जिसके शीश गुरु का साया

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 जिसके शीश गुरु का साय

नफे सिंह योगी मालड़ा ©
महेंद्रगढ़ हरियाणा

कैसे उमड़ा जोश बदन में , कैसे इतना साहस पाया ?
पता कभी नहीं चले किसी को, जिसके शीश गुरु का साया ।।

मुश्किल में मुस्काया कैसे ,
और संग कैसे था संयम ?
आत्मविश्वास आया कैसे ,
और कैसे निभा सका नियम ?

पल में पलटवार कर कहता ,यह सब है कुदरत की माया ।
पता कभी नहीं चले किसी को, जिसके शीश गुरु का साया ।।

किसके कदमों का पीछा कर,
बन गये विशाल कीर्तिमान ।
ताली से तालीम तलाशी ,
उम्मीद से उम्दा सम्मान ।

दर्पण और समर्पण बिन ही , कैसे खुद को मैं पढ़ पाया ?
पता कभी नहीं चले किसी को, जिसके शीश गुरु का साया ।।

बीच विषमता पंनपी क्षमता ,
यह कौशल कुशल हुआ कैसे ?
मैं उठ नहीं पाया फिर भी उठा,
मिली हद से अधिक दुआ कैसे?

कैसे सम्भला गिरते-गिरते,जब-जब पथ में ठोकर खाया ?
पता कभी नहीं चले किसी को,जिसके शीश गुरु का साया।।

कब मुश्किल आसान हो गयी ,
जुबां नहीं कर सकती जाहिर ।
चकित था, चमत्कार देख मैं ,
जब से दुनिया कहती माहिर ।।

गुरु ज्ञान से गरिमा आई , सब गुरुओं के गिरता पायाँ ।
पता कभी नहीं चले किसी को,जिसके शीश गुरु का साया।।

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