कर्मों का फल

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माधुरी भट्ट

माँ के पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी सुनते ही जब डॉ साहब ने रिपोर्ट देखते ही कहा,इसे तो कैंसर है।इतनी देर क्यों कर दी आने में? अब तो यह जालिम अंतिम स्टेज में पहुँच चुका है। हिरणी जैसी आँखों वाली प्यारी गुड़िया नैन्सी माँ का मुरझाया चेहरा देख समझ गई कि बीमारी बहुत भयानक रूप ले चुकी है। मात्र आठ साल की नैन्सी को ईश्वर से न जाने कैसे इतनी बुद्धि विवेक से सँवारा था ,किसी भी बात का इतनी गहराई से विश्लेषण किया करती मानो विषय पर पी एच डी कर रखी हो।
हॉस्पिटल में एक महीना चार दिन बीत गए, नैन्सी की स्थिति सुधरने के बजाए और बिगड़ती चली गई।डॉक्टर्स ने जवाब दे दिया कि कहीं और दिखाइए,यहाँ इलाज़ सम्भव नहीं।साथ ही यह भी कह दिया कि कहीं भी ले जाने से अब बच्ची पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हो सकती।बाकी उसका और आपका भाग्य। हाँ ! आगे जो भी परीक्षण (टेस्ट)होंगे और ईलाज चलेगा , उड़के लिए पाँच से आठ लाख रुपए तक का खर्च आ सकता है।अभी तक जो भी जमा पूँजी थी सब इस दानव रूपी बीमारी की भेंट चढ़ चुकी थी। उम्र में कमसिन परन्तु बुद्धि में वयोवृद्ध नैन्सी ने माँ -पापा से घर ले चलने की रट लगा दी ।आर्थिक रूप से लाचार मातापिता बच्ची को घर ले आए।

घर पहुँचते ही नैन्सी ने राहत की साँस ली।उसे आभास हो चुका था कि अब वह ज़्यादा दिन की मेहमान नहीं है।कान से खून बहने लगा था , प्यारी हिरणी जैसी आँखें भी धुंधलाने लगी थी ,साथ ही पैरों ने हिलना -डुलना बन्द कर दिया था। साथ में दो छोटे भाई -बहन जिन्हें अभी इन सब बातों का कोई ज्ञान ही नहीं,भूख-प्यास लगने पर भोजन की ज़िद करने लगते, लेकिन दीदी को दर्द से तड़पता देख दोनों माँ के आँचल से लिपट जाते । दोनों की मासूमियत पर नैन्सी की आँखें छलक जाती । साथ ही सुकून भी महसूस होता कि उसने ज़िद करके अपने ऊपर आगे आने वाले व्यर्थ खर्च को रुकवा कर अपने भाई -बहन का भविष्य सुरक्षित किया है।माँ की व्याकुलता देख किसी आध्यात्मिक गुरु की तरह समझाने लगती , “ममा तुम दुःखी क्यों हो रही हो, यह तो मेरे पूर्व जन्मों के सिंचित कर्मों का परिणाम है, मैंने अपने पूर्व के जन्मों में जाने -अनजाने में जो भी कर्म किए हैं, उनका भुगतान जितनी जल्दी हो जाए ,उतना ही हम सबके लिए अच्छा है।हाँ! मेरे साथ- साथ आपके और पापा के भी पूर्व के सिंचित कर्मों का परिणाम है कि हम सब एक साथ हैं और आपको भी इतना कष्ट भुगतना पड़ रहा है। हमें जब यह ज्ञात हो जाता है तो कष्ट सहना आसान हो जाता है ममा।” इतनी कम उम्र में इतना धैर्य और इतनी बड़ी सोच ! सच ! कोई ज्ञानी आत्मा ही नैन्सी के रूप में धरा पर आई थी जो अपने किसी जन्म में किए गए कार्यों का भुगतान कर मुक्त होना चाहती थी, तभी तो इतने कष्ट में भी वह इतने गहरे ज्ञान की बातें कर रही थी।अचानक माँ की सोच भी बदल गई, अभी तक जो ईश्वर को निरन्तर कोसे जा रही थी कि “हमारी बच्ची ने कौनसा गुनाह किया है जो उसे इतनी बड़ी सज़ा दे रहे हो प्रभु! कितने निर्दयी हो तुम।” अब यही प्रार्थना करने लगी , “हे प्रभु हमारे द्वारा जाने-अनजाने में हुए गुनाहों के लिए हमें क्षमा करो,कष्ट सहने की हमें शक्ति प्रदान करो ।” लगभग डेढ़ महीने के कष्ट के बाद प्यारी सी गुड़िया नैन्सी ने इस भौतिक संसार से विदा ली लेकिन अपने पीछे बहुत गहरा सन्देश छोड़ गई, “हमें जो भी कष्ट भुगतने पड़ते हैं, सब हमारे ही सिंचित कर्मों का परिणाम होता है।हमें कभी भी अपने कष्ट के लिए ईश्वर को या अन्य किसी को दोषी नहीं ठहराना चाहिए। यदि हम ऐसा नहीं कर पाते हैं तो हमारा कष्ट कई गुणा बढ़ जाता है।” नैन्सी के जाने का दुःख तो माता -पिता को अवश्य है लेकिन साथ ही मन में यह शांति है कि वह आत्मा कष्ट से मुक्त हो गई और आगे के लिए समझा गई कि भूल से भी हम कोई ऐसा कार्य न कर बैठें जिससे दूसरों को कोई हानि पहुँचती हो, अन्यथा उसका भुगतान तो हमें करना ही पड़ेगा।

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