क्या यही है महिलाशक्तिकरण?

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प्रेमलता सिंह, पटना, बिहार

औरत अगर ठान लेती तो कब का पितृसत्ता समाप्त हो गया रहता।औरतें आजतक अपने अंदर की शक्ति को पहचानी ही नहीं । औरतों में जलन की भावना कुछ ज्यादा ही होती हैं। भाभी, ननद, जेठानी, देवरानी, दोस्त, पड़ोसन इतना खुश यू हैं? जैसे बेकार की बातों में अपना समय व्यर्थ करती हैं।सोशल मीडिया पर दो चार भाषण देने से कुछ नहीं होगा। जब तक महिला खुद महिलाओं के प्रति सकारात्मक -सोच या एक -दूसरे की दुःख -सुख को समझेंगी नही। मदद करने के लिए  बढ़ चढ़कर आगे नहीं आएंगी, तब तक महिलासक्तिकरण बेमानी है।

बहुत बार ये भी देखा जाता हैं कि बहु को अल्ट्रासाउंड करने को मजबूर किया जाता हैं। अगर बेटा रहा तो जीवनदान , बेटी रही तो उसे गर्भ में ही मार दिया जाता है।

दहेज उत्पीड़न के मामले में देखा जाता है कि पुरुषों से अधिक दहेज उत्पीड़न औरतें करती हैं। उसमें पति, भसुर,  से ज्यादा प्रताड़ना में  अहम रोल सास, ननद, भाभियां निभाती है।ज्यादातर ननद को अपनी भाभी पसंद नहीं आती क्योंकि उसको लगता हैं मुझसे ज्यादा मेरा भाई भाभी को प्रेम करने लगा है।

आप अक्सर समाज में देखते होंगे कि सास (महिला) सोचती रहती हैं  मेरा बेटा बहु की बात क्यों सुनता है। जब बेटे की शादी की बात आती हैं तो सास ही सबसे ज्यादा दहेज की मांग करती हैं। ताकि समाज मे उसकी नाक ऊंची रहे। बहु गर्भवती हो गई तो बेटी नहीं, बेटा चाहिए । बहुत बार ये भी देखा जाता हैं कि बहु को अल्ट्रासाउंड करने को मजबूर किया जाता हैं। अगर बेटा रहा तो जीवनदान , बेटी रही तो उसे गर्भ में ही मार दिया जाता है।

दहेज उत्पीड़न के मामले में देखा जाता है कि पुरुषों से अधिक दहेज उत्पीड़न औरतें करती हैं। उसमें पति, भसुर,  से ज्यादा प्रताड़ना में  अहम रोल सास, ननद, भाभियां निभाती है।ज्यादातर ननद को अपनी भाभी पसंद नहीं आती क्योंकि उसको लगता हैं मुझसे ज्यादा मेरा भाई भाभी को प्रेम करने लगा है।

इन सारी घटनाओं में आप पाएंगे कि औरत ही औरत की दुश्मन होती हैं।घर की औरतें मर्दों के सहारे पितृसत्ता का खेल खेलती हैं। पितृसत्ता जिंदा ही हैं औरतों के वजह से……

ज्यादातर अंधविश्वास फैलाने में औरतों का ही किरदार होता हैं। बीमारी होने पर बाबाओ का चक्कर लगाना औरतें ही सिखाती है।अगर औरत समझदार होगी तो अपने बच्चों को सही दिशा दिखाएगी। आप देखिए कि “सती प्रथा” जैसे कुरीतियों को को खत्म एक मर्द यानी राजा राममोहन राय ने की थी। आज भी औरतें अपने बच्चों से सती पूजा करवाती हैं और खुद भी करती हैं। खुद अंधविश्वास को बढ़ावा देती हैं और दोष पुरुषों को देती रहती है।

ज्यादातर बच्चे अंधविश्वासी बन जाते है, इसमें उनके नानी, दादी,माँ का अहम भूमिका होती हैं।भारत जैसे देश मे औरतों को घर के मर्द नहीं बोलते की तुम घूंघट या बुर्के में रहो, ये हिदायत उसकी माँ, दादी ,नानी ही देते रहती हैं।किसी लड़की की माँ किसी कारणवश बचपन में मर गई होती हैं। उसके पिता उसकी परवरिश  किये होते है वैसी लड़की खुले विचार और आजाद ख्याल की होती हैं। वो पितृसत्ता के विचारों से कुंठित नही होती।

क्या सोशल मीडिया पर बवाल, सड़कों पर रैली निकालने, महिलाशक्तिकरण का झंडा लगाने से, महिला अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने से , अच्छे -अच्छे कपड़े पहनने से पितृसत्ता ख़त्म हो जाएगी?औरतें जब तक अपने सोच में सकारात्मक सोच की धार नहीं लाएगी ,तबतक कोई शोर-  शराबा करने से कुछ नहीं होगा…..औरतें एक -दूसरे के मदद के लिए आगे आएंगी तभी सुधार होने की संभावना है…।

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