रेट के सामने विवाह बंधन में बंध गए।

 “ममता अब तू भी अमन की शादी कर दे, नौकरी तो वह कर ही रहा है।” एक दिन प्रभा ने ममता को सलाह दी। “हां, जल्द ही करूंगी, बस नए वाले फ्लैट का फर्निशिंग का काम पूरा हो जाए।” “नया फ्लैट? कब लिया?” प्रभा ने आश्चर्य से पूछा। “अच्छा छोड़,अब जब तू फर्नीचर खरीदने जाएगी तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी, पलक के लिए भी कुछ ले लूंगी,” प्रभा ने प्रस्ताव रखा। “अरे प्रभा, तू भी कमाल करती है, जब फ्लैट मेरे होने वाले समधी ने खरीदा तो फर्नीचर भला मैं क्यों खरीदूंगी।” ममता के जवाब से प्रभा हतप्रभ थी।

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