युगपुरुष कथासम्राट निःस्वार्थ साहित्यसेवी,बेहतरीन समाज सुधारक, अत्यनत स्वाभिमानी, निर्विकार व्यक्तित्व,तथा बेखौफ पत्रकार,संतपुरुष मुंशी प्रेमचंद

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नमन करता हु उस युगपुरुष कथासम्राट निःस्वार्थ साहित्यसेवी,बेहतरीन समाज सुधारक, अत्यनत स्वाभिमानी, निर्विकार व्यक्तित्व,तथा बेखौफ पत्रकार,संतपुरुष मुंशी प्रेमचंद को। मुंशी प्रेमचंद का मैं बहुत बड़ा प्रशंसक तो अपने स्कूल के दिनों से ही था जब मैं उनकी कहानी नमक का दरोगा पढ़ा था ,नमक का दरोगा कहानी तो आजादी से पूर्व की है, किन्तु मुझे वह आज के युग में अधिक वास्तविक लगती है। तब मैं मुंशी प्रेमचंद्र का प्रसंसक हुआ करता था। तब मुझे उनकी रचनाएं अच्छी लगती थी, विद्यार्थी के बाद अपने पिताजी एक घटना सुनकर मैं प्रेमचंद का भक्त हो गया ।निश्चित रूप से व्यक्तित्व भक्ति योग्य है क्योंकि उस दिन मैं यह जान पाया कि प्रेमचंद ने गरीबी को झेल ही नहीं प्रेमचंद ने गरीबी को जिया वह घटना कुछ इस प्रकार थी।पटना कॉलेज में किसी कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में प्रेमचंद को आमंत्रित किया गया था। कार्यक्रम की शुरुआत में जब वह मंच पर आए तो संपूर्ण सेमिनार हॉल ठहाकों से गूंज उठा ।फिर लोग शांत हुए कार्यक्रम शुरू हुआ।

प्रेमचंद्र की बोलने की बारी आई ।जब वह बोलना शुरू किए तब उन्होंने कहा कि मेरे आते के साथ आप सभी लोगों को बहुत जोर की हंसी आई ।आपकी हंसी का कारण मैं समझता हूं लेकिन उसी के कारण की पीछे की मजबूरी आप नहीं समझते। और मैं आपको बता देना चाहता हूं।दर असल प्रेमचंद गर्मी के महीने में जाड़े वाली सूट पहनकर आए हुए थे और उन्होंने कोर्ट का बटन खोल कर दिखाया कि उन्होने अंदर कुछ नही पहन रखा था।मुख्य अतिथि के रुप में आए प्रेमचंद ने कहा कि मेरे पास आपकेइस कार्यक्रम सम्मान योग्य दूसरा कोई कपड़ा नहीं था। मुझे यह समझ है कि गर्मी के महीने में जाड़े का सूट पहनकर नही आना चाहिए लेकिन यह मेरी मजबूरी थी कि आपके इस कार्यक्रम के योग्य दूसरा कोई कपड़ा मेरे पास नहीं था। इसकी वास्तविकता का यकीन आप अंदर की स्थिति देखकर निश्चित रूप से कर लिए होंगे। प्रेमचंद के यह कहने के बाद संपूर्ण सेमिनार हॉल में स्तब्धता था छा गई और हंसने वाले सभी लोगों का सिर झुक गया।ऐसे थेप्रेमचंद जिन्होंने गरीबी झेली नही गरीबी को जिया ।उनका स्वाभिमान कभी कमजोर नहीं पडा।वह गरीबी के सामने ही कभी झुके नहीं ।समझौता वादी नहीं हुए ।गलत रास्ते की ओर नहीं गए ।और सबसे बड़ी बात उनके किसी भी रचना से कभी भी प्रतिक्रिया की बू नही आई। वह अपनी गरीबी की वजह से उनके अंदर प्रतिकार आया प्रतिक्रिया नही। इसलिए उस प्रेमचंद की प्रशंसा नहींउनके प्रति भक्ति होनी चाहिए।नमक का दरोगा। नमक का दरोगा मुझे इसलिए अच्छा नहीं लगता कि उसमें भ्रष्टाचार का विरोध दिखाया गया है। भ्रष्टाचारी व्यवस्था का पर्दाफाश किया गया है ।बल्कि नमक का दारोगा मुझे इसलिए अच्छा लगता है इस कहानी में यह दिखाया गया है बताया गया है ,समझाया गया है कि बेईमान व्यक्ति अपने संपत्ति का धौंस कितना भी दिखाए।वह भीतर बड़ा ही कमजोर होता है। इसलिए अपने लिए वह अपने जैसा नहीं ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति को तलाशता है। बेईमानी से वह कितना भी बड़ा कितना भी पैसा वाला हो जाए। दुनिया का कोई भी बेईमान भ्रष्ट गुंडा अपने बेटे को बेईमानी भ्रष्टाचार और गुंडा बनाता।वह कभी नहीं चाहता कि उसका बेटा उसके जैसा डॉन बने गुंडा बने आतंकवादी बने। नमक का दरोगा में यही बताया गया है कि भले ही किसी समाज में 99% लोग भ्रष्ट हो जाए बेईमान हो जाए 1% व्यक्ति बड़ी मुश्किल से अपना अस्तित्व बचा सकें। लेकिन उस 99% लोगों को उस 1% ईमानदार व्यक्ति की खोज होती है ।जरूरत होती है इस तरह कितना भी समाज नष्ट हो जाए पूछ हमेशा इमानदारो की होती है ।महत्वपूर्ण हमेशा ईमानदार होते हैं। इसलिए आज के युग में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण इमानदार व्यक्ति है ।

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