“प्राचीन भारतीय राजनय और वृहतर भारत की गौरवगाथा” (भाग १०) ‘वृहतर भारत और चम्पा या वियतनाम’-

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वियतनाम या आधिकारिक तौर पर वियतनाम समाजवादी गणराज्य, दक्षिणपूर्व एशिया के हिन्दचीन प्रायद्वीप के पूर्वी भाग में स्थित एक देश है। इसके उत्तर में चीन, उत्तर पश्चिम में लाओस, दक्षिण पश्चिम में कंबोडिया और पूर्व में दक्षिण चीन सागर स्थित है।बौद्ध धर्म यहां का प्रमुख धर्म है जो देश की जनसंख्या का लगभग पिच्यासी प्रतिशत हिस्सा है और चीन और जापान के बाद बौद्ध जनसंख्या में ये दुनिया का तीसरा बड़ा देश है ।आधुनिक वियतनाम का प्राचीन नाम चंपा था।प्राचीन चम्पा के लोग और राजा शैव मतावलम्बी थे। चम्पा में सनातन संस्कृति के प्रसार का कार्य प्राचीन भारत के व्यापारियों और राजकुमारों ने किया। दोनों दृष्टियों से उन्होंने वहां के नगरों के नाम इन्द्रपुर, अमरावती, विजय, कौठार, पाण्डुरंग आदि रखे।चम्पा के लोग चाम कहलाते हैं। चाम लोगों ने बड़ी संख्या में हिंदु और बौद्ध मंदिरों का निर्माण किया। वे भगवान शिव, गणेश, लक्ष्मी, पार्वती, सरस्वती, बुद्ध तथा लोकेश्वर आदि देवताओं की पूजा किया करते थे। इन्होंने मंदिरों में अन्य मूत्तियों शिवलिंगों की भी स्थापना की। ये मंदिर भव्य थे परन्तु आज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में वृहतर भारतीय संस्कृति की गाथा कहते प्रतीत होते है।इनमें से प्रमुख हैं मी सान जो पहले एक मंदिर हुआ करता था, और होई आन जो चम्पा के मुख्य बंदरगाह शहरों में से एक था। दोनों ही अब विश्व धरोहर स्थल हैं। आज कई चाम लोग इस्लाम का पालन करते हैं। यह धर्मांतरण यहाँ दसवीं शताब्दी में शुरू हुआ, और सत्रहवीं शताब्दी तक समाज के अभिजात वर्ग ने भी पूरी तरह इसे अपना लिया। इन्हें बानी चाम कहा जाता है जो अरबी के शब्द बानू से अभिप्रेरित है । हालाँकि आज भी वहाँ बालामोन चाम अर्थात संस्कृत के ब्राह्मण से उत्पन्न चाम हैं जो अभी भी अपने हिंदू विश्वास और रीति-रिवाजों का पालन करते हैं और त्योहार उसी प्रकार मनाते हैं। बालामोन चाम दुनिया में केवल दो जीवित गैर-इंडिक अर्थात भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर के स्वदेशी हिंदू लोगों में से एक है, जिसकी संस्कृति हजारों साल पुरानी है।भारतीयों के चम्पा पहुँचने से पूर्व यहाँ के मूल निवासी दो उपशाखाओं में विभक्त थे जो भारतीयों के संपर्क में सभ्य हो गए वे कालांतर में चंपा के नाम पर ही चाम के नाम से विख्यात हुए और जो बर्बर थे वे ‘चमम्लेच्छ’ और ‘किरात’आदि कहलाए।प्रारंभ में इस प्रदेश पर चीन का प्रभुत्व था किंतु दूसरी शताब्दी में भारतीयों के आगमन से चीन का अधिकार क्षीण होने लगा। १९२ ई. में किउ लिएन ने चम्पा में एक स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। यही श्रीमार था जो चंपा का प्रथम ऐतिहासिक नरेश था। इसकी राजधानी चंपानगरी, चंपापुर अथवा चंपा कुअंग न-म के दक्षिण में वर्तमान किओ है।धर्म महाराज श्री भद्रवर्मन् जिसका नाम चीनी इतिहास में फन-हु-ता (३८०-४१३ ई.) मिलता है, चंपा के प्रसिद्ध सम्राटों में से है जिसने अपनी विजयों ओर सांस्कृतिक कार्यों से चंपा का गौरव बढ़ाया। किंतु उसके पुत्र गंगाराज ने सिंहासन का त्याग कर अपने जीवन के अंतिम दिन भारत में आकर गंगा के तट पर व्यतीत किए। बाद में चीन ने इस वंश को परास्त कर चम्पा पर आधिपत्य कर लिया।चंपा के सभी नरेशो के नाम सनातन हिन्दू संस्कृति के नाम है यथा रुद्रवम्रन्,हरिवर्मन
प्रभासधर्म,ईशावर्मन,रुद्रवर्मन,पृथिवीन्द्रवर्मन् आदि।अंत मे चीनी लूट व अन्नम के हाथों चम्पा अधिकृत कर लिया गया।
