गुरु कौन

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डॉक्टर सीमा रानी

‌गुरु कौन नहीं है ?पृथ्वी पर प्रत्येक प्राणी प्रत्येक वस्तु प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक तत्व में गुरु है ।और प्रत्येक तत्व में गुरु तत्व है। अनादि काल से सीखने-सिखाने की परंपरा चली आ रही है ।धरती की उत्पत्ति ही गुरुत्वाकर्षण की अद्भुत घटना है। सिखाने के लिए तो एक बच्चा भी सीखा जाता है । संस्कृति और सभ्यता की यात्रा ही सीखने-सिखाने की यात्रा है। सूर्य, चंद्रमा, धरती,  आकाश, नदी, पहाड़, झरना, समंदर, पशु ,पक्षी, सब किसी न किसी रूप में हमारे गुरु हैं ।हमारा हर दिन, हर सुबह कोई न कोई सीख दे जाती है।जरूरत है अपने अंदर के शिष्यत्व को जगाने की। सीखने की जिज्ञासा को जीवंत करने की। हमारे यहां गुरु-पूर्णिमाऔर  शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा है। गौर करें तो हम देख सकते हैं कि गुरु पूर्णिमा का संबंध चंद्रमा से है और शिक्षक दिवस का संबंध सूर्य से ।पूर्णिमा का चंद्रमा ऐसा गुरु है जो हमें सूर्य की तपन को शीतलता में परिवर्तित करके हमारा मार्गदर्शन करता है ।गुरु भी शिष्य के जीवन की तपिश और मलीनता को हरता है।उसे निर्मल शीतल और उज्जवल बनाता है।

परंतु शिक्षक दिवस में साक्षात दिनमान का आभास होता है। अर्थात एक शिष्य के रूप में हमें साक्षात सूर्य की तपिश को सहने की क्षमता उत्पन्न करना और प्रकाश को आत्मसात करना सीखना होता है। सचमुच राधाकृष्णन ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने अपनी आजीविका शिक्षक जीवन से शुरू की और निरंतर अपने ज्ञान बुद्धि आत्म संयम आत्मबल से देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति का पद हासिल किया। उनकी जन्मतिथि को शिक्षक दिवस के रूप में शिक्षकों को समर्पित किया गया परंतु यह सोचने वाली बात है कि इस दिन को राष्ट्रपति के नाम क्यों नहीं समर्पित किया गया? इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि डॉक्टर सर्वपल्लीने एक छोटे से पद से राष्ट्रपति जैसे बड़े पद को हासिल किया ।इसका तात्पर्य यह है कि शिक्षक सर्वोपरि होता है ।भले ही राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक है परंतु एक शिक्षक ही है जो राष्ट्र का निर्माण करता है और इस तरह शिक्षक राष्ट्र के किसी भी नागरिक से अधिक पूजनीय है माननीय है जो राष्ट्र का निर्माण करता है वह साक्षात ब्रह्मा है। यह अलग बात है कि सर्वपल्ली राष्ट्र का निर्माण करते हैं और फिर राष्ट्रपति के प्रथम नागरिक भी नियुक्त किए जाते हैं अतः उनके जन्मदिन के उपलक्ष में पांच सितंबर को एक राष्ट्रपति पद को नहीं शिक्षक के पद को समर्पित किया गया है। हमें तलाश है आज अच्छे गुरु कि नहीं  अच्छे शिष्य की। जो शिष्य महान होता है वही महान गुरु होता है ।जब हम एकलव्य, आरुणि, नचिकेता, राम , कृष्ण कर्ण जैसे शिष्य बन जाएंगे तभी हमारे भीतर गुरुत्व का जन्म होगा सचमुच एक सफल गुरु बनने से पहले एक सफल शिष्य बनना होगा। हम पहले शिष्य बनें ,गुरु तो कण-कण में है ।सीखने की जिज्ञासा होगी तो शिक्षक भी जरूर मिलेंगे शिक्षक दिवस के अवसर पर इतना जरूर कहना चाहूंगी कि एक शिक्षक होकर भी जो जीवन भर शिष्य बना रहता ,है जिसकी जिज्ञासा जागृत रहती है ,जो अध्ययन में रत रहता है, सिखाने के साथ सीखने में विश्वास रखता है, वही शिक्षक है। ज्ञान का अंत नहीं सीखने की सीमा नहीं ज्ञान अर्जन की उम्र नहीं होती। शिक्षक -पद से सेवानिवृत्त हो सकते हैं सीखने से नहीं । एक शिक्षक ही है जो आजीवन ऊर्जावान रहता है ,प्रकाशमान रहता है, उज्जवल रहता है ।प्रकाश उत्पन्न करता रहता है, समाज का मार्गदर्शन करता चलता है क्यों कि शिक्षक आजीवन एक शिष्य बना रहता है। देश के एक-एक नागरिक यदि अपने अंदर के शिष्यत्व को जीवंत रखें तो वह दिन दूर नहीं जब ब्रह्मांड में एक और सुंदर घटना होगी और दिनमान दिन में ही नहीं घनी रात में भी धरती को देख कर मुस्कुरा उठेगा। या फिर अमावस अपनी राह भूल जाएगा।

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