अधिक-अधिक संकट गहराया

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              ———–हरिनारायण सिंह ‘हरि’

अधिक-अधिक संकट गहराया,

दरवाजे पर युद्ध

ताखे में बैठा चित्रों में अपना आहत बुद्ध

सिर्फ किताबों में पढ़ते हैं,भाषण में चर्चा

पर न समझने हेतु बुद्धि को करते हैं खर्चा

बुद्ध-बुद्ध रटते-रटते हो जाते अक्सर क्रुद्ध

बने बुद्ध के अनुयायी हैं,मन में द्वेष पले

 कर्म हमारे ऐसे जिनसे जलता देश भले

 नहीं बुद्ध को समझ पायँगे,

जो न हृदय हो शुद्ध

अब अशोक-मन नहीं पिघलता, हृदय न रोता है

अब कलिंग का युद्ध दूसरे रण को बोता है

 संज्ञाएँ सब बहरीं-बहरीं, संवेदन अवरुद्ध •

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