चंपा के इतिहास का विशेष महत्व वृहतर भारतीय संस्कृति के प्रसार की गहराई में है।यहां की सांस्कृतिक राजनीतिक व्यवस्था में भी भारतीयता की छाप रही।प्राचीन चम्पा के नागरिक शासन के प्रमुख दो मुख्य मंत्री होते थे। सेनापति और रक्षकों के प्रधान प्रमुख सैनिक अधिकारी थे। धार्मिक विभाग में प्रमुख पुरोहित, ब्राह्मण, ज्योतिषी, पंडित और उत्सवों के प्रबंधक प्रधान थे।इसी भांति सामाजिक व्यवस्था व रीतिरिवाजों में भी भारतीय संस्कृति का अनुकरण स्पष्ट नजर आता है।चंपा की सामाजिक व्यवस्था को भारतीय आदर्शों पर निर्मित करने का प्रयत्न किया गया था किंतु स्थानीय परिस्थितियों के कारण उसमें आवश्यक परिवर्तन भी दृष्टव्य होता है।तत्कालीन चम्पा का समाज चार वर्णों में बँटा था, किंतु वास्तव में समाज में दो ही वर्ग थे – प्रथम ब्राह्मण और क्षत्रियों का और दूसरा शेष लोगों का।यहां भी वैवाहिक जीवन के आदर्शों, विवाह संबंधी उत्सव, सती प्रथा,दास प्रथा, मरणोपरांत दाहक्रिया और पर्वों तथा उत्सवों के विषय में भी भारत से साम्य दिखलाई पड़ता है। चम नाविक जलदस्यु के रूप में कुख्यात थे। इस कारण ही दास चंपा में अधिक संख्या में थे।भारतीय संस्क्रति की मानिंद ही यहाँ भी उदारता और सहनशीलता चंपा के धार्मिक जीवन की विशेषताएँ थीं। चंपा के राजा भी सभी धर्मों का समान रूप से आदर करते थे।यज्ञीय अनुष्ठान को महत्व दिया जाता था। संसार को क्षणभंगुर और दु:खपूर्ण समझनेवाली भारतीय
विचारधारा भी चंपा में स्पष्ट दिखलाई पड़ती है।ब्राह्मण धर्म के त्रिदेवों में महादेव की उपासना सबसे अधिक प्रचलित थी।भद्रवर्मन् के द्वारा स्थापित भद्रेश्वर स्वामिन् इतिहास में प्रसिद्ध है। ११वीं शताब्दी के मध्य में देवता का नाम श्रीशानभद्रेश्वर हो गया।चंपा के नरेश प्राय: मंदिर के पुनर्निर्माण या उसे दान देने का उल्लेख करते हैं।यहाँ शक्ति, गणेश, कुमार और नंदिनी की भी पूजा होती थी। वैष्णव धर्म का भी वहाँ ऊँचा स्थान था। विष्णु के कई नामों के उल्लेख मिलते हैं किंतु विष्णु के अवतार विशेष रूप से राम और कृष्ण अधिक जनप्रिय थे। चंपा के नरेश प्राय: विष्णु से अपनी तुलना करते थे अथवा स्वयं को विष्णु का अवतार मानते थे। लक्ष्मी और गरुड़ की भी पूजा होती थी। ब्रह्मा की पूजा का अधिक प्रचलन नहीं था।यहां के प्राचीन अभिलेखों से पौराणिक धर्म के दर्शन और कथाओं का गहन ज्ञान परिलक्षित होता है। गौण देवताओं में इंद्र, यम, चंद्र, सूर्य, कुबेर और सरस्वती उल्लेखनीय हैं। साथ ही निराकार परब्रह्म की कल्पना भी उपस्थित थी। दोंग दुओंग, बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र था। बौद्ध मतावलम्बीयो और बौद्ध भिक्षुओं की संख्या यहाँ अधिक थी।चंपा राज्य में संस्कृत ही दरबारी और शिक्षितों की भाषा थी। चंपा के अभिलेखों में गद्य और पद्य दोनों ही भारत की आलंकारिक काव्यशैली से प्रभावित मिलते हैं। भारत के महाकाव्य, दर्शन और धर्म ग्रंथ, स्मृति, व्याकरण और काव्यग्रंथ पढ़े जाते थे। वहाँ के नरेश भी इनके अध्ययन में रुचि लेते थे।संस्कृत में नए ग्रंथों की रचना भी होती थी।चंपा में भी कला का विकास अधिकतर धर्म के सानिध्य में ही हुआ।यहां मंदिर अधिक विशाल नहीं मिले हैं किंतु कलात्मक भावना और रचनाकुशलता के कारण सुंदर हैं। ये अधिकांशत: ईटों के बने हैं और ऊँचाई पर स्थित हैं। इन मंदिरों की शैली की उत्पत्ति भारत के वातापी, काजीवरम् और मामल्लपुरम् के मंदिरों से मिलती है। फिर भी कुछ विषयों में स्थानीय कला के तत्व भी मौजूद हैं। चंपा के मंदिर प्रमुख रूप से तीन स्थानों पर मिले हैं- म्यसोन, दोंग दुओंग तथा पो नगर। चंपा में मूर्तिकला भी विकसित रूप में मिलती है। मंदिरों की दीवारों पर बनी मूर्तियों के अतिरिक्त विभिन्न स्थानों से देवी देवताओं की अनेक सुंदर मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। दीवारों पर अंकित अलंकरण की कुशलता के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।इस प्रकार प्राचीन चम्पा न केवल भारतीय संस्कृति का संस्करण था अपितु वृहतर भारत का एक प्रमुख अभिन्न हिस्सा था।(क्रमशः)-

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