सुशासन राज का कुशासन सुरसा के मुंह की तरह फैलता जा रहा है….

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नीरव समदर्शी

इस बार की नीतीश सरकार छोटी मंत्रिमंडल के गठन से बनी थी।उम्मीद की जा रही थी कि 10-15 दिनों में विस्तार की जाएगी लेकिन सम्पूर्ण सत्ता तंत्र इतनी कमजोर ,लचार अकर्मण्य रही  कि अपना मंत्रिमंडल विस्तार की आपसी सहमति भी नही बन पा रही थी।इस कमजोर सरकार येन केन प्रकारेण विस्तृत मंत्रिमंडल अच्छी तरह काम करेगी इसकी उम्मीद करना ऊचित नही है।सरकार की अभी तक की चौकड़ी ही अपना विस्तार की है। उस चौकड़ी का कार्य तो  सुशासन राज में कुशासन का विस्तार ही कर रहा है।

इंडिगो एयरलाइंस के मॅनेजर रूपेश की हत्या का कोई सुराख भी नही मिला था  कि सीमांचल में हत्या का सिलसिला शुरु हो गया। पहले दवा व्यपारी पवन केडिया की हत्या हुई। उनके हत्या का कोई सुराग मिलने के पहले ही चावल व्यवसाई की हत्या सारे शाम कर दी गई।जब तक पुलिस सक्रिय हो दूसरे दिन फिर सरे शाम एक डीलर की हत्या कर दी गई। सीमांचल में हत्या का सिलसिला अभी जारी था उधर तिरहुत अशांत हो चला।

तिरहूत में 12 साल की नेपाली  लड़की का रेप कर हत्या कर दिया गया और परिवारजनों को लाश सौंपने गहन जांच होने के पूर्व  लाश जला दिया गया ।इस सब में स्थानीय थाना इंचार्ज के शामिल होने की संभावना व्यक्त की जा रही है ।इन तमाम घटनाओं  को तो समाज के अपराधी वर्ग के शामिल होने का मामला माना जा सकता है।  यह भी  कहा जा सकता है कि हर समाज में कुछ अपराधी प्रवृत्ति के लोग होते हैं। वह अपराध करते हैं। कानून उन्हें सजा देती है। पूरी तरह अपराध मुक्त कभी भी कोई समाज नहीं हो सकता। वह कल्पना की बात है सत युग की बाते कि शतप्रतिशत अपराध मुक्त समाज हो।यह अलग बात है कि सुशासन बाबू के कुशासन राज में अपराध के बाद न्याय नहीं होता। अपराधी पकड़ा नहीं जाता। अपनी सुशासन की छवि बरकरार रखने के लिए अगर कुछ कार्यवाही

 होती भी है तो असली गुनाहगार बचाया जाता है। किसी एक को बलि का बकरा बना दिया जाता है। मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में भी यही हुआ  बृजेश ठाकुर के विरुद्ध कार्यवाही कर बाकी सभी दोषियों को बचा लिया गया ।इस कांड में उन तमाम लोगो के विरुद्ध कार्यवाही ह जिन्हें वहां की लड़कियों की इज्ज्त के साथ खेलने दिया जाता था।जिस एवज में बृजेश ठाकुर का प्रोजेक्ट पास होता रहा। मंत्री के पति का नाम आने के बाद मंत्री महोदया को सिर्फ पद मुक्त कर छोड़ दिया गया ।इसी तरह कमोबेस सभी जघन्य आपराधिक मामलो में सरकार की छवि को बचाने के लिए किसी एक व्यक्ति को बलि का बकरा बना दिया जाना सुशासन का प्रतीक नहीं है ।स्थिति इतनी बदत्तर हो चुकी है कि अब कु या सु किसी शासन तंत्र के होने की अनुभूति आम जनता के बीच से समाप्त हो चुकी प्रतीत होती है। इस सुशासन राज में अराजकता का आलम यह है कि कुछ दिन पूर्व  महज ₹2 के लिए दो लोगों ने आपसी विवाद में चाकू निकाल ली।एक ने दूसरे की चाकू मारकर हत्या कर दी। इसलिए कहा जा सकता है कि  शासन नाम की चीज बिहार में कहीं दिख नहीं रही ₹2 की आपसी  वाद-विवाद में अगर चाकू निकल जाने और चल जाने तथा मृत्यु हो जाने की स्थिति सामने आ रही है। इसका अर्थ यह निकलता है कि  आम आदमी के बीच कानून का डर किसी को रह ही नहीं गया है ।गोली मार देना चाकू चला देना किडनैप कर लेना 12 साल की लड़की की हत्या कर डेड बॉडी को जला देना ।इतने सारे अपराध सरे शाम इतनी आसानी से होना और कानूनी तंत्र के द्वारा ठीक से खाना पूर्ति तक नही करना। यही तो बताता है कि  कही कोई तंत्र कार्य ही नही कर रहा।बड़ी-बड़ी घटनाएं कर देना और इसमें किसी भी पक्ष को कानून या न्याय का किसी भी तरह का खौफ ना होना क्या इंगित करता है ? कु सुशासन या सुशासन दोनों में से कुछ भी है ही नहीं। कुशासन वह हुआ प्रशासन व्यवस्था अच्छी नहीं है अपराध है सब कुछ है सारी व्यवस्थाएं अपराधी वर्ग के लिए है। उन्हें प्रोटेक्ट किया जाता है लेकिन शासन व्यवस्था है ।कुछ लोगों के साथ न्याय नहीं होता है और सुशासन यह हुआ कि हर वक्त हर किसी के साथ न्याय किया जाता है। बिहार की स्थिति तो यह है कि कुछ किया ही नहीं जाता आम लोगों मन से  कुछ होने का भाव खतम्बहो चुका है।दसवीं बारहवीं की बच्चियों को ब्लैकमेल कर साइबर अपराध उनके इबोक्स में घुस कर प्रोफेनल अपराधियो द्वारा उस पूरे काल मे इनबॉक्स के एक एक शब्दो पर नजर रख कर, करवाया जा रहा है।इन सब अपराधों की जड़े सत्ता के ऊंची चोटी  में जाकर बुरी तरह उलझी है।इस चुनाव में नीतीश कुमार की आवाज और तस्वीरों के माध्यम से अनेकन के वीडियो विभिन्न व्हाट्सप के निजी इबोक्स में आता रहा जिसके न0 मालिक को कुछ पता ही नही था।उनका बटन मोबाइल शुरु से रहा और लम्बा समय से काम नहीं कर रहा था।यानी नीतीश कुमार का चुनाव  प्रचार उनकी सहमति में साइबर अपराधियो द्वारा करवाया गया।फिर वो बिचारी परिवार जनों के दबाव में साइबर अपराध रही बच्चियां किसके पास गुहार लगाए।अगर प्रधान मंत्री के पास भी जाए तो वो भी नीतीश कुमार के साथ बिहार में सरकार में शामिल हैं।

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