“प्राचीन भारतीय राजनय और वृहतर भारत की गौरवगाथा” (भाग ९)

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—-डॉ नीता चौबीसा

वृहतर भारत का हिस्सा कंबुज:
दो अन्य प्रमुख भारतीय सांस्कृतिक केंद्रों चम्पा (अन्नाम)
और कम्बोज (कम्बोड़िया) साम्राज्यों पर भारतीय मूल के राजाओं ने शासन किया। भारत और कम्बोडिया के घनिष्ठ सांस्कृतिक संबंध का इतिहास प्रथम और दूसरी शताब्दी ई. पश्चात् तक जाता है। प्रथम शताब्दी से कम्बोज में भारतीय मूल के शासक कौन्डिन्य राजवंश ने शासन किया। असंख्य संस्कृत अभिलेख तथा साहित्य से हम उनके इतिहास का अनुमान लगा सकते हैं।यहा के सुविख्यात हिन्दू मंदिरों को देख भारतीय संस्कृति का वैभव ज्ञात कर सकते हैं।
कम्बोड़िया में स्थित अंगकोरवाट का मंदिर संसार का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर है। इस मंदिर के पांच शिखर सुमेरु पर्वत के पांच शिखर माने जाते हैं। इस मंदिर में वहां के एक राजा सूर्यवर्मन को विष्णु के रूप में मूर्ति्तमान किया गया है। माना जाता है कि वह अपने पुण्य-कार्यों के कारण विष्णुलोक चला गया। यह मंदिर एक वर्गमील में फैला हुआ है। इसके चारों ओर की खाई सदा पानी से भरी रहती है जो इसकी शोभा की चार चांद लगाती है। इसकी दीवारों पर रामायण और महाभारत के चित्र खोदे गये हैं। इनमें सबसे बड़ा दृश्य
,समुद्रमंथन का है।कम्बोडिया में यशोधरपुर में एक और भव्य मंदिर है- बाफुओन। यह ग्यारहवीं शताब्दी में बनाया गया था। इसकी दीवारों पर महाकाव्यों के चित्र खुदे हुए हैं जैसे राम-रावण के युद्ध के दृश्य, कैलाश-पर्वत पर अधिष्ठित शिव-पार्वती के दृश्य तथा कामदेव के भस्म होने का दृश्य आदि भारतीय संस्कृति के जीवन्त उदाहरण है।यहां चौदहवीं शताब्दी तक संस्कृत राजभाषा के पद पर आसीन रही।राजाओं ने संस्कृत में अपनी उपाधियाँ खुदवाईं। ब्राह्मणों को सबसे ऊंचे पदों पर नियुक्त किया गया। शासन का सारा कार्य हिन्दु नियमों और ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार चलाया जाने लगा। मंदिरों के साथ ज्ञान केन्द्र के रूप में आश्रम खोले गए। ताम्रपुर, विक्रमपुर, ध्रुवपुर आदि नगरों के संस्कृत नाम रखे गए। आज तक यहां भारतीय महीनों के नाम-चेत, बिसाक, जेश, आसाढ़ आदि चलते हैं। ये भारतीय नामों के ही अपभ्रष्ट उच्चारण है।कम्बोड़िया में स्थित आंकोरवाट का मंदिर संसार का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर है। इस मंदिर के पांच शिखर सुमेरु पर्वत के पांच शिखर माने जाते हैं। इस मंदिर में वहां के एक राजा सूर्यवर्मन को विष्णु के रूप में मूर्त्तिमान किया गया है। माना जाता है कि वह अपने पुण्य-कार्यों के कारण विष्णुलोक चला गया। यह मंदिर एक वर्गमील में फैला हुआ है। इसके चारों ओर की खाई सदा पानी से भरी रहती है जो इसकी शोभा की चार चांद लगाती है। इसकी दीवारों पर रामायण और महाभारत के चित्र खोदे गये हैं। इनमें सबसे बड़ा दृश्य समुद्रमंथन अर्थात् समुद्र के मथने का है।कंबुज या कंबोज कंबोडिया का प्राचीन संस्कृत नाम है। भूतपूर्व इंडोचीन प्रायद्वीप में सर्वप्राचीन भारतीय उपनिवेश की स्थापना फूनान प्रदेश में प्रथम शती ई. के लगभग हुई थी। लगभग 600 वर्षों तक फूनान ने इस प्रदेश में हिंदू संस्कृति का प्रचार एवं प्रसार करने में महत्वपूर्ण योग दिया। तत्पश्चात्‌ इस क्षेत्र में कंबुज या कंबोज का महान्‌ राज्य स्थापित हुआ जिसके अद्भुत ऐश्वर्य की गौरवपूर्ण परंपरा 14वीं सदी ई. तक चलती रही। इस प्राचीन वैभव के अवशेष आज भी
अंग्कोरवात, अंग्कोरथोम नामक स्थानों में वर्तमान हैं।कंबोज वास्तविक अर्थ में भारतीय उपनिवेश था। वहाँ के निवासियों का धर्म, उनकी संस्कृति एवं सभ्यता, साहित्यिक परंपराएँ, वास्तुकला और भाषा-सभी पर भारतीयता की अमिट छाप थी जिसके दर्शन आज भी कंबोज के दर्शक को अनायास ही हो जाते हैं। हिंदू धर्म और वैष्णव संप्रदाय और तत्पश्चात्‌ (1000 ई. के बाद) बौद्ध धर्म कंबोज के राजधर्म थे और यहाँ के अनेक संस्कृत अभिलेखों को उनकी धार्मिक तथा पौराणिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के कारण भारतीय अभिलेखों से अलग करना कठिन ही जान पड़ेगा।राजा राजेन्द्रवर्मन्‌ के एक विशाल अभिलेख भी मिला है जिसमें शिव की वन्दना की गई है।इस प्रकार कंबुज वृहत्तर भारत का अभिन्न हिस्सा रहा और आज भी भारतीय संस्कृति की अमिट छाप चप्पे चप्पे पर दिखती है।(क्रमशः )

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